
यूपी के शहर आगरा में 4000 एक्टिव कोविड-19 के मामले हैं. निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन का संकट है. मरीजों की संख्या इतनी ज्यादा है कि आगरा के निजी अस्पतालों में बेड की उपलब्धता के बैनर लगा दिए गए हैं, लेकिन इन चुनौतियों के बीच प्रशासन हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा है. आगरा नगर निगम के हेडक्वार्टर में एक हाईटेक कोविड-19 कमांड सेंटर शुरू किया गया है.
पूरी तरह हाईटेक, सुविधाओं से लैस, बड़ी-बड़ी स्क्रीन वाले इस कमांड सेंटर के जरिए उन तमाम लोगों की मदद की जाती है जो कोविड-19 के संक्रमण काल में बेड के लिए अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं या फिर ऑक्सीजन की किल्लत से परेशान हैं.
क्या है कोविड-19 कमांड कंट्रोल सेंटर में?
आगरा के हाईटेक कोविड-19 हेडक्वार्टर में 50 से 60 लोग 24 घंटे काम करते हैं. इस कंट्रोल रूम की जिम्मेदारी आगरा डेवलपमेंट अथॉरिटी के वाइस चेयरमैन डॉ. राजेंद्र पैसिया के हवाले है. तीन अतिरिक्त आईएएस अधिकारी भी इस कंट्रोल कमांड का ऑपरेशन देख रहे हैं. बड़ी-बड़ी स्क्रीन पर हॉस्पिटल का डाटा और मरीजों का स्टेटस इस कंट्रोल रूम में दिखाई पड़ता है.
महामारी की मुसीबत झेल रहे मरीजों या उनके परिजनों द्वारा डायल किए जाने वाले हेल्पलाइन नंबर पर समस्या का निस्तारण करने के लिए इस कमांड सेंटर में एक शिफ्ट में 10 टेलीकॉलर बैठते हैं. तीन शिफ्ट में कुल 30 टेलीकॉलर को जिम्मेदारी दी गई है.
विशेष सलाह मशवरे के लिए इस कंट्रोल कमांड सेंटर में 24 घंटे दो डॉक्टर मौजूद रहते हैं. कोविड-19 से संक्रमित मरीजों या उनसे जुड़ी कानून व्यवस्था की शिकायतों के निस्तारण के लिए दो पुलिस वालों की भी ड्यूटी कंट्रोल रूम में लगाई गई है.
आगरा नगर निगम, आगरा ट्रैफिक पुलिस और इस प्रोजेक्ट से जुड़े दूसरे अधिकारियों की भी ड्यूटी यहां 24 घंटे लगाई गई है. यहां ऐसे कई अधिकारी हैं, जो एक दिन में 12 घंटे से ज्यादा काम कर रहे हैं, ताकि परेशान और दर-बदर ठोकर खा रहे मरीजों या उनके परिवारवालों को सही मार्गदर्शन मिल सके.
एडीए वीसी डॉ. राजेंद्र का कहना है कि इस कमांड कंट्रोल सेंटर में लोग हेल्पलाइन पर फोन भी कर सकते हैं या फिर व्हाट्सएप के जरिए भी अपनी शिकायतें दर्ज कराने के साथ-साथ जानकारियां ले सकते हैं. उन्होंने बताया कि सोमवार को ऑक्सीजन को लेकर थोड़ी किल्लत हुई थी, लेकिन अब हालात बेहतर हो रहे हैं. इतना ही नहीं, मरीजों को जब जरूरत होती है, तो हम उनके लिए फॉर्म भी भरते हैं. डॉ. राजेंद्र के मुताबिक अब प्रशासन के पास आगरा में फिलहाल दो हजार से ज्यादा ऑक्सीजन वाले बेड मौजूद हैं और हेल्पलाइन पर कॉल करने वाले मरीजों को वह व्यवस्था के तहत संबंधित अस्पताल भेज देते हैं.
रेमडेसिविर को लेकर दिक्कत
हालांकि, डॉ. राजेंद्र भी मानते हैं कि रेमडेसिविर इंजेक्शन को लेकर दिक्कतें हैं. उनके पास सप्लाई जितनी आती है उतनी बार दी जाती है, लेकिन इस हेल्पलाइन पर लोग सबसे ज्यादा इस इंजेक्शन को लेकर जानकारी चाहते हैं. प्रोजेक्ट के इंचार्ज डॉ. राजेंद्र ने आजतक को बताया कि हर दिन यहां 400 से 600 लोग फोन करते हैं और हम कोशिश करते हैं कि हर किसी की मदद हो सके.
अधिकारी भी रिसीव करते हैं कॉल
इस कोविड कमांड कंट्रोल रूम में हर मिनट टेलीफोन की घंटियां बजती रहती हैं. यहां काम करने वाले वरिष्ठ प्रोजेक्ट अधिकारी भी खुद फोन के जरिए दवाइयों की किल्लत हो या ऑक्सीजन बेड की कमी की शिकायतें, लोगों की समस्याएं सुलझाते नजर आते हैं. प्रोजेक्ट ऑफिसर शैलेंद्र कहते हैं कि कमांड सेंटर में सबसे ज्यादा सवाल या शिकायतें ऑक्सीजन की कमी और अस्पतालों में बेड को लेकर हो रही हैं, लेकिन हमारे पास रियल टाइम में यह जानकारी है कि किस अस्पताल में बेड खाली हैं या कहां ऑक्सीजन की दिक्कत है. ऐसे में हम मरीज व उनके परिवार को सही अस्पताल भेज देते हैं, ताकि उन्हें बेड मुहैया हो सके.
झेलना पड़ता है गुस्सा
बेहाल परेशान मरीज अस्पताल में बेड, दवाइयां, ऑक्सीजन न मिलने की स्थिति में कई बार आक्रामक हो जाते हैं और उनका गुस्सा इस कोविड-19 कमांड कंट्रोल रूम में बैठे उन कर्मचारियों को भी झेलना पड़ता है, जिन्हें फोन करके मरीजों के तीमारदार मदद मांगते हैं. टेलीकॉलर चुनमुन और सोनिया उन कर्मचारियों में से हैं जो यहां 24 घंटे इस ड्यूटी में है कि कोई परेशान मरीज या उसका परिवार बिना इलाज या बिना मदद न रह जाए. जैसे ही चुनमुन ने अपनी बात करनी शुरू की तब तक उनके सामने का फोन बज गया. ड्यूटी पहले है इसलिए हमने चुनमुन को डिस्टर्ब नहीं किया.
टेलीकॉलर सोनिया कहती हैं कि हर दिन काफी फोन अटेंड करती हैं और हर तरह के सवालों का जवाब देने के साथ कोशिश करती हैं कि मरीज या उनका परिवार परेशान ना हो, बल्कि उन्हें अधिक से अधिक मदद पहुंचाई जा सके. सोनिया बताती हैं कि कई बार लोग गुस्से में होते हैं और अपशब्द भी कहते हैं, लेकिन वह उनकी मनोस्थिति और हालात से वाकिफ हैं. सोनिया का कहना है कि मैं जानती हूं हालात कितने बुरे हैं ऐसे में लोग परेशान हो सकते हैं, इसलिए हम उनकी बातों का बुरा नहीं मानते बल्कि उनकी मदद करने की कोशिश करते हैं.
इंसानियत की भावना से कर रहे सेवा
टेलीकॉलर चुनमुन का कहना है कि हमारे घरवाले भी हमें लेकर फिक्र करते हैं, लेकिन यह ड्यूटी का समय है और हम यहां सिर्फ सरकारी नौकर नहीं बल्कि इंसानियत की भावना से भी लोगों की सेवा कर रहे हैं. चुनमुन बताती हैं कि मरीजों के सबसे ज्यादा शिकायतें या सवाल अस्पतालों में बेड की उपलब्धता और ऑक्सीजन की कमी को लेकर सामने आ रही हैं.
ये टेलीकॉलर जानते हैं कि हालात बाहर कितने नाजुक हैं और इसीलिए यह नौकरी से हटकर इंसानियत की बुनियाद पर लोगों की भावनात्मक मनोस्थिति को समझते हैं और कोशिश करते हैं कि हर किसी को समाधान मिल सके. चुनमुन कहती हैं कि कई लोग फोन करके यह भी कह देते हैं जब आपके घर पर बीतेगी तभी आप समझेंगे, लेकिन हम अपनी ओर से पूरी कोशिश करते हैं कि उनकी मदद कर सकें.