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कोरोना

किस देश को कितनी और कब मिलेगी कोरोना वैक्सीन? WHO ने बताया

Tedros Adhanom
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस की वैक्सीन वितरण की योजना का ऐलान कर दिया है. विभिन्न देशों को समय पर वैक्सीन देने के लिए WHO ने कोवैक्स को लॉन्च किया है. कोवैक्स के जरिए ही वैक्सीन का वितरण होगा. अब तक दुनिया के 150 देश कोवैक्स गठबंधन से जुड़ चुके हैं. हालांकि, WHO अन्य धनवान देशों से भी कोवैक्स में शामिल होने की अपील कर रहा है. 

Coronavirus vaccine
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वैक्सीन की खोज, उत्पादन और वितरण के उद्देश्य से कोवैक्स गठबंधन तैयार किया गया. इसके तहत अमीर और गरीब देश एक साथ पैसे जमा करके वैक्सीन खरीदेंगे. इसका उद्देश्य यह भी है कि वैक्सीन की जमाखोरी न हो और इसमें शामिल सभी देशों के हाई रिस्क कैटेगरी के लोगों को पहले वैक्सीन मिल जाए.

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अब तक 64 अमीर देश कोवैक्स का हिस्सा बन चुके हैं. अमेरिका ने इसका हिस्सा होने से इनकार कर दिया है. चीन और रूस भी अब तक इससे नहीं जुड़े हैं. लेकिन ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देश इसका हिस्सा बन गए हैं. WHO को उम्मीद है कि 24 अन्य अमीर देश आने वाले दिनों में इससे जुड़ेंगे. वहीं, WHO के कोवैक्स एडवांस मार्केट कमिटमेंट के जरिए सहयोग पाने वाले देशों में भारत भी शामिल है. 

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जैसे ही एक सुरक्षित और प्रभावी कोरोना वैक्सीन मिल जाएगी, कोवैक्स के जरिए वैक्सीन तमाम देशों को मिलने लगेगी. WHO ने इसके लिए दो फेज प्लान तैयार किया है. पहले फेज में हर सदस्य देश को उसकी आबादी के 3 फीसदी लोगों के लिए वैक्सीन की खुराक दी जाएगी जो आगे चलकर 20 फीसदी तक बढ़ेगी.

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आबादी के 20 फीसदी लोगों के लिए वैक्सीन सप्लाई करने के बाद भी अगर सप्लाई सीमित रहती है तो फेज-2 प्रोग्राम शुरू किया जाएगा. इसके तहत जिस देश में खतरा अधिक पाया जाएगा, उसे वैक्सीन की अधिक खुराक दी जाएगी. हर देश को ये अधिकार रहेगा कि वह खुद तय करे कि आबादी में किन लोगों को पहले वैक्सीन दी जाए. हालांकि, इसके पीछे विचार है कि शुरुआत में आबादी के 3 फीसदी लोगों के लिए वैक्सीन इसलिए मिलेगी ताकि मेडिकल वर्कर्स और अन्य हाई रिस्क कैटगेरी के लोगों को पहले वैक्सीन दी जाए. 

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हालांकि, कई एक्सपर्ट ने WHO के मॉडल की आलोचना की है. कुछ एक्सपर्ट्स ने कहा है कि अगर उदाहरण से समझें तो न्यूजीलैंड और पपुआ न्यू गिनी, दोनों ही देशों की कुल आबादी के 3 फीसदी लोगों को  शुरुआत में वैक्सीन दी जाएगी जो कि तार्किक नहीं है. एक्सपर्ट का कहना है कि एक अमीर देश के डॉक्टर, एक गरीब देश के आम व्यक्ति के मुकाबले कम खतरे की स्थिति में हो सकते हैं. 
 

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