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भारत समेत दुनियाभर में कई देशों में कोरोना की नई लहर तबाही का कारण बनी हुई है. रोजाना दुनिया में औसतन 9 लाख के आसपास संक्रमण के नए मरीज सामने आ रहे हैं जबकि 14 हजार के करीब लोगों की हर 24 घंटे में जान जा रही है. एक्सपर्ट कोरोना की इस नई लहर के पीछे कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन, डबल म्यूटेंट और ट्रिपल म्यूटेंट को जिम्मेदार बता रहे हैं. भारत हो, ब्राजील हो या अमेरिका हो हर जगह कोरोना के केस बढ़ रहे हैं और फिलहाल काबू में आते नहीं दिख रहे.
भारत में कोरोना की बेकाबू रफ्तार के बीच सबसे ज्यादा चर्चा ट्रिपल म्यूटेंट वायरस B.1.618 को लेकर हो रही है जिसे डबल म्यूटेंट B.1.617 वैरिएंट के बाद पाया गया है. पश्चिम बंगाल में इस नए वैरिएंट के केस मिले हैं. बंगाल में ट्रिपल म्यूटेंट वायरस के मामले सामने आए हैं तो दिल्ली में जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए जुटाए गए सैंपल में से 50 फीसदी मामलों में डबल म्यूटेंट वैरिएंट का असर पाया गया. हालांकि, एक्सपर्ट कह रहे हैं कि पैनिक होने की जरूरत नहीं है बल्कि मेडिकल प्लान बनाकर इस हालात से निपटने पर फोकस करने की जरूरत है.
डबल-ट्रिपल वायरस म्यूटेंट का मतलब क्या है?
वायरस अपनी सक्रियता के काल में लगातार अपना रूप बदलता रहता है. भारत में पहले कोरोना का डबल म्यूटेंट वायरस पाया गया था. इसका मतलब है कि यह वायरस का वो रूप है जिसमें दो बार बदलाव हुआ है. हाल में बंगाल में मिले नए वैरिएंट को ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट कहा जा रहा है मतलब इस वायरस के रूप में तीन बार बदलाव हुआ है. ये वायरस के तीन अलग-अलग स्ट्रेन का एक कॉम्बिनेशन है यानी वायरस के तीन रूपों ने मिलकर एक नय रूप लिया है.
भारत में किन इलाकों में सक्रिय हैं कौन से वैरिएंट?
नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (NCDC) के चीफ डॉ. सुजीत सिंह का कहना है- 'दिल्ली में मार्च के आखिरी हफ्ते में जो कोरोना के सैंपल आए, उनमें से 50% में कोरोना का यूके वैरिएंट था. इस वक्त दिल्ली में कोरोना का यूके वैरिएंट और डबल म्यूटेंट वैरिएंट एक्टिव हैं. दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र में भी 50% से अधिक सैंपल डबल म्यूटेंट या ट्रिपल म्यूटेंट (B1.617) से जुड़े हैं. इतना ही नहीं, भारत में एक नया वैरिएंट पाया पाया गया है, जिसके मामले बंगाल में सामने आए हैं.' इसी तरह पंजाब में यूके वैरिएंट यानी B.1.1.7 के मामले ज्यादा पाए जा रहे हैं. वहीं गुजरात और महाराष्ट्र में डबल म्यूटेंट वैरिएंट B.1.167 के मामले ज्यादा पाए जा रहे हैं. दक्षिण के राज्यों में N440K म्यूटेशन हावी है.
क्या कोरोना के नए वैरिएंट ज्यादा खतरनाक हैं?
कोरोना वायरस के नए वैरिएंट या म्यूटेशन का मतलब है कि वह लगातार नए-नए रूप बदल रहा है. एक्सपर्ट्स के अनुसार कोरोना के सभी वैरिएंट पहले से ज्यादा खतरनाक हो ये जरूरी नहीं. कई वैरिएंट पहले से कमजोर प्रभाव वाले भी हैं लेकिन ब्रिटिश, साउथ अफ्रीकन और ब्राजील वैरिएंट को साइंटिस्ट्स ने पहले से ज्यादा संक्रामक पाया. इसमें न केवल तेज प्रसार की क्षमता है बल्कि शरीर के एंटीबॉडी को सरपास करने की भी इनमें क्षमता है.
नए वैरिएंट्स को लेकर क्यों चेता रहे हैं एक्सपर्ट?
पहले की अपेक्षा एक्सपर्ट नए वैरिएंट्स को लेकर इसलिए भी चेता रहे हैं कि नए वैरिएंट पहले के वैरिएंट्स की अपेक्षा ज्यादा संक्रामक हो सकते हैं. ये उन लोगों को भी संक्रमित कर सकते हैं जिनके शरीर में एंटीबॉडी बन चुकी है. बल्कि डबल म्यूटेंट के वायरस युवा आबादी और यहां तक कि बच्चों को भी संक्रमित कर रहे हैं. नई लहर में कोरोना के लक्षणों के बाद भी लोगों के निगेटिव टेस्ट रिपोर्ट आने को भी एक्सपर्ट चिंताजनक बता रहे हैं. करीब 20 फीसदी मामलों में संक्रमित होने के बावजूद रिपोर्ट निगेटिव आ रही हैं. एक्सपर्ट इसके लिए 24 घंटे में सीटी स्कैन कराने की सलाह दे रहे हैं ताकि फेफड़ों में इंफेक्शन का पता लगाया जा सके.
क्या कोरोना की नई लहर के पीछे नए वैरिएंट हैं?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स के डायरेक्टर सौमित्र दास कहते हैं कि 'डबल या ट्रिपल म्यूटेंट कोरोना वायरस के ही रूप हैं. B1.617 वैरिएंट के कई म्यूटेशन यानी बदले हुए रूप भी सामने आ चुके हैं जिसमें E484Q और L452R शामिल हैं.' हालांकि, एक्सपर्ट अभी इस बात का अध्ययन कर रहे हैं कि कोरोना की नई और तेज लहर के पीछे क्या ये ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट जिम्मेदार हैं. अभी इस पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है. हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मोलेक्युलर बायोलॉजी के डायरेक्टर राकेश मिश्रा कहते हैं- 'अभी अन्य वैरिएंट्स की तुलना में इन नए वैरिएंट्स का प्रसार तेजी से हो रहा है. लेकिन धीरे-धीरे ये बहुत कॉमन हो जाएगा और दूसरे वैरिएंट्स की जगह ले लेगा.'
कोरोना का इंडियन वैरिएंट क्या है?
पश्चिमी देशों के एक्सपर्ट कोरोना के वैरिएंट B1.617 को इंडियन वैरिएंट बता रहे हैं. सबसे पहले इसका पता पिछले साल अक्टूबर में लगा था. इस साल मार्च तक महाराष्ट्र से लिए गए 15 से 20 फीसदी मामलों में डबल म्यूटेंट वायरस का असर पाया गया. हाल में नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 50 फीसदी सैंपल में अब यूके वैरिएंट का असर पाया जा रहा है. भारत ही नहीं बल्कि कई और देशों में भी इस वैरिएंट का प्रसार हो गया है. GISAID के मुताबिक अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इजरायल, सिंगापुर, बेल्जियम समेत 18 देशों में ये वैरिएंट मिल चुका है. सिर्फ ब्रिटेन में ही इसके 100 से अधिक मामले मिले हैं. दुनिया के कई देश इसके तेज प्रसार को लेकर अलर्ट हैं और फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, हॉन्गकॉन्ग समेत कई देशों ने भारतीय यात्रियों के आगमन पर कई तरह से प्रतिबंध लगा दिए हैं.
क्या है कोरोना के वैरिएंट्स का इतिहास?
दुनियाभर में अबतक कोरोना वायरस के 4000 से अधिक म्यूटेशन पाए गए हैं. यानी वायरस अपनी शुरुआत से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हजारों नए रूप अख्तियार कर चुका है. इंडियन वैरिएंट से पहले ब्राजील, साउथ अफ्रीका, ब्रिटेन के वैरिएंट चर्चा में रहे थे. जैसे ब्रिटिश वैरिएंट यानी B.1.1.7 ब्रिटेन में कोरोना की दूसरी लहर में देश भर में पाया गया. और 50 से अधिक देशों में इसके मामले पाए गए. इसी तरह साउथ अफ्रीकन वैरिएंट B.1.351 ब्रिटेन, भारत समेत 20 से अधिक देशों में फैला हुआ है. इसी तरह ब्राजील वैरिएंट P.1 भी ब्रिटेन, भारत समेत कई देशों में पाया गया. ब्राजील में इस वैरिएंट के प्रभाव में कोरोना की लहर इतनी तेज है कि हर रोज 4 हजार के करीब लोगों की मौत हो रही है.
वायरस के म्यूटेंट का क्या असर होता है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ब्रिटिश कोरोना वैरिएंट को पहले के मुकाबले 36 से 75 फीसदी तक अधिक संक्रामक पाया. इसी तरह साउथ अफ्रीकन, ब्रिटिश और ब्राजील के वैरिएंट में एक कॉमन म्यूटेशन पाया गया जिसे नाम दिया गया N501Y. इसके अध्ययन में पाया गया कि इन्फेक्शन रेट बढ़ाने में ये ज्यादा प्रभावी है और जिन इलाकों में इनका प्रसार हुआ वहां केस तेजी से बढ़ेंगे. ब्रिटिश एक्सपर्ट्स के मुताबिक इन नए वैरिएंट में पुराने स्ट्रेन की तुलना में कई गुणा ज्यादा संक्रमण क्षमता पाई गई. इसके अलावा एंटीबॉडी के बावजूद इसका असर देखने को मिला है. कई नए स्ट्रेन पर वैज्ञानिकों ने पाया है कि वे टेस्ट में भी नहीं पकड़ में आ रहे जबकि कई वैरिएंट का सामना करने में बॉडी का इम्यून सिस्टम भी कारगर नहीं है. इसी कारण एक्सपर्ट इन नए वैरिएंट को खतरनाक मान रहे हैं.
क्या नए म्यूटेशन पर वैक्सीन कारगर हैं?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स के डायरेक्टर सौमित्र दास कहते हैं कि B1.617 वैरिएंट और इसके म्यूटेशन वाले रूप वैक्सीन के प्रभाव से बाहर नहीं हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में मौजूद वैक्सीन इन नए वैरिएंट पर भी कारगर हैं. जाने माने वायरोलॉजिस्ट शहीद जमील सेल्युलर और मोलेक्यूलर बायोलॉजी की स्टडी के आधार पर कहते हैं कि प्राथमिक अध्ययन के रिजल्ट में ये बात सामने आई है कि कोविशील्ड वैक्सीन B.1.617 से सुरक्षा प्रदान करता है. आईसीएमआर ने भी दावा किया कि कोवैक्सीन डबल म्यूटेंट वैरिएंट पर असरकारी है. यानी कि भारत में अभी मौजूद दोनों ही वैक्सीन नए वैरिएंट्स पर कारगर हैं.
हैदराबाद स्थित Centre for Cellular and Molecular Biology के निदेशक राकेश मिश्रा कहते हैं- 'वैक्सीन के इन नए वैरिएंट्स पर प्रभाव के बारे में तो डिटेल अध्ययन में बातें सामने आएंगी लेकिन ये सही है कि वर्तमान में मौजूद वैक्सीन संक्रमण से लड़ने में काफी मददगार हैं. मतलब संक्रमण से उबरने में मददगार साबित हो सकती हैं.' हाल में आईसीएमआर द्वारा जारी आंकड़ों में ये दावा किया गया कि वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके लोगों में से सिर्फ 0.04 फीसदी लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं. और इनमें रिकवरी का औसत भी बहुत ही ज्यादा है. ICMR ने कहा कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन कोरोना के अलग-अलग म्यूटेंट के खिलाफ असर करती है. आईसीएमआर की स्टडी के मुताबिक, ये वैक्सीन कोरोना के यूके, ब्राजील और अफ्रीकन वैरिएंट को मात देने में कारगर है. इतना ही नहीं ये डबल म्यूटेंट के खतरे को भी दूर करती है.
नए वैरिएंट्स पर विदेशों में क्या है तैयारी?
कोरोना के नए वैरिएंट अधिकांश देशों में मिल रहे हैं. नए-नए वैरिएंट को लेकर कई देश अलर्ट हैं और प्लान बना रहे हैं. ब्रिटेन की सरकार ने फ्यूचर वैरिएंट को ध्यान में रखकर वैक्सीन बनाने के लिए बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी CureVac से डील की है. जिसमें 50 मिलियन वैक्सीन डोज के निर्माण का प्री-ऑर्डर दिया गया है.
नए वैरिएंट को काबू करने के क्या उपाय बता रहे एक्सपर्ट?
भारत में कोरोना की नई लहर के पीछे वैरिएंट के असर पर शोध के परिणाम तो सामने आ जाएंगे लेकिन एक्सपर्ट बता रहे हैं कि बड़ी आबादी, अनियंत्रित भीड़, सोशल डिस्टेंसिंग में लापरवाही ने कोरोना की इस लहर की वापसी कराई है. इससे निपटा कैसे जाए इसपर एक्सपर्ट्स की राय काफी अहम है. हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक हेल्थ पर शोध कर रही भारतीय अधिकारी मृणालिनी दर्शवाल कहती हैं- मास वैक्सीनेशन, सोशल व्यवहार के तरीकों में अनुशासन और मेडिकल एक्सपर्ट-सियासी नेतृत्व-प्रशासन के मिले-जुले प्रयासों से ही इस संकट से निपटा जा सकता है. वर्तमान रफ्तार में अगर वैक्सीनेशन चलता रहा तो देश की 75 फीसदी आबादी को वैक्सीन लगाने में दो साल का वक्त लग जाएगा. इसके लिए जरूरी है कि फुल वैक्सीनेशन का प्लान बने, वैक्सीन को युद्ध स्तर पर बनवाया जाए, खरीदा जाए और लोगों को वैक्सीनेट किया जाए.
एम्स के डायरेक्ट डॉ. रणदीप गुलेरिया कहते हैं कि वैक्सीन लेने के बाद भी फुल गार्ड जरूरी है. यानी मास्क लगाएं, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और खान-पान का पूरा ध्यान रखें. वैक्सीन लेने के बाद कोरोना नहीं होगा ऐसे बिल्कुल नहीं है लेकिन इससे वायरस से लड़ने की शरीर की क्षमता जरूर मजबूत हो जाएगी. हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मोलेक्युलर बायोलॉजी के डायरेक्टर राकेश मिश्रा कहते हैं- अभी भारत की प्राथमिकता होनी चाहिए इस कोरोना ब्लास्ट को कंट्रोल करने की.
अमेरिकी वायरोलॉजिस्ट स्टीफन गोल्डस्टीन कहते हैं- दुनिया ब्रिटेन के मॉडल से कुछ सीख ले सकती है. ब्रिटेन ने ज्यादा संक्रामक वैरिएंट की मौजूदगी के बीच कोरोना की लहर को थामने में सफलता हासिल करके दिखाया है. मेरे विचार में वैक्सीनेशन तेज करने से इस दिशा में मदद मिल सकती है. लेकिन सबसे अहम है सख्त लॉकडाउन जिस कारण ब्रिटेन में कोरोना की रफ्तार स्लो हो सकी.