यूरोप के कई देशों में कोरोना वायरस के मामले दोबारा बढ़ रहे हैं और ब्रिटेन में भी स्थिति बिगड़ती दिख रही है. ब्रिटेन की सरकार ने कई तरह की पाबंदियां लगाई हैं और 25 दिसंबर तक ये पाबंदियां जारी रह सकती हैं. वहीं, सरकार पर अब 'सर्किट ब्रेकर' के लिए दबाव बढ़ रहा है. कई देशों में कोरोना को कम करने के लिए 'सर्किट ब्रेक' को पहले भी आजमाया जा चुका है. आइए जानते हैं क्या होता है 'सर्किट ब्रेक' जिससे हजारों लोगों की जान बचाने का दावा किया जा रहा है.
कोरोना को लेकर लागू किया गया 'सर्किट ब्रेक' लॉकडाउन की तरह ही होता है, लेकिन यह कम समय के लिए होता है. यानी अगर 2 या तीन हफ्ते के लिए सख्त पाबंदियां लगाई जाती हैं तो उसे 'सर्किट ब्रेक' कहा जा सकता है. इसका उद्देश्य बढ़ रहे कोरोना वायरस के मामले को कम करना होता है. सिंगापुर ने भी कोरोना रोकने के लिए 'सर्किट ब्रेक' का उपयोग किया था.
'सर्किट ब्रेक' से कोरोना के मामले कितने कम होंगे, इसको लेकर ठोस आंकड़ा नहीं है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि पाबंदियां कितनी सख्ती के साथ लागू की गई हैं. वहीं, ब्रिटेन की सरकार के साइंटिफिक एडवाइजरी ग्रुप फॉर इमरजेंसीज (सेज) की एक स्टडी में पता चला है कि दो हफ्ते के 'सर्किट ब्रेक' से इस साल देश में 3 हजार से लेकर 1 लाख 7 हजार तक मौतों को कम किया जा सकता है.
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर 2 हफ्ते का 'सर्किट ब्रेक' 24 अक्टूबर से लागू किया जाता है तो काफी फायदा होगा. हालांकि, इस दौरान लोगों को घरों में रहना होगा और स्कूल भी बंद करने पड़ेंगे. इससे इस साल हॉस्पिटल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या 66 हजार से लेकर 1.3 लाख तक घट सकती है.
न्यूजीलैंड में भी कुछ वक्त के लिए लॉकडाउन लागू किया गया था जिसे कुछ रिपोर्ट में सर्किट ब्रेकर कहा गया. इसकी वजह से कॉन्टैक्ट ट्रेस करने वाले अधिकारियों को कोरोना के मामलों की पहचान करने के लिए अतिरिक्त वक्त मिल गया था. बता दें कि दुनिया में कोरोना के कुल मामलों की संख्या 3.8 करोड़ हो चुकी है और 10 लाख 91 हजार लोग कोरोना से जान गंवा चुके हैं.