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क्या एक बार फिर दुनिया के सामने कोरोना का वैसा ही संकट आने वाला है, जैसा तीन साल पहले आया था. क्योंकि चीन में कोरोना की अब तक की सबसे खतरनाक लहर आई है. संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है. मौतें भी खूब हो रहीं हैं. बावजूद इसके चीन वही करने जा रहा है जो उसने पहले किया था. यानी, आंकड़ों को छिपाने का काम.
जानकारों का मानना है कि महामारी जैसे हालात में आंकड़े छिपाना और खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इससे बीमारी की गंभीरता का सही आकलन लगा पाना मुश्किल हो जाता है, जिसका नतीजा लोगों को भुगतना पड़ता है.
इस बार चीन ने कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़ों को छिपाने का नया तरीका ढूंढ निकाला है. उसने अपनी अलग ही गाइडलाइन बना दी है. इस गाइडलाइन के मुताबिक, कोविड डेथ तभी मानी जाएगी जब मरीज की मौत सांस की बीमारी से होगी. अगर संक्रमित होने के बाद किसी मरीज की मौत हार्ट या ब्रेन से जुड़ी बीमारी से होती है, तो उसे कोविड डेथ नहीं माना जाएगा.
चीन अपनी इस गाइडलाइन को 'वैज्ञानिक' और 'तार्किक' बता रहा है, लेकिन ये तय मानकों से उलट है. अगर कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हुआ है और उसकी मौत हो गई है, तो उसे 'कोविड डेथ' में ही गिना जाएगा. भले ही फिर वो व्यक्ति पहले ही किसी गंभीर बीमारी से क्यों न पीड़ित हो. दुनिया के ज्यादातर देशों में यही मानक है. पर चीन में ठीक इसके उलट. वो सिर्फ उसे ही कोविड डेथ मानेगा जब मरीज की मौत सांस की बीमारी से होगी.
चीन का ये संकट दुनिया के लिए संकट क्यों बन सकता है? इसे लेकर अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में भी एक आर्टिकल छपा है. इस आर्टिकल में लिखा है, 'चीन की सरकार डेटा छिपाने के लिए जानी जाती है. वहां सरकार हर दिन आने वाले मामलों को ठीक से रिपोर्ट नहीं कर रही है. जिससे वहां क्या हो रहा है? आंकड़े क्या हैं? इसे लेकर कन्फ्यूजन बना हुआ है.'
इस आर्टिकल में ये भी लिखा है कि 'हो सकता है कि ये नया संकट पूरी दुनिया को हिलाकर रख दे और ठीक वैसा ही हो जैसा तीन साल पहले वुहान में आउटब्रेक ने पूरी दुनिया को ठप कर दिया था. जरूरी नहीं कि जो चीन में हो रहा है, वो वहीं तक सीमित रहे.'
... तो बच सकती थी दुनिया?
चीन ने 31 दिसंबर 2019 को विश्व स्वास्थ्य संगठन को बताया था कि वुहान में निमोनिया जैसी बीमारी फैल रही है. ये बीमारी कोरोना वायरस से हो रही थी. लेकिन चीन के बताने से डेढ़ महीने पहले से ही कोरोना वायरस फैल गया था.
13 मार्च 2020 को साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने एक रिपोर्ट छापी थी. इसमें सरकारी दस्तावेजों के हवाले से दावा किया था कि हुबेई प्रांत में 17 नवंबर 2019 को ही कोरोना का पहला मरीज ट्रेस कर लिया गया था. दिसंबर 2019 तक ही चीन के अधिकारियों ने कोरोना वायरस के 266 मरीजों की पहचान कर ली थी.
मई 2021 में जब अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने खुफिया रिपोर्ट के हवाले से दावा किया था कि नवंबर 2019 में ही वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के तीन रिसर्चर्स बीमार पड़े थे और उन्होंने अस्पताल से मदद मांगी थी. लेकिन चीन ने कहा था कि इंस्टीट्यूट में 30 दिसंबर 2019 से पहले कोविड का कोई मामला सामने नहीं आया था.
वहीं, साइंस जर्नल लैंसेट में एक स्टडी में दावा किया गया था कि कोरोना से संक्रमित पहला व्यक्ति 1 दिसंबर 2019 को सामने आया था. हैरानी वाली बात ये है कि ये स्टडी चीन के ही रिसर्चर्स ने की थी. लैंसेट की स्टडी के मुताबिक, वुहान के झिंयिंतान अस्पताल में कोरोना वायरस का पहला केस 1 दिसंबर 2019 को आया था.
इतना ही नहीं, कोरोना वायरस के बारे में सबसे पहले बताने वाले चीनी डॉक्टर ली वेनलियांग को भी वहां की सरकार ने न सिर्फ नजरअंदाज किया, बल्कि उनपर अफवाहें फैलाने का आरोप भी लगा दिया. बाद में ली की मौत भी कोरोना वायरस से हो गई थी.
चीन की इस लापरवाही का नतीजा ये हुआ कि कोरोना वायरस थोड़े ही समय में पूरी दुनियाभर में फैल गया. मार्च 2020 में ब्रिटेन की साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में अनुमान लगाया कि अगर चीन तीन हफ्ते पहले कोरोना के बारे में बता देता तो संक्रमण फैलने में 95% तक की कमी आ सकती थी. इतना ही नहीं, अगर कम से कम एक हफ्ते पहले भी बता देता तो भी मामलों को 66% तक कम किया जा सकता था.
वो गलतियां, जिनका अंजाम अभी भी भुगत रही दुनिया
चीन ने न सिर्फ कोरोना के बारे में देरी से बताने की गलती की, बल्कि दो और ऐसी गलतियां भी थीं जिनका अंजाम दुनिया आज तक भुगत रही है. पहली गलती थी- वुहान में पहला मामला सामने आने के बाद भी लॉकडाउन न लगाना. और दूसरी गलती थी- ये न मानना कि वायरस इंसान से इंसान में फैल सकता है.
दिसंबर 2019 की शुरुआत से ही वुहान के अस्पताल में फ्लू जैसे लक्षण के साथ मरीज भर्ती होने लगे थे. इन मरीजों के सैम्पल की जब जीनोम सिक्वेंसिंग की गई तो सामने आया कि ये उसी कोरोना वायरस की तरह है, जिसकी वजह से 2002-03 में भी आउटब्रेक आया था. 31 दिसंबर को चीन ने WHO को इस बीमारी की जानकारी दी.
31 दिसंबर के दिन ही वुहान के सीफूड मार्केट को भी बंद करवा दिया गया. अंदेशा था कि ये वायरस इसी मार्केट से निकला है. लेकिन उसके बावजूद जो चीन आज बिना मामलों के भी लॉकडाउन लगाता फिरता है, उस समय उसने बहुत देर कर दी थी.
वुहान में 23 जनवरी 2020 को लॉकडाउन लगाया गया. पता है इसका नतीजा क्या हुआ? लॉकडाउन लगने के दो-तीन दिन बाद वुहान के मेयर झोऊ शियानवांग ने बताया कि लॉकडाउन लगने से पहले ही 50 लाख से ज्यादा लोग वुहान छोड़कर चले गए. ये 50 लाख लोग कहां गए, पता नहीं. लेकिन इस वजह से कोरोना संक्रमण और दूसरी जगहों में भी फैलने लगा.
लैंसेट की स्टडी के मुताबिक, 1 दिसंबर 2019 को कोरोना का पहला मामला सामने आ गया था. इसके पांच दिन बाद पहले मरीज की पत्नी में भी निमोनिया जैसे लक्षण दिखे और उसे आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया. हैरानी वाली बात ये थी कि वो महिला सीफूड मार्केट भी नहीं गई थी. इस केस से वुहान के डॉक्टर भी समझ गए थे कि ये वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल रहा है.
इसके बाद 25 दिसंबर को वुहान के अस्पताल के दो डॉक्टरों में भी निमोनिया जैसे लक्षण दिखे. उन्होंने खुद को क्वारंटीन कर लिया. ये सबसे अहम सबूत था जो बताता था कि कोरोना एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है. उसके बावजूद चीन ने इस बात को नहीं माना. जब कोरोना के मामले बढ़ने लगे और बात बिगड़ने लगी तब जाकर 20 जनवरी 2020 को चीन ने माना कि कोरोना एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है.
अब खुलेआम छिपाएगा नंबर
चीन पर अक्सर कोरोना के मामले और उससे होने वाली मौतों का सही आंकड़ा छिपाने के आरोप लगते रहे हैं.
इसी साल अप्रैल में ताइवान न्यूज ने फाइनेंशियल टाइम्स के हवाले से कहा था कि चीन कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा छिपा रहा है. इस रिपोर्ट में बताया था कि कोरोना से संक्रमित होने के बाद अगर किसी मरीज की मौत हो जाती है और उस समय उसे कैंसर, हार्ट से जुड़ी बीमारी, डायबिटीज या कोई दूसरी बीमारी भी थी, तो चीन उसे कोविड डेथ नहीं मानता था, बल्कि ये कहता था कि मरीज की मौत उस बीमारी से हुई है.
अभी भी चीन कोरोना से मरने वालों का सही आंकड़ा नहीं दे रहा है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि बीजिंग में कब्रिस्तान में जगह नहीं है. लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए लाइन लगाकर खड़े हैं. उसके बावजूद चीन जो आंकड़े दे रहा है, वो शक पैदा करते हैं. चीन ने 19 नवंबर के बाद से अब तक सिर्फ 11 मौतें होने की बात मानी है.
अमेरिका की वंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में इन्फेक्शियस डिसीज एक्सपर्ट विलियम शेफनर ने ब्लूमबर्ग से कहा कि इतनी कम मौतों की जानकारी देना शक पैदा करता है. उन्होंने बताया कि आमतौर पर संक्रमण में तेजी तब आती है, जब एक या दो हफ्तों तक मौतों की संख्या लगातार बढ़ती है.
और अब मौतों का सही आंकड़ा छिपाने का चीन ने एक अलग तरीका ढूंढ लिया है. अब वो सिर्फ उन्हें ही कोविड डेथ मानेगा जिनकी मौत सांस की बीमारी से होगी. अगर किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति भी कोरोना संक्रमित हो जाता है और उसकी मौत हो जाती है तो उसे कोविड डेथ में नहीं गिना जाएगा.
'लैब लीक थ्योरी' को भी नहीं मानता चीन
कोरोना वायरस कैसे आया? इसे लेकर अब तक कोई एकराय नहीं बन सकी है. कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि ये वुहान के सीफूड मार्केट से आया. वैज्ञानिकों का मानना है कि हो सकता है कि चमगादड़ या किसी और जानवर से ये वायरस इंसानों में फैला हो. तो कुछ वुहान की लैब से वायरस की लीक होने का दावा भी करते हैं.
मई 2021 में ऑस्ट्रेलिया के अखबार 'द ऑस्ट्रेलियन' ने दावा किया था कि चीन की सेना 2015 से इस कोरोना वायरस को जैविक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की साजिश कर रही थी. अखबार ने ये दावा चीन के ही एक रिसर्च पेपर के आधार पर किया था.
ऑस्ट्रेलिया के अखबार ने इस रिपोर्ट में बताया था कि चीन की सेना और वैज्ञानिक कोरोना वायरस के अलग-अलग स्ट्रेन पर चर्चा कर रहे थे और इसे जैविक हथियार में बदलने की साजिश कर रहे थे. क्योंकि चीन की सेना का मानना था कि तीसरे विश्व युद्ध में जैविक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. वो इस पर काम कर रहे थे कि इस वायरस में थोड़ा हेरफेर कर जैविक हथियार बनाया जा सकता है और दुनियाभर में फैला सकता है.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी दावा करते थे कि ये वायरस चीन से ही आया है. ट्रम्प तो खुलेआम इसे 'चीनी वायरस' कहा करते थे. बाद में जब जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अमेरिकी जांच एजेंसियों को कोरोना की उत्पत्ति का पता लगाने को कहा.
मई 2021 में अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने गोपनीय दस्तावेजों के हवाले से दावा किया था कि नवंबर 2019 में वुहान लैब में काम करने वाले कर्मचारी बीमार पड़ गए थे. उन्हें कोरोना या सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण थे.
हालांकि, चीन इन सभी दावों को खारिज करता रहा है. उल्टा चीन कोरोना की उत्पत्ति के लिए दूसरे देशों को जिम्मेदार ठहराता रहा है. कभी चीन कहता है कि ये वायरस अमेरिका की ही किसी लैब से आया है. तो कभी कहता है कि हो सकता है कि वुहान में ये वायरस किसी दक्षिण पूर्व एशियाई देश से फ्रोजन मीट के जरिए आया हो.
दो महीने पहले ही अमेरिकी सीनेट में कोविड की उत्पत्ति को लेकर रिपोर्ट जारी हुई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में कोरोना वायरस पर रिसर्च हो रही थी और वहीं से ये वायरस लीक हुआ. हालांकि, इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि चीन की सरकार और लैब के कर्मचारियों से सही सहयोग नहीं मिल पाने के कारण किसी सही नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता है.
वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम भी जब वुहान लैब में कोरोना की उत्पत्ति का पता लगाने गई थी तो लौटने के बाद कहा था कि इस बात के सबूत नहीं है कि ये वायरस लैब से ही लीक हुआ होगा.
बहरहाल, कोरोना वायरस तीन साल से हमारे बीच में है और अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है. कई वैरिएंट्स सामने आ चुके हैं और लगातार म्यूटेशन की वजह से नए-नए वैरिएंट्स और आ रहे हैं.