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देश में कोरोना की दूसरी लहर तो थम रही है लेकिन न तो हालात शांत हैं और न ही लोगों के मन में शांति है. एक्सपर्ट कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा जता रहे हैं और इस लहर को बच्चों के लिए अधिक खतरनाक बताया जा रहा है. ऐसे में बच्चों की वैक्सीन को लेकर भी भारत समेत दुनियाभर में काम तेज हो गया है. अब वयस्क लोगों के अलावा देश में 18 साल से नीचे की उम्र के 15 करोड़ के करीब बच्चों के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराने की चुनौती सरकार पर है. वो भी ऐसे वक्त में जब देश में कोई भी वैक्सीन अभी बच्चों के लिए तैयार नहीं है. अमेरिका समेत कई देशों में 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए वैक्सीन के इस्तेमाल की इजाजत मिल गई है लेकिन भारत में बच्चों के लिए वैक्सीन अभी ट्रायल के स्टेज पर हैं.
बच्चों के वैक्सीनेशन को लेकर क्या तैयारी है इस बारे में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल का कहना है- 'देश में बच्चों की कोरोना वैक्सीन पर ट्रायल शुरू है. भारत में बच्चों की तादाद बहुत बड़ी है. मोटे तौर पर देखा जाए तो हमें 25 करोड़ वैक्सीन डोज की जरूरत बच्चों के लिए होगी. आप किसी को वैक्सीनेट कर और किसी को छोड़ नहीं सकते. खतरे को कम करना है तो सभी बच्चों को वैक्सीनेट करना होगा.'
क्या बच्चों की वैक्सीन अलग होती है?
अमेरिका और जहां भी वैक्सीन बच्चों को लगाने की मंजूरी मिली है वहां उसी वैक्सीन को मिली है जो बड़ों को लग रही है. अमेरिका में फाइजर को 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों को वैक्सीन की मंजूरी मिली है. फाइजर की ये वैक्सीन अमेरिका समेत कई देशों में बड़ों को पिछले कई महीनों से लग रही है. बच्चों पर इसका ट्रायल किया गया और प्रभावी पाया गया. तब जाकर इसे बच्चों को लगाने की मंजूरी मिली है. 12 साल से कम उम्र के बच्चों पर भी इसका ट्रायल चल रहा है और नतीजों के आधार पर इस्तेमाल पर फैसला होगा.
भारत में कौन सी कंपनियां कर रहीं तैयारी?
भारत में बच्चों की वैक्सीन पर अभी दो कंपनियां काम कर रही हैं. कोवैक्सीन बनाने वाली भारत बायोटेक और दूसरी कंपनी जायडस कैडिला. भारत बायोटेक को DCGI ने 2 साल से 18 साल के बच्चों पर वैक्सीन के फेज-2 और 3 के ट्रायल की इजाजत दी है. अभी दिल्ली-पटना एम्स समेत कई जगहों पर देश में ये ट्रायल शुरू हो चुका है. इस वैक्सीन की तैयारियां पिछले साल ही शुरू हो गई थी तब भारत बायोटेक के चीफ कृष्णा ऐल्ला ने कहा था कि- हमारी वैक्सीन सेफ है, टाइम टेस्टेड और तकनीक के जरिए सिद्ध है. इसे 6 महीने के बच्चे से लेकर किसी भी उम्र के व्यक्ति को दिया जा सकेगा.' पिछले हफ्ते से बच्चों पर भारत बायोटेक की वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो चुका है. कंपनी का प्लान तीन एज ग्रुप में बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल करने का है. 12 से 18 साल, 6 से 12 साल और 6 महीने से 6 साल के बच्चों के अलग-अलग ग्रुप्स पर ये ट्रायल होंगे.
नीडल फ्री नोजल से वैक्सीन देने की तैयारी
अहमदाबाद स्थित जायडस कैडिला की वैक्सीन ZyCoV-D का ट्रायल भी 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों पर हो रहा है. यह एक नीडल-फ्री इंजेक्शन से दी जाने वाली वैक्सीन होगी. इसमें स्किन पर एक नीडल-फ्री नोजल से हाई स्पीड में फ्लूड शरीर में भेजा जाता है. बच्चों के लिए ये काफी कारगर हो सकता है. इसके साथ ही कंपनी का दावा है कि यह रूम के सामान्य तापमान पर भी सुरक्षित रहता है. इसे देश के दूरदराज के इलाकों में ले जाना और प्रीजर्व करना भी आसान होगा. जल्दी ही जायडस कैडिला कंपनी अपनी वैक्सीन के अप्रूवल के लिए डीसीजीआई के पास आवेदन करने वाली है. इसके अलावा अमेरिका में मंजूरी के बाद फाइजर की वैक्सीन को भी भारत लाने की बातचीत शुरू हो गई है.
विदेश में कौन सी वैक्सीन किस स्टेज में?
अमेरिका में फाइजर वैक्सीन का 12 साल से ऊपर के बच्चों पर तीन फेज का ट्रायल हो चुका है. 21 दिन के अंतराल पर 2200 से अधिक बच्चों पर इस वैक्सीन की दो डोज का ट्रायल किया गया. इसे 100 फीसदी प्रभावी पाया गया. बच्चों में एंटीबॉडी भी पाई गई. फाइजर का दावा है कि उसकी वैक्सीन 12 साल से ऊपर के बच्चों के लिए एकदम सही है. इसे 2 से 8 डिग्री तापमान पर स्टोर करना भी संभव है. फाइजर कंपनी की भारत में वैक्सीन सप्लाई की बातचीत चल रही है. ये कंपनी जुलाई से अक्टूबर के बीच भारत को वैक्सीन की 5 करोड़ डोज सप्लाई करने को तैयार है.
उधर, बच्चों के लिए मॉर्डना की वैक्सीन के दूसरे फेज का ट्रायल भी पूरा होने वाला है. इसमें 28 दिन के अंतराल पर बच्चों को वैक्सीन की दो डोज दी गई. तीसरे चरण में मॉर्डना का अमेरिका और कनाडा में 6750 बच्चों पर ट्रायल का प्लान है. उधर, चीन ने भी कोरोनावैक को 3 साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए मंजूरी दे दी है.
ये वैक्सीन बच्चों के लिए क्यों सेफ?
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन बच्चों के लिए मुफीद क्यों है? वेल्लोर के वायरोलॉजिस्ट टी जैकब जॉन कहते हैं- कोवैक्सीन एक इनैक्टिवेटेड वायरस बेस्ड वैक्सीन है. ये उसी तकनीक पर आधारित वैक्सीन है जिसपर पोलियो और हेपेटाइटिस ए की वैक्सीन बनी है. इस तरह की वैक्सीन बच्चों को दी जाती है और उनमें इम्युन विकसित करने की क्षमता भी इनकी साबित हो चुकी है. हालांकि, बच्चों पर इसके इस्तेमाल से पहले ट्रायल के डेटा से इसे सिद्ध करना होगा.
क्यों जरूरी है बच्चों का वैक्सीनेशन?
हेल्थ एक्सपर्ट तीसरी लहर से पहले बच्चों के वैक्सीनेशन पर जोर दे रहे हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि फ्लू की तरह बच्चों की वैक्सीन का होना भी जरूरी है. ये भले ही बच्चों को संक्रमित होने से न रोक पाएं लेकिन संक्रमण की स्थिति में तेजी से रिकवरी में एंटीबॉडी सहायक साबित हो सकती है. तीसरी लहर आने तक देश की अधिकांश वयस्क आबादी वैक्सीनेट हो चुकी होगी. ऐसे में बच्चों के संक्रमित होने का खतरा बना रहेगा. पहली लहर में जहां संक्रमण के कुल केस के 3 से 4 फीसदी मामले ही बच्चों में आए वहीं दूसरी लहर में आंकड़ा 10 फीसदी से ऊपर पाया गया. तीसरी लहर को लेकर अभी से एक्सपर्ट चेता रहे हैं कि इसे थामने के लिए वैक्सीनेशन ही एकमात्र उपाय है.
किस देश में क्या है प्रोग्रेस?
बच्चों के लिए वैक्सीन पर काम कर रहीं दुनिया की प्रमुख कंपनियां हैं- फाइजर, मॉर्डना, जॉनसन एंड जॉनसन. अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर और यूएई 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए Pfizer-BioNTech की कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी दे चुके हैं. पिछले हफ्ते ब्रिटेन ने भी 12 साल के बच्चों पर इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी. यूरोपीयन मेडिकल एजेंसी भी इसे मंजूरी देने की प्रक्रिया में है. कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों पर खतरे और नए-नए वैरिएंट्स के बढ़ते खतरे के बीच सभी देश इस दिशा में तेजी से कदम उठा रहे हैं. अमेरिका और ब्रिटेन बच्चों को वैक्सीनेट करके सितंबर से शुरू हो रहे अगले सत्र में स्कूलों को खोलने के प्लान पर काम कर रहे हैं.
बच्चों में किस तरह के खतरे?
एक्सपर्ट कहते हैं कि बच्चों में इम्युनिटी मजबूत होने के कारण कोविड संक्रमण के मामले कम पाए जाते हैं. संक्रमण के अधिकांश मामलों में लक्षण भी माइल्ड ही होते हैं. लेकिन कुछ मामलों में गंभीर संक्रमण और लंबे समय तक पीड़ित होने के कारण बच्चों का बचाव जरूरी है. संक्रमित होने पर बच्चे दूसरों में भी संक्रमण फैला सकते हैं. वैक्सीनेशन ही इस हालात में बचाव का सबसे बेहतर उपाय है. कोरोना के नए वैरिएंट्स और म्यूटेशन को रोकने के लिए इसका प्रसार रोकना होगा. समाज के बड़े हिस्से में हर्ड इम्युनिटी डेवलप करने के लिए आबादी के अधिकांश हिस्से को वैक्सीनेट करना होगा. ऐसे में बच्चों की इतनी बड़ी आबादी को असुरक्षित नहीं छोड़ा जा सकता. खासकर स्कूलों के खुलने की स्थिति में बच्चों के बचाव पर भी फोकस करना होगा.
बच्चों की वैक्सीन को लेकर क्या चिंताएं हैं?
सीडीसी जैसी अमेरिकी संस्थाएं इस बात को लेकर निगरानी कर रही हैं कि वैक्सीन बच्चों के लिए पूरी तरह सेफ हो. इसी तरह भारत में भी अप्रूवल के पहले ट्रायल पर फोकस है. बच्चों की वैक्सीन को अप्रूव करने में सबसे बड़ी चिंता उसे हर उम्र वर्ग के लिए सेफ साबित होना है. ये भी देखना होगा कि बच्चों पर वैक्सीन के साइड इफेक्ट कैसे होते हैं. देखना होगा कि क्या वयस्क लोगों की तरह ही ये वैक्सीन्स बच्चों पर भी काम करती हैं. बड़े लोगों में कइयों को वैक्सीन लगने की जगह पर हाथों में दर्द, सरदर्द, बुखार या अन्य साइड इफेक्ट हो रहे हैं. हालांकि, वयस्कों में ये 48 घंटे में ठीक भी हो जा रहे हैं. क्या बच्चे उनको बर्दाश्त करने की स्थिति में होंगे. ट्रायल के दूसरे और तीसरे फेज के नतीजों पर निर्भर करेगा कि इन वैक्सीन को बच्चों को लगाने की मंजूरी कबतक मिलती है.