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एक वक्त पर कोरोना मुक्त होने का ऐलान करने वाला गोवा इस वक्त दूसरी लहर का शिकार हो गया है. 21 अप्रैल से 4 मई तक के पीरियड में गोवा में पॉजिटिविटी रेट 41 फीसदी रहा है, जो देश में सबसे अधिक है. जबकि भारत में करीब 13 ऐसे राज्य हैं, जहां इस दौरान पॉजिटिविटी रेट 21 फीसदी से अधिक था.
कई राज्यों में अचानक से कोरोना का पॉजिटिविटी रेट बढ़ना ये दर्शाता है कि अभी भी बड़ी मात्रा में टेस्टिंग को बढ़ाने की ज़रूरत है. गोवा से अलग दिल्ली और बंगाल ऐसे राज्य हैं, जहां का पॉजिटिविटी रेट डराने वाला है. 8 से 21 अप्रैल के बीच दिल्ली का पॉजिटिविटी रेट 32 फीसदी तक गया था, जबकि बंगाल का तीस फीसदी तक पहुंच गया था.
हालांकि, कुछ अच्छे संकेत महाराष्ट्र से सामने आ रहे हैं, जहां अप्रैल के दोनों पीरियड में पॉजिटिविटी रेट में गिरावट दर्ज की गई है. महाराष्ट्र के अलावा छत्तीसगढ़ से भी इसी तरह के संकेत सामने आ रहे हैं.
बता दें कि कोरोना की रफ्तार और उसके फैलाव को पहचानने के लिए पॉजिटिविटी रेट ही बेहतर पैमाना है. इसके अनुसार, प्रति सौ टेस्ट में जितने लोग पॉजिटिव पाए जा रहे हैं, उससे संक्रमण का अंदाजा लगाया जा सकता है. यानी अगर किसी जगह का पॉजिटिविटी रेट 40 है, तो हर सौ टेस्ट में से 40 लोग कोरोना की चपेट में आ रहे हैं.
10 फीसदी से अधिक का आंकड़ा बढ़ाता है चिंता
अभी नेशनल लेवल पर पॉजिटिविटी रेट 20 के आसपास बना हुआ है, जो पिछले कुछ दिनों में ही तेज़ी से बढ़ा है. भारत में कोरोना के मामले बीते कई दिनों से तेज़ी से ही बढ़ रहे हैं. शुक्रवार को भी लगातार दूसरे दिन देश में 4 लाख से ज्यादा केस दर्ज किए गए हैं, जबकि 4 हज़ार के करीब ही मौतें दर्ज की गई हैं. अब भारत में एक्टिव केस की संख्या 35 लाख से अधिक ही बनी हुई है.
आपको बता दें कि एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया उस फॉर्मूले का समर्थन कर चुके हैं, जिसमें दस फीसदी से अधिक पॉजिटिविटी रेट वाले क्षेत्रों में लॉकडाउन लगाने की बात कही गई है. देश में इस वक्त कई ऐसे राज्य हैं, जहां पॉजिटिविटी रेट दस फीसदी से अलग है. इनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं.