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कोरोना

ठंडे देशों में ही है कोरोना वायरस की भयावह तबाही, भारत के लिए राहत

ठंडे देशों में ही है कोरोना वायरस की भयावह तबाही, भारत के लिए राहत
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कोरोना वायरस के कहर को रोकने के लिए वैक्सीन बनने में शायद एक साल से ज्यादा तक का वक्त लग जाए, ऐसे में हर देश वायरस की तबाही को कम करने की कोशिश कर रहा है. भारत में भी कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और आंकड़ा 9000 के पार पहुंच चुका है. हालांकि, इस बीच कुछ स्टडीज में वैज्ञानिकों ने जो नतीजे निकाले हैं, उनसे भारत को थोड़ा सुकून मिल सकता है.
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कोरोना वायरस को लेकर अभी साफ तौर पर कोई भी नतीजा निकालना जल्दबाजी होगी लेकिन डेटा से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि गर्म देशों में कोरोना वायरस का प्रकोप ठंडे देशों की तुलना में कम है.
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जहां यूरोप और अमेरिका में कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा तबाही मची है, वहीं अफ्रीकी और एशियाई देशों में इसका असर कम नजर आ रहा है. मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों ने भी अपने शुरुआती विश्लेषण में कहा है कि गर्म जगहों पर रहने वाले समुदायों में कोरोना वायरस संक्रमण की रफ्तार धीमी नजर आ रही है. स्टडी में ये भी कहा गया है कि मॉनसून आते ही भारत समेत एशिया के कई देशों में कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा कम हो सकता है.
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स्टडी में बताया गया है कि 22 मार्च तक कोरोना वायरस संक्रमण के 90 फीसदी मामले 2 से 17 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाले इलाकों से ही थे. इन इलाकों में ह्यूमिडिटी (उमस) भी 4 से 9 ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी. जबकि 18 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान और 9 ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा ह्यूमिडिटी वाले देशों में कोरोना वायरस के 6 फीसदी से भी कम मामले थे. इस विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि मॉनसून आते ही एशियाई देशों में संक्रमण सुस्त पड़ सकता है क्योंकि मॉनसून में ह्यूमिडिटी 10 ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा होती है.
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स्डटी के लेखकों का कहना है कि एशिया के कई हिस्सों, मध्य-पूर्व के कुछ देशों और दक्षिणी अमेरिका में कोरोना वायरस संक्रमण की दर कम है जबकि इन देशों ने यूरोप की तरह क्वारनटीन समेत कड़े कदम भी नहीं उठाए.
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एमआईटी के कंप्यूटेशनल साइंटिस्ट और स्टडी के को-ऑर्थर कासिम बुखारी के मुताबिक, जहां कहीं भी तापमान कम था, वहां कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़े. यूरोप में दुनिया का सबसे बेहतरीन हेल्थकेयर सिस्टम है लेकिन वो कोरोना वायरस से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ. गर्म और ठंडे इलाकों का ये तर्क अमेरिका के भीतर भी लागू होता है. अमेरिका के एरिजोना, फ्लोरिडा और टेक्सास जैसे ज्यादा तापमान वाले दक्षिणी इलाकों में कोरोना वायरस की रफ्तार कम है जबकि वॉशिंगटन, न्यू यॉर्क और कोलोराडो जैसे ठंडे राज्यों को कोरोना वायरस के संक्रमण ने बुरी तरह चपेट में ले लिया. वहीं, मध्य-पूर्व में कम तापमान वाले ईरान की तुलना में सऊदी अरब जैसे गर्म देशों में कोरोना वायरस का प्रभाव कम है.
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भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और अफ्रीकी देशों में कोरोना वायरस संक्रमण के कम मामलों के पीछे एक दलील ये भी दी जाती है कि यहां टेस्ट कम हो रहे हैं. हालांकि, शोधकर्ताओं ने कहा कि सिंगापुर, यूएई और सऊदी अरब जैसे गर्म मौसम वाले देशों ने अमेरिका, इटली और कई अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में प्रति दस लाख की आबादी पर ज्यादा टेस्ट किए हैं.
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शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन गर्म देशों की बात की गई है, उन पर कम टेस्टिंग का तर्क भी लागू नहीं होता है. सिंगापुर, यूएई जैसे देशों में रोजाना हजारों लोग आते-जाते रहते हैं. यानी विदेशियों की ज्यादा आवाजाही, लॉकडाउन और क्वारनटीन के अलावा भी कुछ ऐसे फैक्टर हैं जो संक्रमण की रफ्तार को कम करने में भूमिका अदा कर सकते हैं.
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दो अन्य स्टडी में भी कोरोना वायरस को लेकर यही नतीजे निकाले गए हैं. स्पेन और फिनलैंड के शोधकर्ताओं के एक विश्लेषण में कहा गया है कि वायरस 2 से 10 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान में ज्यादा सक्रिय होता है और तेजी से फैलता है. वैज्ञानिकों के एक अन्य समूह ने भी पाया कि चीन में महामारी की शुरुआत में गर्म और ज्यादा उमस वाले शहरों में संक्रमण की दर कम थी.
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स्टडी में कहा गया है कि 15 मार्च के बाद 18 डिग्री सेल्यिसस से ऊपर के तापमान वाले देशों में भी 10,000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, ऐसे में इससे ज्यादा तापमान वाले देशों पर कोरोना वायरस की रफ्तार की निगरानी की जानी चाहिए. एमआईटी के शोधकर्ताओं ने इस बात को लेकर आगाह किया कि उनके डेटा में अभी कई फैक्टर गायब हो सकते हैं. हो सकता है कि वायरस तेजी से खुद को बदल रहा हो और विकास कर रहा हो. इसके अलावा, केस फर्टिलिटी रेशियो, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संक्रमण जैसे कई महत्वपूर्ण जानकारियों का अध्ययन किया जाना अभी बाकी है. शोधकर्ताओं ने कहा कि उनकी इस स्टडी का ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि गर्म देशों में कोरोना वायरस फैलेगा ही नहीं. हर देश को संक्रमण की रफ्तार कम करने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे.
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शोधकर्ता डॉ. बुखारी का कहना है कि सरकारों को यात्राओं पर प्रतिबंध, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों में बिल्कुल ढील नहीं देनी चाहिए. हो सकता है कि ज्यादा तापमान वायरस के असर को कम कर रहा हो लेकिन इसका ये मतलब नहीं होगा कि संक्रमण रुक जाएगा. गर्म तापमान वाले इलाकों में कोरोना वायरस के लिए मुश्किल परिस्थितियां हो सकती हैं लेकिन इसके बावजूद वह किसी सतह या हवा में कई दिनों के बजाय कई घंटों तक जिंदा रह सकता है.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के यूएस रीजनल असिस्टेंट डायरेक्टर जरबस बारबोसा ने कहा, कोरोना वायरस और मौसम के संबंध की तस्वीर साफ होने में कम से कम 4 से 6 हफ्ते और लग जाएंगे. दुनिया के हर हिस्से में लोकल ट्रांसमिशन का होना ये दिखाता है कि फ्लू या सांस की अन्य बीमारियों की तुलना में कोरोना वायरस गर्म मौसम के खिलाफ ज्यादा प्रतिरोधक हो सकता है.
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हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन्फ्लुएंजा जैसे सीजनल वायरस भी गर्मी में पूरी तरह से गायब नहीं हो जाते हैं. ये लोगों के शरीर में और दुनिया के तमाम हिस्सों में कम मात्रा में मौजूद होते हैं और अनुकूल परिस्थिति मिलते ही संक्रमण फैलाना शुरू कर देते हैं. गर्म तापमान और ह्यूमिडिटी सिर्फ जुलाई और अगस्त महीने में उत्तरी गोलार्ध के कुछ हिस्सों में ही देखने को मिल सकते हैं इसलिए इसका असर सिर्फ कुछ इलाकों में थोड़े वक्त के लिए ही रहेगा. संभव है कि कोरोना वायरस अपनी रफ्तार धीमी करने के बाद फिर जोरदार वापसी कर ले, ऐसे में सतर्क रहना बेहद जरूरी है.
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