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कोरोना

स्टडीः भारत, US, ब्रिटेन के कोरोना मरीजों के फेफड़ों में हो रही ये भयावह समस्या

lung fibrosis in corona patients
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कोरोना वायरस की वजह से भारत, अमेरिका और यूरोप के कई मरीजों में फेफड़ों की एक बड़ी समस्या सामने आ रही हैं. अगर ये समस्या गंभीर होती है तो मरीज की जान भी जा सकती है. कोविड मरीजों को इस फेफड़ों के इस संक्रमण की वजह से थकान रहती है. सांस लेने में काफी दिक्कत होती है. ये समस्या भारत, अमेरिका और यूरोप के कई मरीजों में सामने आई है. (फोटोःगेटी)

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कोरोना वायरस की वजह से हो रही इस बीमारी का नाम है लंग फाइब्रोसिस (Lung Fibrosis). इसे पल्मोनरी फाइब्रोसिस (Pulmonary Fibrosis) भी कहते हैं. इसके बारे में एक लेख लंग इंडिया नाम के मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसे लिखा है डॉ. जरीर एफ. उदवादिया, डॉ. परवैज ए. कौल और डॉ. लूका रिडेल्डी ने. तीनों डॉक्टरों ने इसे पोस्ट कोविड-19 इंटरस्टिशियल लंग डिजीस (PC-ILD) कहा है. (फोटोः गेटी)

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द इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार पूरी दुनिया में 6 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना संक्रमण हो चुका है. इनमें से ज्यादातर हल्के या मध्यम दर्जे के संक्रमण से जूझ रहे हैं. सिर्फ 10 फीसदी को गंभीर कोविड-19 निमोनिया हुआ है. मात्र 5 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS) नाम की बीमारी से परेशान हैं. यानी यही 5 से 10 फीसदी लोग हैं जिन्हें लंग फाइब्रोसिस (Lung Fibrosis) की शिकायत हो रही है. (फोटोः गेटी)

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लंग फाइब्रोसिस (Lung Fibrosis) बीमारी में फेफड़ों के अंदर मौजूद ऊतक यानी टिश्यू (Tissue) सूजने लगते हैं. इसकी वजह से फेफड़ों के अंदर हवा का स्थान कम होने लगता है. नतीजा सांस लेने में दिक्कत होती है. इसकी वजह से इंसान को थकान महसूस होती है. अगर स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाए तो मरीज की मौत भी हो सकती है या उसे दिल का दौरा पड़ सकता है. (फोटोः गेटी)

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डॉ. उदवादिया ने बताया कि हमें लगातार लंग फाइब्रोसिस (Lung Fibrosis) के केस देखने को मिल रहे हैं. जुलाई के महीने में एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने भी कहा था कि देश के डॉक्टरों को कोरोना मरीजों के ठीक होने के बाद भी उनके अन्य अंगों की जांच करके देखनी चाहिए कि कोरोना की वजह से उन अंगों में कोई दिक्कत तो नहीं है. (फोटोः गेटी)

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डॉ. उदवादिया ने बताया कि कुछ मरीजों को ठीक होने के बाद भी उनके घर पर भी ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है. मरीज के ठीक होने के तीन महीने बाद जब सीटी स्कैन किया जाता है तो उनके फेफड़ों की स्थिति बहुत खराब मिलती है. तीन दशक पहले लंग फाइब्रोसिस (Lung Fibrosis) बीमारी आमतौर पर बहुत कम लोगों को होती थी. ज्यादातर बुजुर्गों को होती थी. (फोटोः गेटी)

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फेफड़ों के ऊतक सूज जाते हैं. ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. ऐसे में खून का बहाव शरीर में कम होने लगता है. दिल ढंग से काम नहीं करता. नतीजा मल्टी ऑर्गन फेल्योर, हार्ट अटैक या गंभीर अवस्था में मौत भी हो सकती है. डॉ. उदवादिया कहते हैं कि मुझे उम्मीद है कि ज्यादातर लोग लंग फाइब्रोसिस (Lung Fibrosis) से ठीक हो सकते हैं लेकिन कुछ लोगों में यह बीमारी घर कर जाएगी. (फोटोः गेटी)

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डॉ. उदवादिया कहते हैं कि ज्यादा समय तक अगर लंग फाइब्रोसिस (Lung Fibrosis) किसी मरीज में रहता है तो उसे श्वसन प्रणाली से संबंधित गंभीर बीमारियां लंबे समय के लिए हो सकती है. या फिर स्थाई तौर पर फेफड़ों की बीमारियों से ग्रसित हो सकता है. बीमारी का इलाज तो है लेकिन सबसे बड़ा इलाज है बचाव. (फोटोः गेटी)

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