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सार्वजनिक स्वास्थ्य या महामारी विज्ञान की दृष्टि से “1,000 केस” कोई बड़ी संख्या नहीं है, लेकिन आम आदमी की समझ में ये एक मनोवैज्ञानिक बैरियर बन गया है. ऐसा बैरियर जो ये संकेत देता है कि कोरोना महामारी घटने की जगह बढ़ रही है. ये ऐसा बैरियर है जिसे भारत के बड़े शहर अब तक नहीं तोड़ सके हैं.
इस लेख में इस्तेमाल सभी आंकड़ों को नगर निगमों, संबंधित राज्यों के स्वास्थ्य बुलेटिन और आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एकत्र किया गया है. महामारी के प्रकोप से सबसे ज्यादा प्रभावित तीन भारतीय शहरों ने एक ही समय में 1,000 केस का आंकड़ा छुआ था. जून की शुरुआत से दिल्ली और चेन्नई में 1,000 केस हर दिन आने शुरू हुए, जबकि मुंबई में ये दो हफ्ते पहले ही शुरू हो गया था. जून के मध्य में दिल्ली और चेन्नई में कोरोना का पीक था, अब ग्राफ नीचे आ चुका है. लेकिन इन तीनों शहरों में अब तक हर दिन दर्ज होने वाले केसों की संख्या 1,000 से नीचे नहीं आई है.
यह दुनिया भर के दूसरे हॉटस्पॉट शहरों के अनुभव से काफी अलग है. उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क शहर में कोरोना तेजी से बढ़ा, जो अप्रैल के अंत तक अपनी उच्चतम सीमा को छू रहा था और फिर हर दिन नए केस की संख्या में लगातार गिरावट आती गई. अब यहां हर दिन नए केस की संख्या सिर्फ दो अंकों में है. जिन दो भारतीय शहरों-बेंगलुरु और पुणे में बाद में केस बढ़ने शुरू हुए, वे भी 1,000 केस बैरियर से काफी ऊपर हैं. बेंगलुरु में लगातार हर दिन 2,000 से ज्यादा केस दर्ज हो रहे हैं.
कोरोना के नए केस कोरोना टेस्टिंग का सीधा नतीजा हैं. हर दिन 1,000 से ज्यादा केस पकड़ने के लिए ये पांच शहर कितना परीक्षण कर रहे हैं, ये बात खास मायने रखती है. दिल्ली और बेंगलुरु हर दिन 20,000 टेस्ट कर रहे हैं. ये संख्या महाराष्ट्र के दोनों शहरों से काफी ज्यादा है, जबकि महाराष्ट्र के दोनों शहरों में टेस्ट पॉजिटिव रेट काफी ज्यादा है. मुंबई और पुणे हर दिन 10,000 से कम टेस्ट कर रहे हैं.
हैदराबाद अकेला शहर है जिसने तेजी से 1,000 की संख्या पार की, लेकिन तेजी से नीचे भी आ गया. हालांकि, राज्य सरकार की ओर से हर दिन होने वाले टेस्ट के आंकड़ों में पारदर्शिता की कमी है. इसलिए अभी हैदराबाद की “सफलता” का जश्न नहीं मनाया जा सकता.