
सामान्य दिनों में भी ग्रामीणों के पास इलाज के लिए बेहद कम विकल्प मौजूद होते हैं. अधिकतर लोग आसपास के प्राइमरी हेल्थ सेंटर से इलाज कराते हैं या झोलाछाप डॉक्टर से. कोविड के कारण सबका ध्यान प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर गया है. लेकिन सरकारी हेल्थ की हालत ऐसी है कि उन्हें खुद इलाज की जरूरत है. बंगाल राज्य के उत्तर 24 परगना जिले में स्थित देगंगा के विश्वनाथपुर हेल्थ सेंटर की हालत ये है कि बीमारी के इलाज के लिए आए लोगों को ही यहां संक्रमण की चपेट में आने का डर रहता है.
न यहां बाथरूम है न पानी पीने की सुविधा. जगह-जगह कूड़ा पड़ा रहता है. किसी तरह की सफाई नहीं है. डॉक्टर के समय पर न आने के कारण मरीज जहां तहां लेट जाते हैं, जिससे संक्रमण फेलने के चांसेज और अधिक बढ़ जाते हैं.
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लोग यहां टेस्टिंग के लिए 10 बजे रिजस्टर कराते हैं और टेस्टिंग 1 बजे जाकर हो पाती है. आसपास के माहौल से असहज होकर कुछ लोग बैठ जाते हैं, कुछ खड़े रहते हैं, कुछ जमीन पर लेट जाते हैं.
अपनी मां को पिछले ही हफ्ते खोने वाला एक युवक कोविड टेस्टिंग के लिए यहां आया हुआ है. इंडिया टुडे ने अस्पताल में टेस्टिंग की हालत को लेकर बात की तो उसने बताया ''लोग यहां टेस्टिंग के लिए 7:30 से आने शुरू हो जाते हैं. 10 बजे रजिस्ट्रेशन शुरू होते हैं. और टेस्टिंग 1 बजे होती है. लोग यहां अस्पताल की गंदगी, जगह-जगह फेले कूड़े के माहौल में इंतजार करते हैं. न यहां पानी है न बाथरूम''
एक दूसरे आदमी ने कहा ''अस्पताल बेहद जर्जर हालत में है. हमें अथॉरिटी ने कहा कि ये कोई अस्पताल नहीं है बल्कि प्राइमरी हेल्थ सेंटर है, यहां जो सुविधाएं मिल रही हैं वो पर्याप्त हैं दो डॉक्टर और नर्स के अलावा क्या चाहते हो?''