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कोरोना से मौत की रफ्तार में गिरावट, क्या भारत में कमजोर हो रहा है वायरस

मंगलवार को भारत में 990 कोरोना मौतें दर्ज की गई, सोमवार को इस बीमारी से 886 लोगों की मौत हुई. इंडिया टुडे की डेटा इंटेलीजेंस यूनिट (डीआईयू) ने पाया कि पिछले लगभग एक हफ्ते से भारत में कोरोना वायरस से होने वाली मौतों का आंकड़ा हर दिन 1,000 से नीचे चल रहा है.

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कोरोना को मात देकर प्लाज्मा दान करता एक शख्स (फोटो- पीटीआई)
कोरोना को मात देकर प्लाज्मा दान करता एक शख्स (फोटो- पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भारत में 204 दिन में एक लाख मौतें
  • अब प्रतिदिन हजार से कम है मौत का आंकड़ा
  • मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग अब भी बेहद जरूरी

भारत में कोरोना वायरस से हुई मौतों का आंकड़ा 2 अक्टूबर को 1 लाख पार कर गया. जिससे भारत उन तीन देशों की सूची में शामिल हो गया जहाँ अब यह आंकड़ा लाख के पार है. ब्राज़ील और अमेरीका काफी पहले ही यह आंकड़ा पीछे छोड़ चुके थे. फिलहाल दुनिया में लगभग 10 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस की वजह से मौत के मुंह में जा चुके हैं.  

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इसका मतलब यह भी है की दुनिया में हर 10 कोविड-19 मौतों में से एक भारत में रिपोर्ट हुई, लेकिन इन सबके साथ साथ हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि हर दिन कोरोना वायरस से होने वाली मौतों के आंकड़े में अब गिरावट आनी शुरू हो गई है. 

मंगलवार को भारत में  990 कोरोना मौतें दर्ज की गई, सोमवार को इस बीमारी से 886 लोगों की मौत हुई. इंडिया टुडे की डेटा इंटेलीजेंस यूनिट (डीआईयू) ने पाया कि पिछले लगभग एक हफ्ते से भारत में कोरोना वायरस से होने वाली मौतों का आंकड़ा हर दिन 1,000 से नीचे चल रहा है. सितम्बर के आखिरी हफ्ते से यह आंकड़ा नीचे ही जा रहा है.  

एक लाख मौतें रिकॉर्ड करने के बाद अमेरिका और ब्राज़ील में भी मौतों की संख्या घटी थी लेकिन बीच बीच में यह आंकड़ा ऊपर नीचे होता रहा. 

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अमेरिका में हर दिन कोरोना वायरस मौतें 700 के आस पास हो रही हैं, तो वहीं ब्राज़ील में 650 के आस पास लोग हर दिन इस वायरस से मर रहे हैं.  

लेकिन यह भी जान लेना चाहिए कि अमेरिका और ब्राज़ील ऐसे देश हैं जहां राष्ट्रीय लॉकडाउन की कड़ी निंदा हुई थी, उनकी तुलना में भारत 1 लाख मौतों के आंकड़े तक काफी देर में पहुंचा. 

कोरोना वायरस से अमेरिका में 1 मार्च को पहली मौत हुई और 1 लाख तक पहुंचने में उसे महज 88 दिन लगे, वहीं ब्राज़ील ने एक लाख मौतों तक पहुंचने में 144 दिन लिए. 

दूसरी तरफ भारत में पहली मौत से 1 लाख मौत तक पहुंचने में 204 दिन का समय लगा. अच्छी खबर यह है कि एक लाख के आंकड़े के बाद हर दिन होने वाली मौतों की संख्या में गिरावट आनी शुरू हो गई है. 

धीमी हुई मौतों के आंकड़े की रफ्तार

अगर महीनावार आंकड़ों को देखें तो सितम्बर में सबसे ज़्यादा कोरोना मौतें देखने को मिली. सितंबर में लगभग 32,000 लोग इस बीमारी से मरे. अगस्त में यह आंकड़ा 29,000 के करीब था.  

जुलाई और जून, जब कोरोना के केस काम थे, तब मौतें भी कम थीं. जून में 12,000 और जुलाई में 19,000 लोगों की इस वायरस से मौत हुईं. 

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अगर हम महीना दर महीना मौतों के आंकड़ों में उछाल को देखें तो डेटा दिखाता है कि इसकी रफ्तार कम हो गई है.  

जहां जुलाई में जून की तुलना में 7,000 अधिक मौतें हुई थीं, वहीं अगस्त में जुलाई की तुलना में 9000 ज़्यादा मौतें हुईं. अगस्त की तुलना में सितम्बर में केवल 4300 ज़्यादा लोगों की इस वायरस से मौत हुई. यदि यही ट्रेंड आगे भी रहा तो हो सकता है अक्टूबर में सितम्बर से भी कम मौतें देखने को मिलें.  

क्या भारत में वायरस हो रहा है कमजोर? 

कोरोना वायरस से होने वाली मौतों में कमी देखने को मिल रही है. महाराष्ट्र को छोड़ दें तो अब देश के किसी भी राज्य में 100 से ज़्यादा दैनिक मौतें नहीं हो रही. यहां तक की महाराष्ट्र में भी जहां रोज़ाना 400-450 लोगों की मौत हो रही थी, अब वहां औसतन 370 लोग वायरस से मर रहे हैं.  

अब ऐसे में सवाल उठता है - क्या कोरोना वायरस अब भारत में कम घातक हो रहा है? 

अशोका यूनिवर्सिटी में फिजिक्स और बायोलॉजी के प्रोफेसर गौतम मेनन का कहना है कि आने वाले त्याहारों के सीजन पर काफी चीज़ें निर्भर करेंगी. 

इंडिया टुडे के डेटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) से उन्होंने कहा - "कोरोना से बढ़ने वाले मामले 2 हफ्ते से ढलान पर हैं तो इसमें कुछ तो सतर्क रहते हुए आशावादी बात ज़रूर है. लेकिन सीरो सर्वे की मानें तो अभी हम उस स्तर पर नहीं पहुंचे कि हम कह सकें कि कोरोना वायरस कमज़ोर हो गया है. काफी हद तक यह आने वाले त्यौहारों के सीजन पर भी निर्भर करेगा. हमको यह जान लेना चाहिए कि हम कोरोना से पहले जैसे जिंदगी जी रहे थे, आने वाले कई महीनों तक अब वैसी न हो. मास्क पहनना, दूरी बनाए रखना और भीड़भाड़ से दूर रहना इस समय बहुत महत्त्वपूर्ण है, अगर हमको ऐसे ही कोरोना के आंकड़े आगे भी नीचे लाने हैं तो.”  

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अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ में एपिडेमियोलॉजी की प्रोफेसर भ्रमर मुख़र्जी का कहना है कि भारत को जल्दी लॉकडाउन लगाने से काफी फ़ायदा हुआ क्योंकि इसी समय में भारत ने अपने स्वास्थ्य सिस्टम को सुधारा. 

उनका कहना है, "युवा जनसंख्या, क्रॉस इम्युनिटी जेनेटिक्स - मौतों के कम होने के ऐसे ढेरों कारण हैं जिनको शोध से सिद्ध करने में कुछ साल लग सकते हैं. लेकिन यूरोप और अमेरिका की तुलना में देरी से केस बढ़ने पर भारत विश्व भर में हो रहे ट्रीटमेंट के बारे में काफी जानकारियां हासिल कर पाया. वैज्ञानिक और स्वास्थ्य कम्युनिटी से जो जानकारी प्राप्त हुई उससे भारत को काफी मदद मिली." 

प्रोफेसर भ्रमर ने यह भी कहा कि कोविड-19 से हुई मौतों के बारे में सटीक जानकारी जानने के लिए हमें देश में इस साल सभी कारणों से हुई मौतों के बारे में जानकारी जुटानी होगी  

उन्होंने कहा, "अमेरिका की दूसरी लहर भी कम मौतें देख रही थी. काफी सारे एसिम्पटोमैटिक केस देख कर पता चला कि बहुत से लोग संक्रमित हुए, और बिना किसी लक्षण के ही ठीक हो गए. लेकिन 0.1 प्रतिशत इन्फेक्शन फेटैलिटी रेट होने के बाद अगर देश के 50 प्रतिशत लोग भी कोरोना से संक्रमित हो गए, तो भी 6,70,000  मौतें तो होंगी ही. अभी हमको सिर्फ 1 लाख ही मौतें देखने को मिली हैं. कई जगह कोरोना से होने वाली मौतों के नंबर घटा कर भी दिखाए जा रहे हैं. हमें इस साल हुई सभी मौतों के आंकड़े चाहिए होंगे, ताकि हम सामान्य वर्षों से ज़्यादा हुई मौतों का आंकलन कर सकें. " 

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