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बिहार में पहले से ही कोरोना केसों की संख्या काफी कम रही है. इस पर भी जब कोरोना का ग्राफ नीचे आने लगा तो राज्य प्रशासन ने राहत की सांस ली. लेकिन नवंबर में हुए चुनाव और छठ पर्व एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आए. ये बड़े आयोजन अब बीत चुके हैं और बिहार एक बार फिर से उस स्थिति में पहुंच गया है जहां बाकी राज्यों के लोग पूछ सकते हैं कि कोरोना के मामले में बिहार की सफलता का राज क्या है?
दरअसल, बिहार भारत का दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला, सबसे गरीब और सबसे कम सुविधाओं वाला राज्य है, इसलिए महामारी की शुरुआत में इसे लेकर काफी चिंताएं व्यक्त की गईं. ये चिंताएं और भी बढ़ गईं जब बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर शहरों से अपने घर लौटने लगे. इसके बावजूद बिहार ऐसे राज्यों की सूची में बना रहा जहां जनसंख्या के अनुपात में सबसे कम कोरोना केस आए और कोरोना की मृत्यु दर भी कम रही. आधे अगस्त में बिहार में कोरोना पीक पर था और तब से केसों में लगातार गिरावट आ रही है.
अक्टूबर में बिहार के स्वास्थ्य सचिव प्रत्यय अमृत ने राज्य में कम केस होने का श्रेय टेस्टिंग को दिया था. उन्होंने कहा था, 'बिहार में इस साल बड़े पैमाने पर बाढ़ आई, जिसने 80 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए. हमें बाढ़ में फंसे 5 लाख से ज्यादा लोगों को निकालना था. इसलिए हमने फैसला किया कि हम जिन लोगों को भी निकालेंगे, उन्हें राहत शिविर में छोड़ने से पहले उनके लक्षण देखेंगे और कोरोना टेस्ट कराएंगे. इस तरह हम बड़ी संख्या में लोगों का टेस्ट करने और संक्रमण को रोकने में सक्षम हुए.'
उनके मुताबिक, इसके अलावा राज्य ने बस-स्टॉप और अन्य भीड़-भाड़ वाले इलाकों में एंटीजन टेस्ट करना शुरू कर दिया, जिससे बिना लक्षण वाले लोगों की पहचान करने में मदद मिली. भारत के स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने भी 10 नवंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि केंद्र की सलाह पर बड़े पैमाने पर टेस्ट और स्वच्छता उपायों को बेहतर ढंग से लागू करने के कारण बिहार को 'सफलता' मिली.
हालांकि, जिन दूसरे राज्यों ने बिहार के मुकाबले ज्यादा टेस्ट किया है, वे कोरोना केस इतना नीचे नहीं ला पाए. बीस राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिहार की तुलना में ज्यादा टेस्ट किए गए, और फिर भी बिहार में प्रति दस लाख की जनसंख्या पर केस की संख्या सबसे कम है. कर्नाटक के कोविड-19 वार-रूम की अध्यक्षता करने वाले आईएएस अधिकारी मुनीश मौदगिल बताते हैं कि दरअसल, ज्यादा टेस्ट से केस की संख्या बढ़ती है.
बिहार देश का सबसे युवा राज्य है और यहां शहरीकरण भी कम है. ऐसे में दो कारक ऐसे हो सकते हैं जो केस की कम संख्या के लिए जिम्मेदार हों, हालांकि, ये स्पष्टीकरण पर्याप्त नहीं है. जब दिल्ली जैसे राज्यों में दूसरी और तीसरी लहर सामने आई तो कई विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की कि बिहार जैसे राज्यों में अब भी केस बढ़ सकते हैं. वास्तव में राज्य खुद इस बारे में चिंतित था.
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चुनाव के पहले स्वास्थ्य सचिव प्रत्यय अमृत ने कहा था, 'हम अब तक की स्थिति से खुश हैं लेकिन लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं है. आपने चुनावी रैलियों की तस्वीरें देखी होंगी जिनमें लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं और मास्क नहीं लगा रहे हैं. और इसके बाद बिहार का सबसे बड़ा त्योहार छठ भी आ रहा है.'
विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हुए तीन हफ्ते से ज्यादा हो चुके हैं और छठ पर्व संपन्न हुए भी 10 दिनों से ज्यादा गुजर चुके हैं लेकिन ऐसा लगता है कि जैसी आशंका थी वैसा नहीं हुआ. बिहार में अब तक कोरोना को लेकर कोई हलचल नहीं हुई है. अमृत ने कहा, 'हमने कोई तब्दीली नहीं की. यहां तक कि चुनाव के दिन, मतगणना के दिन, छठ के दिन, आप देखेंगे कि हमने हर दिन एक लाख से ज्यादा टेस्ट किया. मैंने लगातार यात्राएं और निगरानी जारी रखी.'
टेस्ट संख्या उनके शब्दों को पुख्ता करती है क्योंकि राज्य में टेस्ट संख्या काफी स्थिर रही है और नतीजतन टेस्ट पॉजिटिविटी रेट गिरी है. क्या बिहार में बड़ी संख्या में एंटीजन टेस्ट पर निर्भरता के कारण बड़ी संख्या में केस पकड़ में नहीं आ रहे हैं? अमृत का कहना है, 'अगर RT-PCR टेस्ट की पॉजिटिविटी रेट 15-20% होती तो मैं इस तर्क पर विचार करता. लेकिन राज्य में RT-PCR टेस्ट की पॉजिटिविटी रेट भी 2% है.'
हालांकि, एक आंकड़ा ऐसा है जो सोचने पर मजबूर करता है. इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने अगस्त में किए गए अपने दूसरे राष्ट्रीय सीरो सर्वे के जिलेवार आंकड़े जारी नहीं किए, लेकिन स्थानीय मीडिया ने बिहार में 16% प्रिविलेंस रेट की सूचना दी. ब्रिटेन में मिडिलसेक्स यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ और लेक्चरर मुराद बनाजी का कहना है कि ये संकेत है कि बड़ी संख्या में संक्रमण और मौतों के मामले छूट रहे हैं जिनको चिन्हित करने की जरूरत है.
लेकिन स्वास्थ्य सचिव अमृत का कहना है, 'मैंने व्यक्तिगत रूप से ICMR के डीजी को लिखा है कि बिहार में एक सीरो सर्वे कराया जाए क्योंकि हम यह भी जानना चाहते हैं कि हो क्या रहा है, क्या राज्य में कुछ हद तक हर्ड इम्युनिटी हासिल हुई है. लेकिन जहां तक मौतों की बात है तो वह एक तथ्य है जिसे देखा जा सकता है. ऐसा संभव नहीं है कि सैकड़ों मौतें होती रहें और उन पर किसी का ध्यान न जाए.'
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