पूरे देश में कोरोनावायरस को लेकर वैक्सीनेशन हो रहा है. युवाओं और बुजुर्गों सबको वैक्सीन लगाए जा रहे हैं. ताकि कोरोना के संक्रमण को भविष्य में रोका जा सके. या फिर उसके प्रभाव को कम किया जा सके. लेकिन हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो अनजाने में ही सही पर कोरोना संक्रमण फैलाते हैं. इन्हें सुपरस्प्रेडर (Superspreader) कहा जाता है. इनसे बचकर रहना चाहिए. साथ ही आपके आसपास ऐसे लोग हों तो उन्हें समझाने की भी जरूरत है. आइए जानते हैं कि कौन हैं ये लोग? ये कैसे फैलाते हैं कोरोना संक्रमण? (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
आखिरकार सुपरस्प्रेडर (Superspreader) होता क्या है? जब एक इंसान की छींक, सांस या खांसी से निकली कोरोना से भरी हुई थूक, स्वैब या तरल बूंदें किसी दूसरे इंसान तक हवा के जरिए पहुंचती हैं तो छींकने, खांसने वाले को कोरोना स्प्रेडर कहते हैं. जब यही शख्स अपनी वजह से बड़े समुदाय या समूह को संक्रमित करने की संभावित क्षमता रखता है तो उसे सुपरस्प्रेडर कहते हैं. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
हालांकि, संक्रमण संबंधी बीमारियों के जानकार कहते हैं कि किसी संक्रमित व्यक्ति का व्यवहार, उसके द्वारा जोर से बातें करना, तेजी से सांस लेना, खुले में छींकना या खांसना, कोरोना संबंधी नियमों को न मानना ही उसे सुपरस्प्रेडर बनाता है. (प्रतीकात्मक फोटोःगेटी)
प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक जिनके शरीर का बॉडी मास इंडेक्स (Body Mass Index - BMI) ज्यादा होता है, वो सुपरस्प्रेडर (Superspreader) की कैटेगरी में सबसे ऊपर आते हैं. क्योंकि ये लोग संतुलित BMI वाले शख्स की तुलना में ज्यादा बायो-एयरोसोल हवा में निकालते हैं. (फोटोःगेटी)
अगर कोई बुजुर्ग है और उसका बॉडी मास इंडेक्स (Body Mass Index - BMI) ज्यादा है तो वह भी सुपरस्प्रेडर की कैटेगरी में आता है. क्योंकि इस उम्र में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. ऐसे में जब वो छींकते या खांसते हैं तो ज्यादा रेस्पिरेटरी पार्टिकल्स बाहर निकालते हैं. इन्हीं पार्टिकल्स के साथ कोरोना वायरस हवा में मिल जाता है. जिसकी वजह से ज्यादा लोगों को संक्रमित होने का खतरा रहता है. (फोटोःगेटी)
युवाओं के साथ भी ये दिक्कत हो सकती है कि वो सुपरस्प्रेडर (Super spreader) की श्रेणी में शामिल हो. क्योंकि ये नए कोरोना वायरस वैरिएंट से जल्दी संक्रमित हो सकते हैं. अगर लक्षणों पर ध्यान नहीं दिया तो कई लोगों को संक्रमित कर सकते हैं. ये लोग एसिम्प्टोमैटिक स्प्रेडर बन जाते हैं. क्योंकि नए वायरसों के लक्षण सभी को पता नहीं होते. वो इसे सामान्य सर्दी जुकाम समझते हैं. साथ ही लापरवाही भरा रवैया, मास्क न पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करना आदि इन्हें सुपरस्प्रेडर (Super spreader) की कैटेगरी में डालता है. (फोटोःगेटी)
युवाओं को कोरोना काल में नियमों में थोड़ी ढील मिलती है तो वो पार्टी करने, पब या डिस्को जाने, घूमने-टहलने या दोस्तों के साथ खुलकर मिलते हैं. लेकिन ऐसे में अगर कोई एसिम्प्टोमैटिक स्प्रेडर है तो वो अपने साथ अपने कई दोस्तों और समूह को कोरोना के संक्रमण के खतरे में डालता है. इसलिए युवाओं को चाहिए कि वो कोरोना संबंधी नियमों के पालन के साथ, जीवन का आनंद लें. (फोटोःगेटी)
अब अगर आपको कोरोना के सुपरस्प्रेडर (Superspreader) से बचना है तो बेहतर है कि आप कोरोना संबंधी नियमों का पालन सख्ती से करें. क्योंकि आप ये दावा नहीं कर सकते कि आपको कोरोना का संक्रमण कहां हुआ. जरूरी नहीं कि ये किसी समूह, शख्स या कार्यस्थल से मिले. हो सकता है कि आप सड़क पर कार से जा रहे हों और वहां थोड़ी देर पहले कोई संक्रमित व्यक्ति छींक कर या खांसकर हवा में संक्रमण फैला चुका हो. वहीं हवा आपको संक्रमित कर सकती है. (फोटोःगेटी)