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31 दिन जिंदगी की जंग लड़कर सबसे कम उम्र की बच्ची ने कोरोना को हराया

बच्ची का आरटी-पीसीआर टेस्ट भी पॉजिटिव आया. ऐसे में मात्र 1.29 किलोग्राम वजनी वीरा का उपचार करना बेहद चुनौतीपूर्ण था. अस्पताल प्रबंधन के अनुसार बच्ची को वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता थी और उसके फेफड़े भी सिकुड़े हुए थे.

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31 दिन की जंग जीत गई वीरा
31 दिन की जंग जीत गई वीरा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अंकिता ने प्री-मेच्यौर बच्ची को जन्म दिया, वजन 1.29 kg
  • जन्म के चौथे दिन वेंटिलेटर से HFNC पर शिफ्ट कर दिया गया

यह कहानी है चार महीने की मासूम वीरा की, जो जन्म लेने के बाद से ही जिंदगी जीने का संघर्ष कर रही थी. वीरा का संघर्ष गर्भ से ही शुरू हो गया था. जन्म लेने के बाद भी वो जिंदगी और मौत के बीच करीब 31 दिनों तक लड़ती रही. और वीरा ने जो वीरता दिखाई है इसका अहसास उसे खुद भी नहीं हुआ होगा.

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लेकिन उसके कभी भी हार न मानने वाले हौसले और डॉक्टर्स के उपचार से आज वीरा ने कोरोना को मात देकर एक नई उम्मीद जगा दी है. जन्म लेने के बाद 31 दिनों तक चले उपचार के दौरान वीरा का हौसला नहीं टूटा और डॉक्टर्स का वीरा पर विश्वास कायम रहा. नतीजा यह की देश में कोरोना से संक्रमित होने वाली सबसे कम उम्र और सबसे कम वजन वाली बच्ची ने कोरोना पर फतह पाकर इतिहास रच दिया.

दरअसल, कोरोना काल की दूसरी लहर में जब पूरा देश इसकी चपेट में आ गया था, तब हर्ष और उसका परिवार भी इस भयावह परिस्थिति से जूझ रहा था. फरीदाबाद में रहने वाले हर्ष और अंकिता जल्द ही माता-पिता बनने वाले थे, लेकिन हर्ष कोरोना से सं​क्रमित हो गए. सारी सावधानियां बरतने के बावजूद उनकी पत्नी अंकिता जिन्हें सात माह की प्रेग्नेन्सी थी, वो भी कोरोना से सं​क्रमित हो गई.

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वीरा के माता-पिता
वीरा के माता-पिता

डॉक्टरों के मुताबिक वीरा की मां अंकिता को कोविड संक्रमण के बाद गंभीर अवस्था में सूर्योदय अस्पताल भर्ती करवाया गया. एक ओर जहां अंकिता की हालत कोरोना के कारण बिगड़ती जा रही थी वहीं दूसरी ओर डॉक्टर्स को उनकी प्रेग्नेंसी पर भी ध्यान देना था. डॉक्टारों के लिए भी दोनों चीजों को ध्यान में रखते हुए इलाज करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था.

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अंकिता की हालत को देखते हुए डॉक्टर्स ने उसके तुरंत आईसीयू में भर्ती करवाया. उनकी 31 सप्ताह की प्रेगनेंसी के बाद सिजेरियन डिलीवरी से बच्ची का जन्म हुआ. चूंकि बच्चा 31 सप्ताह का था इसलिए अंकिता ने प्री मेच्योर डिलीवरी में बच्चे को जन्म दिया. अंकिता के पॉजि​टीव होने के कारण जरूरी था कि बच्ची का भी कोविड टेस्ट करवाया जाए.

बच्ची का आरटी-पीसीआर टेस्ट भी पॉजिटिव आया. ऐसे में मात्र 1.29 किलोग्राम वजनी वीरा का उपचार करना बेहद चुनौतीपूर्ण था. अस्पताल प्रबंधन के अनुसार बच्ची को वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता थी और उसके फेफड़े भी सिकुड़े हुए थे. जहां एक ओर मां जन्म लेते ही बच्चे की सीने से लगा लेती हैं वहीं अंकिता ने अपनी बेटी को करीब एक महीने बाद देखा और नन्हीं सी जान का नाम वीरा रखा.

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प्री-मैच्योर डिलीवरी के कारण बच्ची की हालत गंभीर थी. उसे वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत थी क्योंकि इंफेक्शन उसके फेफड़ों तक पहुंच गया था. हालांकि इस दौरान तक बच्ची की हालत में थोड़ा सुधार था. इसलिए जन्म के चौथे दिन उसे वेंटिलेटर से HFNC पर शिफ्ट कर दिया गया.

डॉक्टरों का दावा है कि प्री-मैच्योर होने के कारण वह कोरोना को हराने वाली सबसे कम उम्र और कम वजन की बच्ची है. डॉक्टर सुशील शिंगला, डॉ मोहितेश कुमार और डॉ यशवंत रवी के मिले-जुले प्रयासों से संभव को असंभव कर दिखाया और उनके इसी कार्य को International Journal of Contemporary Pediatrics में भी पब्लिश किया जा चुका है. IJCP ने कहा है कि इस तरह का ये पहला केस है जिसमें सबसे कम वज़न और सबसे कम उम्र की बच्ची ने कोरोना को हराया.

सर्वोदय हॉस्टिल के डॉक्टर सौरभ गेहलोत के मु​ताबिक अंकिता और उनकी बच्ची को बचा पाना बहुत ही मुश्किल था. ये वो दौर था जब दूसरी लहर चरम पर थी. बच्ची प्रीमेच्योर होने के साथ ही साथ वजन में भी बहुत कम थी. और दूसरे ही दिन कोविड पॉजिटिव भी हो गई. ऐसे में हमें हर कदम बड़ा सोच समझ कर चलना था.

डॉक्टर सुशील शींगला के अनुसार, इलाज के दौरान बच्चे के फेफड़ों में निमोथोरासिक (फेफड़े में छेद होने के बाद एयर का लीक होना) की भी समस्या हो गई. इसका भी इलाज शुरू किया गया. जन्म के 5 दिन बाद बच्ची सांस लेने में सक्षम हो गई. इसलिए उसका ऑक्सीजन सपोर्ट हटा दिया गया. धीरे-धीरे बच्ची के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा. उसका वजन भी बढ़ने लगा.

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लेकिन वीरा ने अपने हौसले से ये साबित कर दिखाया ​कि यदि जीने की चाह हो तो राह अपने आप बन जाती है...

(इनपुट- तेजश्री पुरानदरे)

 

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