कोरोना वायरस के इस डरावने दौर के बीच एक खुशखबरी आई है. वो ये है कि अमेरिका में रह रहे तीन भारतीय जो कोरोना वायरस कोविड-19 की वजह से गंभीर रूप से बीमार थे. अब वो ठीक हो गए हैं. वो भी पूरी तरह से. इलाज का तरीका भी चिकित्सा विज्ञान का बेहद पारंपरिक और भरोसेमंद पद्धति है. (फोटोः AFP)
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चिकित्सा विज्ञान की यह तकनीक बेहद बेसिक है. इसका उपयोग पूरी दुनिया कर सकती है. इससे वाकई में लाभ होता दिखाई दे रहा है. यह तकनीक भरोसेमंद भी है. वैज्ञानिक पुराने मरीजों के खून से नए मरीजों का इलाज करने की तकनीक को कोवैलेसेंट प्लाज्मा कहते हैं. (फोटोः AFP)
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अमेरिका में वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने मिलकर यही तरीका अपनाया है. उनका मानना है कि इलाज की यह पारंपरिक पद्धति बेहद कारगर है. कोवैलेसेंट प्लाज्मा तकनीक के जरिए कई बीमारियों को ठीक किया जा चुका है. इससे नए मरीजों के खून में पुराने ठीक हो चुके मरीज का खून डालकर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जाती है. (फोटोः AFP)
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अमेरिका के ह्यूस्टन में स्थित बेलर सेंट ल्यूक मेडिकल सेंटर में पांच लोग भर्ती थे. इस सेंटर में चलने वाले बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के उपाध्यक्ष अशोक बालासुब्रमण्यम ने बताया कि हमनें पांचों लोगों को इलाज कोवैलेसेंट प्लाज्मा पद्धति से किया है. पांचों अब ठीक हैं. (फोटोः AFP)
अशोक ने बताया कि हमारे कॉलेज को क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति भी मिली हुई है. इसे हम अगले हफ्ते से शुरू करेंगे. इससे पहले जो पांच लोग ठीक हुए हैं. उनमें तीन भारतवंशी हैं. दो अमेरिकी हैं. अब हम इनके खून से प्लाज्मा लेकर अन्य लोगों को ठीक करेंगे. फिर उनके खून से प्लाज्मा लेंगे. यही तरीका आगे बढ़ाते जाएंगे. (फोटोः AFP)
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अशोक ने बताया कि अभी कोरोना वायरस की वैक्सीन बनने में करीब 12 से 18 महीने लगेंगे. तब तक ये तरीका लोगों को बचाने के लिए सबसे बेहतरीन है. ये पद्धति एशियाई देशों में भी काफी सालों से चली आ रही है. (फोटोः AFP)
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द फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अभी तक इस पद्धति से कोरोना के इलाज के लिए प्रमाणित नहीं किया है लेकिन इस तरीके से अन्य बीमारियों का इलाज होता आया है. (फोटोः AFP)
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इससे पहले, चीन के द शेनझेन थर्ड पीपुल्स हॉस्पिटल ने इलाज के इस तरीके की रिपोर्ट 27 मार्च को प्रकाशित की थी. अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि जिन पांच मरीजों का इलाज पुराने कोरोना मरीजों के खून से किया गया था, वो 36 से 73 साल के बीच थे. (फोटोः AFP)
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इस तकनीक में खून के अंदर वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बन जाते हैं. ये एंटीबॉडी वायरस से लड़कर उन्हें मार देते हैं. या फिर दबा देते हैं. शेनझेन थर्ड अस्पताल में संक्रामक बीमारियों के अध्ययन के लिए नेशनल क्लीनिकल रिसर्च सेंटर भी है. (फोटोः AFP)
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चीन के अस्पताल के उप-निदेशक लिउ यिंगजिया ने बताया कि हमने 30 जनवरी से ही कोरोना से ठीक हुए मरीजों को खोजना शुरू कर दिया था. उनके खून लिए फिर उसमें से प्लाज्मा निकाल कर स्टोर कर लिया. जब नए मरीज आए तो उन्हें इसी प्लाज्मा का डोज दिया गया. (फोटोः AFP)