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केमिकल से नहाना, डेल्टा सूट पहनना, घंटों भूख-प्यास मारना- ऐसे काम करते हैं उस लैब में साइंटिस्ट, जहां जानलेवा Virus होते हैं

चीन में कोरोना के मामले भयावह हो रहे हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो वहां श्मशानों में अंतिम संस्कार के लिए वेटिंग चल रही है. इस बीच एक बार फिर चीन के वुहान लैब की चर्चा है, जहां से कथित तौर पर कोरोना वायरस लीक हुआ. ये लैब बायो सेफ्टी लेवल 4 के तहत आता है, जहां दुनिया के सबसे खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया पर प्रयोग होता है.

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लैब में लगातार पैथोजन पर निगरानी रखी जाती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
लैब में लगातार पैथोजन पर निगरानी रखी जाती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

सबसे पहले झांकते हैं वुहान लैब के भीतर. साल 2004 में फ्रेंच सरकार की मदद से चीन ने लगभग 44 मिलियन डॉलर की लागत से लैब तैयार किया, जिसे नाम मिला- वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी. ये मध्य चीन के वुहान शहर के पास पहाड़ियों के बीच बना है. इसे तैयार करते हुए सुरक्षा के कई मानकों का ध्यान रखा गया, जैसे ये 7  मैग्नीट्यूड तक भूकंप के झटके में भी आराम से खड़ा रहेगा. 

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सख्त पहरे में होता है काम
लैब के भीतर कोई भी बाहरी आदमी नहीं जा सकता. यहां 24 घंटे सैनिक तैनात रहते हैं. कड़े पहरे के बीच से कोई भीतर कैंपस तक चला भी जाए तो भी अंदर इतने लेवल हैं कि लैब के अंदर जाना मुमकिन नहीं. ज्यादातर लैब अपने यहां उन पैथोजन को रखते हैं, जिनका इलाज नहीं मिल सका ताकि मेडिसिन तैयार हो सके, लेकिन वुहान लैब में कथित तौर पर जानलेवा पैथोजन पर प्रयोग चलता रहता है.

साल 2020 में लैब-लीक थ्योरी 
अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने आरोप लगाया था कि चीन की सरकार ने जान-बूझकर चमगादड़ों से ऐसे वायरस निकालकर जैविक हथियार बनाने की कोशिश की ताकि दुनिया तबाह हो जाए. इसी दिसंबर में एक किताब आई- द ट्रुथ अबाउट वुहान. इसमें लेखक एंड्र्यू हफ, जो कि एपिडेमियोलॉजिस्ट भी हैं, ने दावा किया है कि कोरोनावायरस लैब में बना था, जो किसी लापरवाही से लीक हो गया. 

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चार स्तर होते हैं लैब्स के
सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने इसे 4 कैटेगरी में बांट दिया, जो कि इसपर निर्भर करता है कि लैब में सेफ्टी स्टैंडर्ड है और वहां क्या रखा जा सकता है. 

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लेवल 4 लैब में सेफ्टी प्रोटोकॉल बेहद सख्त होता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

लेवल 1 लैब में ऐसे पैथोजन होते हैं, जिनसे बहुत कम खतरा होता है. हालांकि यहां भी काम करने वालों को फेस शील्ड पहननी होती है और निकलते हुए हाथ धोना, कपड़े बदलना जैसी सावधानियां जरूरी हैं. यहां लैब के भीतर किट उतारकर खाना-पीना मना होता है. 

ये होता है सेफ्टी प्रोटोकॉल
दूसरे स्तर की लैब को BSL 2 लैब कहते हैं, जहां थोड़ी ज्यादा सावधानी और ज्यादा खतरनाक पैथोजन होते हैं, हालांकि ये सभी वो होते हैं, जिनका इलाज हो सकता है. यहां बायोलॉजिकल सेफ्टी कैबिनेट के भीतर एक्सपेरिमेंट होता है. तीसरी श्रेणी यानी लेवल 3 में बेहद खतरनाक पैथोजन या अज्ञात पैथोजन पर भी काम चलता रहता है. यहां फेस शील्ड से लेकर बॉडी और शू कवर भी पहनना जरूरी है. कई बार सांस लेने में दिक्कत होने पर रेस्पिरेटर भी लगाना होता है. 

बायो सेफ्टी लेवल 4 लैब में सबसे खतरनाक पैथोजन 
इनमें ज्यादातर वो होते हैं, जिनसे होने वाली बीमारियां जानलेवा हों, या फिर जिनके बारे में कोई जानकारी न हो. ऐसे लैब के निर्माण के समय ध्यान रखा जाता है कि ये आबादी से काफी दूर हों. भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे इसी श्रेणी की लैब है. बीच में हैदराबाद में भी लेवल 4 लैब बनाने की बात चल रही थी, लेकिन फिर काम रुक गया. इसी साल गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर ने एक और लेवल 4 लैब बनाने की बात की. 

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चीन की वुहान लैब को लेकर अब भी वैज्ञानिक संदेह में हैं. सांकेतिक फोटो (AFP)

कैसे काम करते हैं वैज्ञानिक
लेवल 4 लैब में सेफ्टी प्रोटोकॉल गजब के होते हैं. यहां हवा और पानी के आने का सिस्टम भी अलग होता है ताकि अगर कभी कोई हादसा हो भी, तो आबादी तक उसका असर न पहुंचे. काम करने वाले वैज्ञानिक पूरे समय डेल्टा सूट पहने होते हैं. ये पीपीई सूट से भी ज्यादा मजबूत है, जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया कि बेहद संक्रामक पैथोजन भी शरीर तक न पहुंचे. डेल्टा सूट एक बार पहनने के बाद दोबारा तभी उतारा जा सकता है, जब आप लैब और कैंपस से बाहर जा रहे हों. सांस लेने के लिए इसमें एयर सप्लाई सिस्टम होता है, जो एक तरह का ऑक्सीजन मास्क ही है. 

केमिकल बाथ लेना जरूरी
डेल्टा सूट पहनने के बाद शरीर जल्दी डिहाइड्रेड होता है, शुरुआत में चक्कर आने जैसी समस्या भी वैज्ञानिक झेलते हैं. यही वजह है कि लैब 4 में आने से पहले उन्हें एक तरह की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि ऐसे माहौल में भी काम कर सकें. लैब से बाहर निकलने के बाद डिकंटेमिनेशन प्रोसेस होता है, जिसके तहत खास केमिकल बाथ लेना होता है. इस दौरान पूरे शरीर पर माइक्रो-केम-प्लस डिटर्जेंट छिड़का जाता है. ये साबुन का ही एक रूप है, जो प्रोटीन की लेयर में छिपे वायरस को खत्म कर देता है. 6 मिनट तक मिलने वाले इस बाथ के दौरान बाथरूम का दरवाजा लॉक रहता है, जो टाइम पूरा होने के बाद ही खुलता है. 

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तमाम सावधानियों के बाद भी लैब में कई हादसे हो चुके. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

लेवल 4 लैब के भीतर जाना भी वैज्ञानिकों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं. अंदर जाने से पहले पूरे कपड़े हटाने होते हैं. यहां तक कि कानों में बालियां या कॉन्टैक्स लैंस भी नहीं पहन सकते. 

हो चुके हैं हादसे
सावधानियों के बाद भी लैब में हादसे होते रहते हैं. जैसे साल 2004 में साइबेरिया की लेवल 4 लैब में काम कर रही एक रूसी वैज्ञानिक के हाथ में गलती से इंफेक्टेड सुई घुस गई. इसमें इबोला वायरस थे. वैज्ञानिक की कुछ ही दिनों के भीतर मौत हो गई. साल 2008 में मेरीलैंड की लैब के सीनियर वैज्ञानिक ब्रुस एडवर्ड्स ने खुदकुशी कर ली. उनपर आरोप था कि उन्होंने ही अमेरिकी सीनेट को जानलेवा एंथ्रेक्स बैक्टीरिया वाली चिट्ठियां भेजीं, जिससे कई लोगों की मौत हो गई. 

फिलहाल दुनिया की लगभग हर लेवल 4 लैब की सेफ्टी उसी तरह से हो रही है, जैसे परमाणु हथियार बनाने वाले लैब की. यहां गन भी हैं, गार्ड्स भी और मजबूत गेट भी.

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