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कोरोना

ठीक होने के 4 महीने बाद भी शरीर में मौजूद हैं कोविड-19 एंटीबॉडीः स्टडी

Covid-19 antibodies present in patients 4 months after recovery
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कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों के शरीर में एक बदलाव देखने को मिल रहा है. इससे ठीक होने वाले मरीजों के शरीर में बहुत तेजी से कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनते हैं. लेकिन उसके बाद वो बढ़ना रुक जाते हैं. आइसलैंड में की गई एक स्टडी के अनुसार ठीक हुए मरीजों में से 90 फीसदी मरीजों के शरीर में चार महीने बाद भी कोविड-19 एंटीबॉडी मिले हैं. 

Covid-19 antibodies present in patients 4 months after recovery
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न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की खबर के मुताबिक इससे पहले की गई स्टडी में एंटीबॉडी का स्तर गिरने की जानकारी आई थी. उसमें बताया गया था कि कोरोना से ठीक होने के कुछ महीने बाद शरीर में से कोविड-19 एंटीबॉडी धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं. आपको बता दें हमारे शरीर में जब किसी वायरस या बीमारी का प्रवेश होता है तो उससे लड़ने वाली विशेष कोशिकाओं को एंटीबॉडी कहते हैं. ये हमें बीमार पड़ने से बचाती हैं.

Covid-19 antibodies present in patients 4 months after recovery
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ये दोनों स्टडीज ये बताती हैं कि शरीर में कोरोना के खिलाफ इम्युनिटी कितने दिन तक रहती है. पहली स्टडी में इसे कम होता बताया गया था. लेकिन नई स्टडी में इसे शरीर में टिकने वाला बताया गया है. यह जानकारी दी है डीकोड जेनेटिक्स कंपनी के सीईओ कारी स्टीफैंसन ने. कारी ने कहा कि हमें इससे ये पता चलेगा कि कोरोना की वैक्सीन कितने दिन तक असरदार रहेंगी. 

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Covid-19 antibodies present in patients 4 months after recovery
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कारी ने बताया कि अगर शरीर में वैक्सीन देने के बाद भी ज्यादा दिन तक एंटीबॉडी नहीं बनते तो दिक्कत हो सकती है. इसलिए जरूरी है कि शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी बनते रहें. या फिर कुछ समय के लिए टिक जाएं. इस स्टडी को करने के लिए कारी की कंपनी ने आइसलैंड के 30 हजार से ज्यादा लोगों के शरीर में एंटीबॉडी की जांच की है. 

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जितने लोगों पर स्टडी की गई, उनमें से 1 फीसदी लोग कोरोना वायरस से संक्रमित थे. इस एक फीसदी में से 56 फीसदी ने अच्छे से जांच कराई थी. गोल्ड स्टैंडर्ड पीसीआर लैब टेस्ट कराया था. 14 फीसदी लोगों का औपचारिक तौर पर जांच नहीं हुआ लेकिन ये लोग क्वारनटीन हो गए थे. बचे हुए 30 फीसदी लोगों की एंटीबॉडी टेस्ट से भविष्य में होने वाले संक्रमण की जांच की गई. 

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करीब 1215 लोगों में पीसीआर ने पुख्ता तौर पर संक्रमण की बात कही थी. 91 फीसदी लोगों के शरीर में एंटीबॉडी का स्तर पहले दो महीने बहुत तेजी से बढ़ा लेकिन उसके बाद अगले चार महीने तक यह शरीर में एक स्तर पर जाकर रुक गया है. जो कि अच्छी बात है. अगर ये एंटीबॉडी शरीर में रुकते हैं और ये कम नहीं होते हैं तो भविष्य में दोबारा कोरोना संक्रमण की आशंका कम हो जाती है. 

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यह स्टडी द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुई है. इसमें एक ही देश के लोगों पर किए गए अध्ययन का जिक्र किया गया है. इसलिए हो सकता है कि दुनिया के अलग-अलग देशों में इस तरह के अध्ययन का परिणाम वैसा ही आए जैसा आइसलैंड में आया है. लेकिन यह स्टडी बताती है कि कैसे सही तरीके से एंटीबॉडी जांच से यह पता चलता है कि शरीर में संक्रमण का स्तर कितना है. 

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