दुनियाभर में वैक्सीन की चर्चा के बीच अब ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में टीकाकरण शुरू हो गया है. इसी बीच कोरोना वैक्सीन को लेकर हलाल और हराम जैसी बहस छिड़ गई है. कुछ धार्मिक समूह प्रतिबंधित सुअर के मांस से बने वैक्सीन से संबंधित उत्पादों को लेकर सवाल उठा रहे हैं, जिसके चलते टीकाकरण अभियान के बाधित होने की आशंका जताई जा रही है. (File Photos)
रिपोर्ट्स के मुताबिक वैक्सीन के भंडारण के दौरान उनकी सुरक्षा और प्रभाव बनाए रखने के लिए सुअर के मांस (पोर्क) से बने जिलेटिन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि कुछ कंपनियां सुअर के मांस के बिना टीका विकसित करने पर कई साल तक काम कर चुकी हैं.
उधर फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका की तरफ से इस मुद्दे पर आधिकारिक बयान भी दिया गया है. उनके प्रवक्ताओं ने बताया है कि उनके कोरोना वैक्सीन में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है. हालांकि अन्य कई कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उनके टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है या नहीं.
रिपोर्ट के मुताबिक, एक तथ्य यह भी है कि स्विटजरलैंड की दवा कंपनी नोवारटिस ने सुअर का मांस इस्तेमाल किए बिना मैनिंजाइटिस टीका तैयार किया था. जबकि सऊदी और मलेशिया स्थित कंपनी एजे फार्मा भी ऐसा ही टीका बनाने का प्रयास कर रही हैं.
'कोरोना वैक्सीन हलाल'
दरअसल, कई धार्मिक समूह प्रतिबंधित सुअर के मांस से बने उत्पादों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. इस्लामिक धर्मगुरुओं के बीच इस बात को लेकर असमंजस है कि सुअर के मांस का इस्तेमाल कर बनाए गए कोरोना टीके इस्लामिक कानून के तहत जायज हैं या नहीं.
इंडोनेशिया जैसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देशों में चिंता पसर गई है. यहां तक कि इंडोनेशिया में हलाल सर्टिफिकेशन के बाद ही कोरोना वैक्सीन को इस्तेमाल करने की बात कही जा रही है.
इस मामले पर ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव सलमान वकार का कहना है कि 'ऑर्थोडॉक्स' यहूदियों और मुसलमानों समेत विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच टीके के इस्तेमाल को लेकर असमंजस की स्थिति है, जो सुअर के मांस से बने उत्पादों के इस्तेमाल को धार्मिक रूप से अपवित्र मानते हैं.
सिडनी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर हरनूर राशिद कहते हैं कि टीके में पोर्क जिलेटिन के उपयोग पर अब तक हुई विभिन्न परिचर्चा में आम सहमति यह बनी है कि यह इस्लामी कानून के तहत स्वीकार्य है, क्योंकि यदि टीकों का उपयोग नहीं किया गया तो 'बहुत नुकसान' होगा.
इसी रिपोर्ट में इजरायल की रब्बानी संगठन 'जोहर' के अध्यक्ष रब्बी डेविड स्टेव के हवाले से बताया गया है कि 'यहूदी कानूनों के अनुसार सुअर का मांस खाना या इसका इस्तेमाल करना तभी जायज है जब इसके बिना काम न चले. अगर इसे बीमारी में इंजेक्शन के तौर पर लिया जाए और खाया नहीं जाए तो यह जायज है, इससे कोई दिक्कत नहीं है.
तमाम देशों में वैक्सीन को लेकर यह नई बहस छिड़ी हुई है तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने वैक्सीनेशन का काम शुरू कर किया है. इतना ही नहीं चीन ने खुलासा करते हुए कहा है कि वह 10 लाख वैक्सीन की खुराक लगा चुका है. हालांकि, यह पता नहीं चला है कि 10 लाख खुराक से कितने लोगों का वैक्सीनेशन किया गया.
चीन ने तो यहां तक कहा है कि जुलाई से ही वह बड़े पैमाने पर लोगों को कोरोना वैक्सीन की खुराक दी जा रही है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शुरुआत में चीन ने वैसी इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को वैक्सीन की खुराक दी जिन्हें संक्रमण का अधिक खतरा था. चीन ने अब तक सिनोवैक बायोटेक और सीएनबीजी की वैक्सीन का इस्तेमाल किया है.