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Corona endemicity: कोरोना की आने वाली लहरें कैसी होंगी? क्यों महामारी को लेकर रणनीति बदलने को कह रहे एक्सपर्ट

कोरोना की तीसरी लहर आएगी? आएगी तो तबाही का कितना खतरा है? क्या वैक्सीनेशन से लहर थम जाएगी? कई सवाल लोगों के मन में आशंकाएं उत्पन्न कर रहे हैं. जानिए इन हालातों में हेल्थ एक्सपर्ट कोरोना को लेकर अप्रोच बदलने की क्यों सलाह दे रहे हैं.

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कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लोगों में कई तरह की आशंकाएं
कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लोगों में कई तरह की आशंकाएं
स्टोरी हाइलाइट्स
  • एंडेमिक से पैंडेमिक की ओर न बढ़े दुनिया इसके लिए चेत जाना जरूरी
  • कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लोगों में कई तरह की आशंकाएं
  • कई देशों में कम वैक्सीनेशन से नए खतरे पैदा होने की चेतावनी

दुनिया में कोरोना वायरस के दस्तक दिए करीब 20 महीने बीत गए हैं. तब से हम रोज कोरोना की नई-नई लहरों के बारे में लगातार सुनते आ रहे हैं. पहली लहर और दूसरी लहर की तबाही सबने देखी और भारत में तीसरी लहर की आशंकाओं ने लोगों को डरा रखा है. इंग्लैंड समेत कई देशों में पहले ही तीसरी और चौथी लहर आ जाने के दावे भी किए गए. लेकिन अभी जब दुनियाभर में वैक्सीन की 6 अरब डोज लोगों को लगाई जा चुकी है और कोरोना की तबाही भी थमी हुई है तो ऐसे में दुनिया भर के हेल्थ एक्सपर्ट महामारी को लेकर अप्रोच बदलने की वकालत कर रहे हैं.

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इन एक्सपर्ट्स का कहना है कि हमें अब लहरों की चर्चा बंद करके आने वाले नए तरह के खतरों पर फोकस करने की जरूरत है जिसका कि रूप अब तक की महामारी से काफी अलग हो सकता है. तो इनसे निपटने का तरीका भी एकदम अलग होना चाहिए. इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि कोरोना केस और मौतों के आंकड़े के अनुसार लहरों को मापने का नुकसान ये हो रहा है कि जिस भी देश में जब भी केस कम हुए वहां सावधानी भी कम हो गई और फिर यहीं से महामारी की वापसी का रास्ता खुल गया.

खतरे की वापसी के संकेत?

ब्रिटेन और अमेरिका में कोरोना की दूसरी लहर थमते ही स्कूल और दफ्तरों-बाजारों के खुलने के बाद से लहर में आई तेजी इसका उदाहरण है. अमेरिका में तो सितंबर का महीना काफी घातक साबित हो रहा है. तेज वैक्सीनेशन के बावजूद अमेरिका में एक लाख के करीब मरीज रोज सामने आ रहे हैं जबकि दो हजार लोगों की मौत रोजाना औसतन हो रही है. जबकि 97 लाख से भी अधिक एक्टिव केस हैं वहां. अमेरिका में जिन 7 करोड़ लोगों ने अबतक वैक्सीन नहीं लगवाई है उन्हें खतरे का अलर्ट जारी किया जा रहा है.

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क्या कह रहे एक्सपर्ट?

ब्रिटिश वायरोलॉजिस्ट जेरेमी रॉसमैन इसी हालात को रोकने के लिए लहरों के माध्यम से कोरोना को देखने का अप्रोच बदलने की बात कह रहे हैं. उनका कहना है कि वायरस का संक्रमण एक समय तेज होता है, फिर थम जाता है और फिर नए रूप में बढ़ जा रहा है और इस ट्रेंड से सावधान रहने की जरूरत है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे वक्त में जब कोरोना वायरस के रोज नए-नए वैरिएंट्स सामने आ रहे हैं और लगातार वायरस म्यूटेट हो रहा है तो ऐसे में दुनिया के लिए सावधान रहना ज्यादा जरूरी है ताकि महामारी को वापसी करने से रोका जा सके.

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कैसी हो सकती हैं भविष्य में कोरोना की लहरें?

विश्व स्वास्थ्य संगठन और वैक्सीन एलायंस GAVI का आकलन है कि आने वाले कई वर्षों तक कोरोना वायरस कहीं जाने वाला नहीं है. कम या ज्यादा प्रभावी रूप में ये अलग-अलग देशों और उनके अलग-अलग इलाकों में उभरता रहेगा. इससे निपटने के उपायों के साथ-साथ लोगों को इसके साथ जीने की आदत डालनी होगी. WHO की चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं- 'हम ऐसे फेज की ओर बढ़ रहे हैं जिसे endemicity कहा जा सकता है यानी जहां कम या मध्यम स्थिति में संक्रमण का दौर बना रहेगा.'

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टॉप भारतीय वायरालॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कांग कहती हैं कि तीसरी लहर अगर आती है तो दूसरी लहर जितनी मजबूत होगी ये अभी कहना उचित नहीं है. उनका कहना है कि तीसरी लहर पहले जैसी लहरों की तरह न होकर देश के अलग-अलग हिस्सों और छोटे-छोटे इलाकों में सीमित हो सकती है. डॉ. कांग का कहना है कि भविष्य में कोरोना की किसी लहर का आना और नहीं आना लोगों के व्यवहार पर निर्भर करेगा. खासकर त्योहारों के दौरान भीड़भाड़ पर किस हद तक काबू पाया जा सकता है इसपर निर्भर करेगा.

ऐहतियात के लिए क्या किया जा सकता है?

पहले से ही फ्लू-इंफ्लूएंजा जैसी कई बीमारियां एंडेमिक स्टेज में हैं जो कई बार अलग-अलग इलाकों में उभर आती हैं और फिर जांच और इलाज के जरिए उनपर काबू पाया जाता है. ठीक यही रणनीति कोरोना को लेकर भी जारी रखनी होगा. अभी वैक्सीनेशन के कारण लोगों में कोरोना को लेकर जो इम्युनिटी डेवलप हो रही है अगर उसे बाइपास करने वाले नए वैरिएंट उभरते हैं तो फिर पैंडेमिक को रोक पाना मुश्किल होगा. इसके लिए डॉ. कांग नई-नई वैक्सीन्स डेवलप करने पर जोर देती हैं जो नए वैरिएंट्स को काबू कर सकें. उनका मानना है कि अभी जो वैक्सीन विकसित की गई हैं वो SARS-CoV-2 वायरस के परंपरागत रूप को ध्यान में रखकर विकसित की गई हैं. लेकिन नए वैरिएंट्स नई चुनौतियां लेकर आएंगे. इसके लिए वे एक डोज पुराने वैक्सीन की और दूसरी नई वैक्सीन की देने के प्रयोग पर भी जोर देती हैं.

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डॉ. गगनदीप कांग कहती हैं- जब महामारी चरम पर थी तब हमने पूरे हेल्थ सिस्टम को कोरोना से लड़ने में लगा दिया था. लेकिन हम आज भी वही नहीं कर सकते जो 18 महीने पहले करते थे. अभी लहर कम है तो हमें टेस्टिंग, वैक्सीन और नए वैरिएंट्स से निपटने के उपायों पर काम करने की जरूरत है ताकि आगे आने वाले किसी भी संकट से हम नए तरीके से और नई तकनीक और नए वैरिएंट्स को काबू करने वाली वैक्सीन के साथ निपट सकें. कोरोना महामारी के दौर में दूसरी बीमारियों के शिकार लोगों को भी भारी नुकसान हुआ. जैसे- सारी हेल्थ सुविधाओं के कोरोना पर फोकस हो जाने के कारण तमाम अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं बंद हो गईं जिससे जांच कम हुए, दूसरी बीमारियों के टीकों को लगाने का काम बाधित हुआ, मातृत्व सुरक्षा पर ध्यान कम हो गया, कैंसर से पीड़ित लोगों की कीमियाथेरेपी बाधित हुई, डायबीटिक लोगों का इलाज बाधित हुआ, टीबी के पीड़ित लोगों पर जारी कार्यक्रमों पर ध्यान कम दिया गया. ऐसे हालात भविष्य में न आएं इसके लिए पहले से स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित किए जाने की जरूरत है. 

दूसरे देश क्या अप्रोच अपना रहे हैं?

वैक्सीनेशन की गति तेज होने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि इससे वायरस से लोगों को सुरक्षा मिलेगी और संक्रमण की रफ्तार कम करने में मदद मिलेगी लेकिन डेल्टा और डेल्टा प्लस जैसे नए-नए वैरिएंट्स के लगातार सामने आने से कम या मध्यम आय वाले देशों में जहां वैक्सीन की उपलब्धता कम है वहां संक्रमण का खतरा अब भी बरकरार है. चीन और न्यूजीलैंड जैसे देश जिन्होंने Zero-Covid को अपना पैमाना बना लिया है वहां एक भी केस मिलते ही पूरे इलाके को सील करना, लॉकडाउन लगाना, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग जैसे उपायों पर जोर दिया जा रहा है ताकि संक्रमण बढ़ न पाए. लेकिन बाकी देश जहां वैक्सीनेशन कम हुआ है, हेल्थ की सुविधाएं कम हैं या ज्यादा आबादी और भीड़भाड़ को रोकने में सख्ती नहीं लागू हो पा रहा वहां संक्रमण या तो बढ़ा ही है या एक लेवल पर लगातार जारी है.

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कैसे इस हालात से निपटा जा सकता है?

जब दुनिया के टॉप हेल्थ एक्सपर्ट कह रहे हैं कि महामारी कहीं जाने वाली नहीं है तो ऐसे में अप्रोच बदलने की भी वे बात कह रहे हैं. अमेरिकी हेल्थ संस्था FDA के पूर्व चीफ स्कॉट गॉटलिब कहते हैं- 'हमें पैंडेमिक के अगले फेज के लिए तैयार रहना चाहिए. हम वायरस को खत्म तो नहीं कर सकते लेकिन उससे दूरी बना सकते हैं. हमारी प्राथमिकता संक्रमण की रफ्तार को कम रखना, बीमारी के गंभीर हालात से बचना और बड़े पैमाने पर मौतों को रोकना होना चाहिए. इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग के उपायों का सख्ती से पालन करना होगा. जहां तक संभव हो वर्क फ्रॉम होम को अपनाना, स्कूलों और कॉलेजों में ऑनलाइन क्लासेस को अपनाने के उपायों को जारी रखना होगा.'

अभी क्या है दुनियाभर में कोरोना का ट्रेंड?

कोरोना की रफ्तार थम जाने के बाद इसे लहरों के हिसाब से देखने का नुकसान क्या हुआ है इसे समझने के लिए पिछले कुछ हफ्तों में भारत और दुनिया में कोरोना के ट्रेंड को समझने की जरूरत है. तमाम देशों में कम केस आने के बाद स्कूल-कॉलेज, दफ्तर, बाजार खोले जा रहे हैं लेकिन क्या इससे महामारी को फिर से बढ़ने का मौका मिल रहा है? जब चारों ओर कोरोना की लहर थमी हुई दिख रही है ऐसे में पिछले एक हफ्ते में दुनिया भर में 36 लाख नए केस आए. जबकि 60 हजार लोगों की जान गई. सबसे ज्यादा कोरोना केस अमेरिका, भारत, ब्रिटेन, तुर्की और फिलीपींस में आए. डब्ल्यूएचओ के अनुसार डेल्टा वैरिएंट का प्रसार अब 185 देशों में पहुंच चुका है और अब दुनिया का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं है.

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दुनिया के मुकाबले भारत में कैसे हैं हालात?

सिर्फ एक दिन के कोरोना केस पर ही गौर करें तो दुनिया भर में सिर्फ 21 सितंबर को 4 लाख 72 हजार नए मरीज सामने आए जबकि 8241 लोगों की जान चली गई इस महामारी से. अमेरिका में 97 लाख एक्टिव मरीज हैं तो ब्रिटेन में 13 लाख. भारत में एक्टिव मरीजों का आंकड़ा भी तीन लाख से ऊपर है. पड़ोसी देश पाकिस्तान में 61 हजार. भारत में एक हफ्ते में दो लाख से अधिक नए मरीज सामने आए तो 2300 लोगों की मौत हुई. इसका मतलब ये है कि कोरोना की लहर भले ही महामारी वाले हालात में नहीं है लेकिन पूरी तरह थमी भी नहीं है. नए केस देश के हर हिस्से से आ रहे हैं और मौतें भी हो रही हैं.

खासकर केरल और महाराष्ट्र में तो लहर अभी भी काफी तेज है. पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में लहर तेज ही हो रही है. इस बीच, बरसात के मौसम में देश के कई हिस्सों में डेंगू-वायरल फीवर के केस भी बढ़े हैं और हेल्थ एक्सपर्ट खासकर त्यौहारों के सीजन को लेकर चेता रहे हैं कि भीड़भाड़ पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो कोरोना महामारी का खतरा कभी भी सर उठा सकता है. यानी वो कहावत कहते हैं न कि 'हाथी निकल गया और पूंछ अटक गई' वाली स्थिति है और हाथी को वापसी का मौका सिर्फ और सिर्फ हमारी लापरवाही से ही मिल सकता है. 

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