Omicron COVID-19 Variant: कोरोनावायरस के नए वैरिएंट को ओमिक्रॉन B.1.1.529 को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैरिएंट ऑफ कंसर्न, चिंताजनक घोषित किया है. B.1.1.529 variant के बारे में WHO ने ये बयान भी दिया कि कई म्यूटेशन के बाद ये वैरिएंट बना है. सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इस वैरिएंट के बारे में RT-PCR टेस्ट से पता चल सकता है?
इस बारे में WHO का बयान सामने आया है. WHO ने कहा है कि जो वर्तमान में लैब SARS-CoV-2 की जांच कर रही हैं, उनमें टेस्टिंग के दौरान नए वैरिएंट की पहचान हुई है. लेकिन कुछ लैब ने ये बताया है पीसीआर टेस्ट में तीन टार्गेट जीन में से एक जीन का पता नहीं चला है. (जिसे एस जीन ड्रॉपआउट या एस जीन टार्गेट फेलियर कह सकते हैं) ऐसे में इस टेस्ट को इस वैरिएंट के मार्कर के तौर पर उपयोग किया जा सकता है.
वहीं पहले के कई वैरिएंट जो सामने आए थे, उनमें जेनेटिक सीक्वेसिंग के बाद ही पता चल पता था कि ये कौन सा वैरिएंट है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने देशों से कहा है कि वे सर्विलांस बढ़ायें साथ ही, सीक्वेसिंग पर भी फोकस करें. जीनोम सीक्वेंस के माध्यम से पूरा डाटा तैयार करें. 24 नवम्बर को इस वैरिएंट का सबसे पहले पता दक्षिण अफ्रीका में चला था. वहीं इस B.1.1.529 वैरिएंट (ओमिक्रॉन) का सबसे पहले नमूना लिया गया था.
आरटीपीसीआर टेस्ट में क्या होता है?
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के अनुसार, ओमिक्रॉन बहुत तेजी से फैलता है. लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने ये भी बताया कि भारत में जितनी भी आरटीपीसीआर लैब हैं, वे ओमिक्रॉन और दूसरे वैरिएंट में अंतर नहीं कर पाती हैं. क्योंकि आरटीपीसीआर टेस्ट से यही पता चल पाता है कि कोई व्यक्ति संक्रमित है या नहीं. लेकिन इसके लिए जीनोम सीक्वेसिंग की जाती है. वहीं ये भी समझने की जरूरत है कि हरेक संक्रमित सैंपल जीनोम सीक्वेसिंग के लिए नहीं भेजा जाता है. यह प्रकिया काफी धीमी है, वहीं कठिन होने के साथ इसमें काफी महंगी भी है. एक अनुमान के मुताबिक, सभी पॉजिटिव सैंपल में से 2 से 5 फीसदी ही जांच के लिए भेजे जाते हैं. आरटीपीसीआर टेस्ट में शरीर में मौजूद वायरस का जेनेटिक मेटेरियल देखता है.
क्यों जरूरी है आरटीपीसीआर टेस्ट
इंडियन एक्सप्रेस को बातचीत में वैज्ञानिकों ने ये भी बताया कि आरटीपीसीआर टेस्ट में कोरोनावायरस स्पाइक प्रोटीन में पहचानकर्ता की तलाश करते हैं. यानि वह किस तरह शरीर में आया. अगर स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन हुए हैं, जैसा ओमिक्रॉन वैरिएंट के साथ हुआ है. ऐसे में ये भी संभावना है कि आरटीपीसीआर टेस्ट में म्यूटेशन की पहचान न हो पाए और कोविड रिपोर्ट नेगेटिव आये. लेकिन ये भी ध्यान देने की जरूरत है कि आरटीपीसीआर टेस्ट एक से ज्यादा पहचानकर्ता की तलाश करता है. ऐसे में अगर स्पाइक प्रोटीन में पहचानकर्ता की पुष्टि नहीं हो पाती है तो ऐसे में ये इस बात की तस्दीक करता है क ये इंफेक्शन ओमिक्रॉन वैरिएंट के कारण हो सकता है. अल्फा वैरिएंट के लक्षण भी कुछ ऐसे ही थे.
क्या ओमिक्रॉन का पता लगाना आसान?
इंस्टीट्यूट ऑफ जेनोमिक्स एंड इंटग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) के डायरेकटर अनुराग अग्रवाल ने भी इस बात की पुष्टि की. उन्होंने कहा कि जीनोम सीक्वेसिंग से ही ओमिक्रॉन वैरिएंट की मौजूदगी का पता चल सकता है. वहीं IGIB में वैज्ञानिक विनोद सकारिया ने कहा, ये कई बार किट की क्षमता पर भी निर्भर करता है. जो किट थर्मो फिशर ने बनाई है, उससे ओमिक्रॉन वैरिएंट का पता चल सकता है. वहीं भारत में बनी कुछ किट से भी इस वैरिएंट का पता लगाया जा सकता है. जीनोम सीक्वेसिंग की प्रक्रिया 24 से 96 घंटे में पूरी हो पाती है.
R R Gangakhedkar जो ICMR में head of epidemiology रहे हैं, उन्होंने बताया इसके लिए स्मार्ट नीति बनाने की जरूरत है. क्योंकि हरेक सैंपल को जीन सीक्वेंसिंग के लिए नहीं भेज सकते हैं. भारत में सबसे ज्यादा आफत डेल्टा वैरिएंट ने मचाई थी. ऐसे में ये जरूरी है जो लैब हैं, वे इस बात को देखें कि स्पाइक प्रोटीन में जो मिसिंग आईडेंटिफायर हैं, उसकी तलाश करें. इसके बाद उसे सीक्वेसिंग के लिए भेजा जाये.