
नोवेल कोरोना वायरस के फैलने के लिए लोगों के समूह, सभाएं और भीड़-भाड़ सबसे मुफीद जगहें हैं. भारत के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. एक चरण का चुनाव संपन्न हो गया है और दो चरण बाकी हैं. इसके लिए राज्य में चुनावी रैलियों, यहां तक कि मतदान केंद्रों तक लोगों का बड़ी संख्या में जुटना चिंता का विषय है.
हालांकि, बिहार में वह सारी स्थिति मौजूद है जिसमें वायरस तेजी से फैल सकता है, लेकिन खुद कोरोना वायरस नदारद है. इंडिया टुडे डेटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने बिहार के कोरोना आंकड़ों की तुलना देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्यों से की और पाया कि बिहार ने इस मामले में अच्छा प्रदर्शन करते हुए कोरोना आंकड़ों को नीचे रखा. ये विशेषज्ञों के लिए हैरान करने वाला है.
बिहार के असरदार आंकड़े
अब तक बिहार में 2.15 लाख कोरोना के केस दर्ज हुए हैं जिनमें से 95.6 फीसदी लोग ठीक हो चुके हैं. राज्य की जनसंख्या को देखते हुए कोरोना केसों की ये संख्या दूसरे राज्यों के मुकाबले काफी कम है.
UIDAI के मुताबिक, 2020 में बिहार की अनुमानित जनसंख्या 12.5 करोड़ है. इसका मतलब है कि राज्य की आबादी में प्रति 10 लाख लोगों पर करीब 1,800 लोग वायरस से संक्रमित हुए हैं. ये संख्या प्रति 10 लाख की आबादी पर 6,000 के राष्ट्रीय औसत से एक तिहाई से भी कम है.
बिहार में मौतों की संख्या भी कम है. कुल 2.15 लाख संक्रमित लोगों में से 1,000 से कुछ ज्यादा मौतें हुई हैं. इसका मतलब है कि वायरस से संक्रमित हुए 200 लोगों में से सिर्फ एक व्यक्ति की मौत हुई. यानी बिहार में केस मृत्यु दर 0.5 फीसदी है जो कि 1.5 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से तीन गुना कम है.
हालांकि, इससे राज्य की टेस्ट संख्या के बारे में शक पैदा हो सकता है, लेकिन इस मामले में भी बिहार कम से कम बड़े राज्यों में अच्छी स्थिति में दिखाई देता है. गुरुवार तक बिहार में अब तक हुए कुल टेस्ट की संख्या 1.06 करोड़ तक पहुंच गई. सबसे ज्यादा टेस्ट करने के मामले में बिहार, उत्तर प्रदेश (1.5 करोड़) के बाद ये दूसरे स्थान पर है. बिहार में रोजाना टेस्टिंग के आंकड़े का औसत 1.3 लाख है. ये संख्या महाराष्ट्र (70,000) में हर दिन हो रहे टेस्ट से लगभग दोगुनी है.
बिहार ने प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर 88,000 लोगों का टेस्ट किया है. ये दिल्ली (2.4 लाख), आंध्र प्रदेश (1.4 लाख), कर्नाटक (1.12 लाख), तमिलनाडु (1.25 लाख) जैसे कई छोटे राज्यों की तुलना में कम है. हालांकि, सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्यों में बिहार सबसे आगे है, जबकि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश बिहार की तुलना में खराब प्रदर्शन कर रहे हैं.
विशेषज्ञों के लिए पहेली
कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने की दिशा में बिहार उल्टी दिशा में आगे बढ़ रहा है. इसलिए विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं कि बिहार में कोरोना केसों की संख्या इतनी कम कैसे है. मिडिलसेक्स यूनिवर्सिटी लंदन में गणित के सीनियर लेक्चरर मुराद बनाजी ने इंडिया टुडे को बताया कि बिहार में कोरोना के आंकड़े 'आश्चर्यजनक रूप से कम' हैं.
बनाजी ने कहा, “हम विभिन्न राज्यों के आंकड़े देखते हैं तो एक ट्रेंड दिखाई देता है कि ज्यादा ग्रामीण आबादी वाले राज्यों में केस और मौतें कम दर्ज हो रही हैं. यह साफ नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है. क्या ग्रामीण इलाकों में बीमारी कम फैल रही है या फिर यहां संक्रमण और मौतों के केस दर्ज नहीं हो पा रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “बिहार में टेस्टिंग की संख्या में काफी वृद्धि देखी गई. हो सकता है कि इस वजह से संक्रमण का फैलाव रुका हो. लेकिन आंकड़े दिखाते हैं कि टेस्टिंग स्पष्ट रूप से टॉरगेटेड नहीं है. कुछ जिलों में खूब टेस्ट हुए हैं और केस कम हैं जबकि कुछ जिलों में केस ज्यादा हैं और टेस्ट संख्या ज्यादा नहीं है. ऐसा क्यों? दूसरे राष्ट्रीय सर्वेक्षण की शुरुआती रिपोर्ट से पता चला कि टेस्टिंग में वृद्धि के बावजूद जितने संक्रमण के केस थे उनमें से बहुत कम का पता चल पाया.”
क्या एक बड़ी लहर आने वाली है?
अगस्त में बिहार के छह जिलों में आयोजित दूसरे राष्ट्रीय सीरो सर्वे में सामने आया कि कैसे राज्य में एंटीबॉडी का स्तर कम था. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में लाइफकोर्स एपिडेमोलॉजी के हेड और प्रोफेसर गिरिधर आर बाबू ने कहा, “महामारी सभी क्षेत्रों में फैल रही है और कोई भी क्षेत्र इम्युन नहीं है.”
प्रोफेसर गिरिधर ने बताया, “ये हैरानी की बात है कि बिहार सहित कुछ राज्यों में प्रति मिलियन आबादी पर पर्याप्त केस की संख्या का पता नहीं चला है. ये अजीब है कि कुछ क्षेत्रों में कम केस हैं और बाकी राज्य में ज्यादा केस हैं. अब समय है कि केस डिटेक्ट करने में सुधार लाया जाए और रणनीति बदली जाए.”प्रोफेसर बनाजी ने विस्तार से लिखा है कि कैसे युवा आबादी और ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम मृत्यु दर दर्ज की गई है. हालांकि, बिहार की ज्यादातर आबादी ग्रामीण और युवा है, फिर भी बिहार उन्हें हैरान करता है.
उन्होंने कहा, “बिहार की आबादी युवा है और हम जानते हैं कि कोरोना का खतरा उम्र के साथ जुड़ा है. आंशिक रूप से इस कम मृत्यु का कारण माना जा सकता है, लेकिन ये असली कहानी नहीं है. इसे ध्यान में रखते हुए देखा जाए तो भी मौतें काफी कम हैं. अंतरराष्ट्रीय और यहां तक कि भारतीय आंकड़ों के आधार पर देखें तो बिहार में मौतों की कम संख्या हैरान करने वाली है. जो मृत्यु दर हम दुनिया भर में देख रहे हैं, यह उसके अनूरूप नहीं है.”
बिहार हर दिन 1 लाख से 1.3 लाख टेस्ट कर रहा है, लेकिन इसमें से ज्यादातर टेस्ट रैपिड एंटीजन टेस्ट के जरिये हो रहे हैं जो कि कम संवेदनशील है और जिसकी नगेटिव रिपोर्ट गलत हो सकती है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले महीने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि एंटीजन टेस्ट पर ज्यादा निर्भरता के कारण कई पॉजिटिव केस पकड़ में नहीं आते.
'टेस्ट से जंग जीतने वाले' बिहार के रवैये ने हो सकता है कि उस समय काम किया हो जब राज्य में बाढ़ और प्रवासी संकट था. हालांकि, चुनावी रैलियों में भारी भीड़ ये संदेह पैदा कर रही है कि बिहार के आंकड़े जल्दी ही बदल सकते हैं.
दिल्ली कोरोना की तीसरी लहर
टेस्टिंग में काफी वृद्धि के बावजूद दिल्ली फिलहाल कोरोना की तीसरी लहर का सामना कर रही है. शुक्रवार को दैनिक केस की संख्या 5,000 से ज्यादा रही. बिहार के विपरीत, दिल्ली में कोरोना काल में चुनाव नहीं हुआ. लेकिन क्या चुनाव के बीच बिहार एक बड़ी कोरोना लहर से सुरक्षित है, जबकि इसी बीच राज्य में दिवाली और छठ पूजा जैसे पर्व भी मनाए जाएंगे?
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अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान के प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी का कहना है, “अगर लोग सोशल डिस्टेंसिंग और सुरक्षा निर्देशों का पालन नहीं करते तो कोई बड़ी सभा संभावित रूप से खतरनाक हो सकती है. मैं देख रहा हूं कि बिहार उतने ही केस वाले अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा टेस्ट कर रहा है. यह अच्छी बात है और इससे मरीज की शुरुआती पहचान हो सकती है और केस पर नियंत्रण किया जा सकता है.”
बिहार में चुनाव को देखते हुए प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी ने कहा, “हम लोगों को लोकतंत्र में हिस्सा लेने और चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने से नहीं रोक सकते. यह अब सावधानी, साहस और एहतियात का मामला है.” उन्होंने कहा, “मतदान जैसी सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने के सुरक्षित तरीके मौजूद हैं. मेरी राय है कि हमें ऐसी प्रक्रियाओं में शामिल होना चाहिए, मास्क पहनकर अपनी सुरक्षा करनी चाहिए और बंद जगहों में भीड़-भाड़ से बचना चाहिए.”