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कोरोना

नई रिसर्च: निगेटिव आने की रिपोर्ट को हो सकती है गलत, छिपे रहते हैं वायरस

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कोरोना वायरस को लेकर की गई एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि पहले से जितना समझा जाता था उससे कहीं अधिक समय तक कोरोना वायरस पीड़ित व्यक्ति के शरीर में रहता है. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में मंगलवार को प्रकाशित हुई स्टडी के मुताबिक, संक्रमित होने के बाद जिन लोगों की दोबारा जांच की जाती है, उनमें 5 में से 1 केस फेक निगेटिव होते हैं. यानी ऐसे लोगों के शरीर में वायरस मौजूद ही रहता है.
 

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इटली की मॉडेना यूनिवर्सिटी के डॉ. फ्रैन्सेस्को की टीम ने इटली के 1162 मरीजों पर स्टडी की जो PCR टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए थे. पहले टेस्ट के 15 दिन बाद दूसरा टेस्ट, फिर 14 दिन बाद तीसरा टेस्ट किया गया. 
 

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सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टडी के दौरान रिसर्चर्स को पता चला कि दूसरे टेस्ट के दौरान 60 फीसदी मरीज निगेटिव हो गए हैं. लेकिन तीसरे टेस्ट में पता चला कि इनमें से सिर्फ 78 फीसदी मरीज ही कोरोना निगेटिव हैं. यानी हर पांच में से एक टेस्ट फेक निगेटिव आया था. रिसर्चर्स ने कहा कि इसका मतलब ये हो सकता है कि वायरस व्यक्ति के शरीर में मौजूद ही था. 
 

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रिसर्चर्स का कहना है कि मरीज के शरीर में वायरस है या नहीं, यह पता लगाने के लिए एक महीने या इससे भी कुछ अधिक वक्त तक इंतजार करने की जरूरत पड़ सकती है. कई बार ऐसा भी होता है कि मरीज की रिपोर्ट वास्तव में निगेटिव होती है, लेकिन उन्हें शरीर में दर्द, सूंघने की क्षमता में कमी और खराब मूड की समस्या बरकरार रहती है.
 

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डॉ. विलियम ली कहते हैं कि कोरोना वायरस शरीर से जाने के बाद भी अपनी छाप छोड़ देता है. रिसर्चर्स को यह भी पता चला है कि वायरस ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुंचाता है जो पूरे शरीर को जोड़ते हैं. 
 

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