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कोरोना

पुराने कोरोना मरीजों का शरीर क्या लड़ पाएगा UK कोरोना वैरिएंट से?

Effect of old Corona Antibody on UK Covid Variant
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ब्रिटेन में मिला कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन पूरी दुनिया को धीरे-धीरे अपनी चपेट में ले रहा है. दवा कंपनियों ने दावा भी किया है कि उनकी वैक्सीन यूके कोरोना वायरस के नए वैरिएंट पर असरदार है. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या जिन लोगों के शरीर में कोरोना की एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है, वो इस नए कोरोना वायरस को रोक पाएगी. क्या पुराने कोरोना के एंटीबॉडी कोविड-19 के इस नए और म्यूटेटेड रूप से लड़ने में सक्षम होंगी? जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट... (फोटोःगेटी)

Effect of old Corona Antibody on UK Covid Variant
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अमेरिका के शोधकर्ताओं ने पुराने कोरोना मरीजों की एंटीबॉडी से ब्रिटेन के नए कोरोना वैरिएंट B.1.1.7 का सामना कराया. क्योंकि बड़ा सवाल ये था कि जिन लोगों को पहले कोरोना का संक्रमण हो चुका है. जिनके शरीर में पुराने कोरोना की एंटीबॉडी बन चुकी है, क्या वो नए वैरिएंट या स्ट्रेन से लड़ने और उसे कमजोर करने में सक्षम है. जांच में इसके नतीजे बेहद सकारात्मक आए. (फोटोःगेटी)

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येल यूनिवर्सिटी में इम्यूनोबायोलजी के प्रोफेसर अकीको इवास्की ने बताया कि पुराने कोरोना वायरस की एंटीबॉडी कोरोना वायरस के नए यूके स्ट्रेन B.1.1.7 को बहुत हद तक रोकने में सक्षम है. यानी सिर्फ 0.5 फीसदी लोग ही ऐसे हो सकते हैं जिनके शरीर में मौजूद पुराने कोरोना वायरस एंटीबॉडी नए कोरोना स्ट्रेन से लड़ न पाएं. (फोटोःगेटी)

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अकीको इवास्की ने बताया कि नए कोरोना वायरस के स्ट्रेन में मौजूद स्पाइक प्रोटीन यानी वो कंटीली बाहरी परत जिससे शरीर की कोशिकाओं से वायरस चिपकता है, उसे एंटीबॉडी खत्म कर दे रही हैं. शरीर में मौजूद कुछ अन्य एंटीबॉडी बाहरी परत खत्म होने के बाद कोरोना के नए स्ट्रेन के बचे हुए हिस्से को बेहद कमजोर कर देती हैं. इससे ये फायदा है कि अगर आपको पहले कोरोना वायरस का संक्रमण हो चुका है तो आपको यूके कोरोना वायरस के नए वैरिएंट से घबराने की जरूरत नहीं है. (फोटोःगेटी)

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अकीको इवास्की की टीम ने पुराने कोरोना वायरस से संक्रमित 579 मरीजों की एंटीबॉडी ली. जब अध्ययन किया तो पता चला कि इसमें से ज्यादातर एंटीबॉडी ने वायरस के स्पाइक प्रोटीन यानी बाहरी परत पर हमला किया. यही काम कोरोना वायरस के नए यूके स्ट्रेन के साथ भी हुआ. यानी यूके कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन हमारे शरीर में पहले से बने एंटीबॉडी के आगे कमजोर पड़ गया. (फोटोःगेटी)

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स्पाइक प्रोटीन यानी कोरोना की बाहरी परत 1273 मॉलीक्यूल्स की होती है, जिसे अमीनो एसिड कहते हैं. ये एक चेन की तरह आपस में बंधे होते हैं. वायरस के शरीर के ऊपर मौजूद प्रोटीन के कांटे इंसानी शरीर की कोशिकाओं में घुसने के लिए चाबी का काम करते हैं. इसीलिए दुनियाभर में अब तक जितनी भी वैक्सीन बनी हैं, ये सब इसी चाबी को खत्म और कमजोर करने के प्रयास में लगी हैं. (फोटोःगेटी)

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इवास्की और उनकी टीम को सिर्फ 0.3 फीसदी मरीज ऐसे मिले जिनकी एंटीबॉडी यूके वैरिएंट पर पूरी तरह से काम नहीं कर सकीं. हालांकि अकीको इवास्की का कहना है कि ये बेहद छोटी मात्रा है, ऐसे मरीजों के शरीर में भविष्य में मजबूत एंटीबॉडी बनने की पूरी संभावना है. इसलिए कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन से घबराने की जरूरत नहीं है. (फोटोःगेटी)

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इस स्टडी के बाद ब्रिटेन में खुशी का माहौल है. इवास्की ने कहा कि सबसे पहले दुनियाभर के लोगों को वैक्सीन की पहली डोज मिल जानी चाहिए, क्योंकि भविष्य में कोरोना वायरस के कई खतरनाक वैरिएंट सामने आने की पूरी आशंका है. इसके बाद जैसे ही दूसरी डोज आए, उसे तुरंत लोगों को फिर से देना चाहिए. लेकिन तब तक लोगों को मास्क पहने रखने की जरूरत है. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की जरूरत है. (फोटोःगेटी) 

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