कोरोना के खिलाफ जारी जंग में वैक्सीनेशन एक अहम किरदार निभा रहा है. वैक्सीन की दो डोज़ के बीच कितने वक्त का अंतर रहना चाहिए, ये एक बहस का विषय रहा है. इस बीच एक स्टडी सामने आई है जिसमें दावा किया गया है कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को दो डोज़ के बीच 44-45 हफ्ते का अंतर रखने पर चार गुना ज्यादा एंटीबॉडी बनती हैं.
ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा वक्त में 8 या 12 हफ्ते के बीच दिए जा रहे वैक्सीन की दूसरी डोज़ से बेहतर 44-45 हफ्ते वाला शेड्यूल बेहतर नतीज़े दे रहा है.
इसके अलावा वैक्सीन की मदद से एंटीबॉडी लेवल करीब एक साल तक हाई रहता है, वहीं वैक्सीन का तीसरा डोज़ (बूस्टर शॉट) इसे और अधिक मजबूत बना सकता है.
वैक्सीन ग्रुप द्वारा इसके लिए ट्रायल भी किए गए. इनमें हिस्सा लेने वाले जिन वॉलंटियर्स को 15-25 हफ्ते के बीच में वैक्सीन की दूसरी डोज़ दी गई, उनमें एंटीबॉडी लेवल दोगुना हुआ. जो 8-12 हफ्ते के बीच देने वाली दूसरी डोज़ से काफी अधिक फायदेमंद है.
बूस्टर डोज़ की भी दी गई है सलाह
इसी ग्रुप की एक स्टडी ने ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की बूस्टर डोज़ देने की भी बात कही है, स्टडी के मुताबिक बूस्टर डोज़ इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद करेगी. हालांकि, अभी ये डाटा नहीं मिला है कि ये देना जरूरी ही है. लेकिन ये बताया गया है कि अगर ऐसा किया जाता है, तो ये फायदेमंद साबित होगा.
भारत में अभी क्या है दूसरी डोज़ का अंतर?
आपको बता दें कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन भारत में कोविशील्ड के नाम से मौजूद है. सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाई जा रही ये वैक्सीन भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रही है. पहले इस वैक्सीन के पहले और दूसरे डोज़ के बीच 8 से 12 हफ्ते का अंतर था, लेकिन हाल ही में इस अंतर को 12 से 16 हफ्ते तक कर दिया गया था, जिसपर काफी बहस छिड़ी थी.