कोरोना वायरस की वैक्सीन आने में करीब 12 से 18 महीने और लगेंगे. तब तक इलाज कैसे किया जाए...इस सवाल से पूरी दुनिया के डॉक्टर परेशान है. अलग-अलग तरीके सामने आ रहे हैं. लेकिन एक तरीका जो बेहद कारगर साबित हो रहा है वह है कोवैलेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट. यानी खून से प्लाज्मा निकालकर दूसरे बीमार शख्स में डाल देना. (फोटोः AFP)
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असल में कोवैलेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट चिकित्सा विज्ञान की बेहद बेसिक टेक्नीक है. करीब 100 सालों से इसका उपयोग पूरी दुनिया कर रही है. इससे कई मामलों में लाभ होता देखा गया है और कोरोना वायरस के मरीजों में लाभ दिखाई दे रहा है. (फोटोः AFP)
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यह तकनीक भरोसेमंद भी है. वैज्ञानिक पुराने मरीजों के खून से नए मरीजों का इलाज करते हैं. होता यूं है कि पुराने बीमार मरीज का खून लेकर उसमें से प्लाज्मा निकाल लेते हैं. फिर इसी प्लाज्मा को दूसरे मरीज के शरीर में डाल दिया जाता है. (फोटोः AFP)
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अब शरीर के अंदर होने वाली प्रक्रिया को समझिए. पुराने मरीज के खून के अंदर वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बन जाते हैं. ये एंटीबॉडी वायरस से लड़कर उन्हें मार देते हैं. या फिर दबा देते हैं. ये एंटीबॉडी ज्यादातर खून के प्लाज्मा में रहते हैं. (फोटोः AFP)
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उनके खून लिए फिर उसमें से प्लाज्मा निकाल कर स्टोर कर लिया. जब नए मरीज आए तो उन्हें इसी प्लाज्मा का डोज दिया गया. ब्लड प्लाज्मा पुराने रोगी से तत्काल ही लिया जा सकता है. (फोटोः AFP)
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इंसान के खून में आमतौर पर 55 फीसदी प्लाज्मा, 45 फीसदी लाल रक्त कोशिकाएं और 1 फीसदी सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं. प्लाज्मा थैरेपी से फायदा ये है कि बिना किसी वैक्सीन के ही मरीज किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है. (फोटोः AFP)
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इससे वैक्सीन बनाने का समय भी मिलता है. तत्काल वैक्सीन का खर्च भी नहीं आता. प्लाज्मा शरीर के अंदर एंटीबॉडीज बनाता है. साथ ही उसे अपने अंदर स्टोर भी करता है. जब यह दूसरे व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है तब वहां जाकर एंटीबॉडी बना देता है. ऐसे करके कई शख्स किसी भी वायरस के हमले से लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. (फोटोः AFP)
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कोवैलेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट सार्स और मर्स जैसी महामारियों में भी कारगर साबित हुआ था. इस तकनीक से कई बीमारियों को हराया गया है. कई बीमारियों को जड़ से खत्म कर दिया गया है. (फोटोः AFP)
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अब इस समय जब कोरोना वायरस कोविड-19 के इलाज को कोई साधन नहीं है. ऐसे में इस तकनीक को बेहद सटीक माना जा रहा है. क्योंकि इससे उपचार का 100 फीसदी परिणाम अभी तक आ रहा है. हालांकि, वैज्ञानिक इस बीमारी के इलाज के लिए अन्य तरीके भी खोज रहे हैं. (फोटोः AFP)