हम स्टूडेंट्स और मजदूरों में कोई खास अंतर नहीं है. जैसे उनकी सीमित कमाई है, वैसे ही हमें लिमिटेड खर्च मिलता है. वो भी अपने अपने घर से दूर कहीं फंसे हैं और हम भी. बस अंतर ये है कि सरकार उन्हें समझ रही है, हमें कौन समझ रहा है. मकान मालिक कैश में किराया मांग रहे, वो भी पूरा. खाना बनाना ढंग से आता नहीं, सोचा था कि यहां से अफसर बनकर घर लौटेंगे, अब डर लग रहा है कि कहीं कोरोना हो गया तो घरवाले देख भी नहीं पाएंगे, कहां फंस गए....ये दर्द एक छात्र का है जो दिल्ली के स्टूडेंट हब मुखर्जी नगर में रह रहा है. लेकिन बाकियों का हाल भी कुछ अलग नहीं है, आजकल ज्यादातर छात्रों के मन में ऐसा ही कुछ चल रहा है. आइए जानें- मुखर्जी नगर में इस वक्त कैसे रह रहे हैं स्टूडेंट और क्या हैं उनकी मुश्किलें...
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