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कोरोना

लखनऊ में कोरोना का तांडव, लोग दाह संस्कार के लिए ढूंढ रहे जगह

Lucknow.
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कोरोना के संकट काल में शव यात्रा का भी धंधा बन गया है. अंतिम यात्रा के तैयारी करवानी है तो उसके लिए भी लोग श्मशान घाटों पर मौजूद मिलने लगे हैं. कोरोना में होने वाली मौत पर तो प्रशासनिक अमले की नजर है. कोविड प्रोटोकॉल के तहत उनके परिजनों का अंतिम संस्कार करवाया जा रहा है. वहीं, इस संकट काल में उन लोगों के लिए भी परेशानी कम नहीं जिनके घर में किसी अपने की मौत कोविड से तो नहीं हुई लेकिन उनकी समस्याएं बढ़ गई हैं. (प्रतीकात्मक फोटो) (इनपुट-संतोष कुमार)

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हालात ऐसे हो चले हैं कि श्मशान घाट पर पैसा लेकर शव यात्रा की तैयारी करवाई जा रही है. शव ले जाने के लिए शव विमान तैयार होने लगे हैं. वहीं, तमाम लोग श्मशान घाट पर वेटिंग लिस्ट को देखते हुए अपने पैतृक निवास या दूसरे शहर में जाकर अंतिम संस्कार करना ज्यादा मुनासिब समझ रहे हैं. (प्रतीकात्मक फोटो)

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जांच में पाया कि राकेश और कुलदीप नाम के दो युवक बांस, घास-फूस और रस्सी को बांधकर अंतिम यात्रा के लिए विमान तैयार करते हैं. राकेश और कुलदीप लखनऊ के डालीगंज इलाके के रहने वाले हैं. भैसा कुंड पर कोविड से हुई मौतों के लिए तो प्रशासनिक अमला पूरे प्रोटोकॉल के साथ मुस्तैद है लेकिन कुलदीप और राकेश जैसे लड़के उन समूह के अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे हैं जिनकी मौत कोरोना से नहीं हुई. अमूमन भैसा कुंड पर नगर निगम के लोग यह काम करते हैं लेकिन आज हालात बिगड़ चुके हैं. ऐसे में कई लड़के शव यात्रा की तैयारी करवाने के लिए 400 रुपये से 500 रुपये लेकर यह काम करते हैं. ऐसे ही 10 से 12 लड़के सिर्फ भैसा कुंड पर काम कर रहे हैं. ये लोग दिन भर में 5 से 10 शव यात्रा का इंतजाम कर देते हैं.

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अंतिम यात्रा का सामान बेचने वाले दुकानदारों के पास पहुंची. वहां राजाजी पुरम के रहने वाले जितेन्द्र सिंह मिले. जितेन्द्र की बड़ी बहन की हार्टअटैक से मौत हो गई थी. जितेंद्र इस अंतिम यात्रा का सामान खरीद रहे थे, जल्दी-जल्दी अपनी निजी गाड़ी में पूरा सामान बांस, घास, रस्सी, कपड़ा और फूल रख रहे थे. जितेंद्र अपनी बड़ी बहन का अंतिम संस्कार कानपुर के परियर घाट पर करेंगे. उनसे जब वजह पूछी गई तो वह बोले कि लखनऊ में जगह कहां है? कहां कर दे बहन का अंतिम संस्कार और फफक कर रो पड़े. (प्रतीकात्मक फोटो)

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डालीगंज में अंतिम संस्कार का पूरा सामान और शव रखने के लिए फ्रीजर तक किराए पर देने वाले अंकित गुप्ता से बातचीत की गई तो उन्होंने अपनी समस्याएं बताईं. उन्होंने बताया कि इस वक्त तमाम शहरों से जो सामान आता है वह पहुंच नहीं पा रहा है. कोरोना के चलते कई परिवार ऐसे भी आते हैं जिनके घर में मौत तो कोरोना से नहीं होती लेकिन शव को पहुंचाने वाले नहीं होते. शव की अंतिम यात्रा की तैयारी कराने वाले नहीं होते. तब अंकित अपने दुकान के लड़कों को मदद के लिए वहां भेजते हैं. आम दिनों में अंकित 1 दिन में तीन से चार शव का सामान बेच लेते थे. आज वह बढ़कर 5 से 10 शव के समान रोज बिक रहा है. (प्रतीकात्मक फोटो)

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