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कोरोना

मॉनसून में कहर ढाएगा कोरोना, IIT की स्टडी में हुआ ये खुलासा

मॉनसून में कहर ढाएगा कोरोना, IIT की स्टडी में हुआ ये खुलासा
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भारतीय मौसम विभाग ने अगले पांच दिनों के लिए मल्टी हजार्ड वार्निंग जारी की है. यानी देश के कई हिस्सों में तेज बारिश हो सकती है. इसी बीच, आईआईटी बॉम्बे को दो प्रोफेसर्स ने एक स्टडी कर बताया है कि मॉनसून के सीजन में कोरोना वायरस तेजी से फैल सकता है. क्योंकि गर्मी खत्म होगी और हवा में ह्यूमेडिटी यानी आद्रता बढ़ जाएगी. ऐसी स्थिति में कोरोना वायरस के फैलने की आशंका बढ़ जाएगी. इसलिए मॉनसूनी बारिश के मौसम में देश के लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है.
मॉनसून में कहर ढाएगा कोरोना, IIT की स्टडी में हुआ ये खुलासा
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आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) के प्रोफेसर रजनीश भारद्वाज और प्रोफेसर अमित अग्रवाल ने कहा कि गर्मियों में हवा सूखी होती है. उसमें आद्रता बेहद कम होती है. या फिर नहीं होती है. ऐसे में वायरस को हवा में तैरने का मौका कम मिलता है. वह जल्दी सूख जाता है. 
मॉनसून में कहर ढाएगा कोरोना, IIT की स्टडी में हुआ ये खुलासा
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मॉनसून आने पर हवा में ह्यूमेडिटी यानी आद्रता का स्तर बढ़ जाएगा. सूरज की गर्मी कम हो जाएगी. ऐसे में कोरोना वायरस को हवा में तैरने का मौका ज्यादा मिलेगा. इसकी चपेट में जो भी लोग आएंगे वो कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं.
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प्रो. भारद्वाज ने बताया कि सूखी जगहों पर अगर कोई व्यक्ति छींकता या खांसता है तो उसके नाक मुंह से निकली म्यूकस, लार या पानी की बूंदे गर्मी से सूख जाती हैं. लेकिन बारिश के सीजन में ऐसा नहीं होगा.
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प्रो. अमित अग्रवाल ने कहा कि अप्रैल में भारत में कोरोना वायरस के मामले उतने नहीं आए. क्योंकि लॉकडाउन था और मौसम भी गर्म था. हमने न्यूयॉर्क, शिकागो, मियामी, सिंगापुर, सिडनी और लॉस एजिंल्स के अलग-अलग मौसम में वायरस के संक्रमण दर का अध्ययन किया. यह अध्ययन 1 मार्च से 10 अप्रैल तक किया गया.
मॉनसून में कहर ढाएगा कोरोना, IIT की स्टडी में हुआ ये खुलासा
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प्रो. अग्रवाल कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति छींकता या खांसता है तो उसने नाक-मुंह से निकलने वाली बूंदें हवा में तैरते हुए जमीन पर गिरती हैं. इस दौरान जो भी इनके संपर्क में आता है. वह कोरोना संक्रमित हो सकता है.
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अगर कोरोना वायरस से भरी हुई बूंदे गर्मी में सूख जाती है तो खतरा कम हो जाता है. इसलिए दोनों प्रोफेसर्स ने तापमान, आद्रता, बूंदों का आकार और किस सतह पर वह गिरा उसका अध्ययन किया गया.
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दोनों प्रोफेसर्स ने कंप्यूटर मॉडल के आधार पर नाक मुंह से निकलने वाली बूंदों के सूखने के समय का अध्ययन किया. पता चला कि जिस जगह पर ह्यूमेडिटी यानी आद्रता ज्यादा थी, वहां बूंदों को सूखने में ज्यादा समय लगा. जबकि, गर्म जगहों पर जल्दी सूख गई बूंदें और इसकी वजह से वायरस खत्म हो गया.
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प्रो. अग्रवाल और प्रो. भारद्वाज की यह स्टडी अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ फीजिक्स की मैगजीन फीजिक्स ऑफ फ्लूड्स में प्रकाशित हुई है. स्टडी में पता चला कि सिंगापुर में इन बूदों के सूखने का समय सबसे कम और न्यूयॉर्क में सबसे ज्यादा था.
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सिडनी, मियामी और लॉस एजिंल्स में भी बूंदें तुलनात्मक रूप से जल्दी सूख रही थीं. लेकिन न्यूयॉर्क में ऐसा नहीं हो रहा था. इसी वजह से अमेरिका में न्यूयॉर्क कोरोना वायरस का गढ़ बन गया, क्योंकि वहां के मौसम ने कोरोना को खत्म करने में मदद नहीं की.
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