1918 में फिलाडेल्फिया में वर्ल्ड वॉर-1 के दौरान मारे गए जवानों को आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए एक परेड का आयोजन किया गया. ये वो वक्त था जब दुनियाभर में स्पेनिश फ्लू ने दस्तक दे दी थी. इस कारण परेड में जितने लोगों के शामिल होने की उम्मीद थी, उतने नहीं जुट पाए थे. उसके बाद भी यहां 2 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ जमा हुई थी. इस परेड के बाद स्पेनिश फ्लू के 48 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए थे.
स्पेनिश फ्लू कितना खतरनाक था, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस वक्त इस बीमारी की वजह से भारत की कुल आबादी में से 4.4% से 6.1% लोगों की मौत हो गई थी. ये बात कैम्ब्रिज के नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च ने कही थी. 1918 में आई इस महामारी में उस वक्त करीब 1.1 करोड़ से 1.4 करोड़ भारतीयों की मौत हुई थी.
अब आते हैं 2021 में. राजनीतिक रैलियां और धार्मिक जमावड़े हो रहे हैं. ये बताता है कि हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा. ये सब तब हुआ जब देश में कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो गई थी. अक्सर 1918 के स्पेनिश फ्लू (बाद में इसका नाम बदलकर 1918 H1N1 फ्लू कर दिया गया था) और कोविड-9 की तुलना की जाती है. लेकिन क्या वाकई इन दोनों महामारियों की तुलना करना सही रहेगा?
'दोनों महामारियों की तुलना नहीं की जा सकती'
संक्रमण फैलने में समानता होने के बावजूद एक्सपर्ट मानते हैं कि इन दोनों महामारियों की तुलना नहीं की जा सकती. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के महामारी विशेषज्ञ प्रोफेसर गिरधर बाबू कहते हैं, "स्पेनिश फ्लू और कोविड-19 की तीसरी लहर की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि कोविड-19 के फैलने का तरीका अलग है. साथ ही इसके नए-नए वैरिएंट भी आ रहे हैं. लेकिन एजेंट, होस्ट और पर्यावरण, ये तीनों ही चीजें इन दोनों बीमारियों के फैलने के तरीके को समझने के लिए जरूरी है. ये सब इंसान के हाथ में ही है."
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'हम इतिहास से सीख सकते हैं'
एक्सपर्ट का कहना है कि पुरानी महामारियों से हम भविष्य में आने वाली बीमारियों से निपटने के लिए सबक ले सकते हैं. महामारी विशेषज्ञ डॉ. चंद्रकांत लहारिया कहते हैं, "1918 का फ्लू और कोविड-19 दोनों ही महामारियां रिस्पेरेटरी वायरस के कारण फैली हैं और इन दोनों ही बीमारियों से निपटने के तरीके लगभग एक ही हैं."
वो कहते हैं, "जैसा कि स्पेनिश फ्लू में देखा गया था, उस महामारी में दूसरी लहर सबसे ज्यादा घातक रही थी, लेकिन कोरोना के मामले में ऐसा नहीं है. हालांकि, भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने इतिहास को दोहराया है."
एक्सपर्ट का कहना है कि स्पेनिश फ्लू की तीसरी और चौथी लहर छोटी थी लेकिन कोरोना के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसके नए वैरिएंट सामने आ रहे हैं जो पहले से ज्यादा संक्रामक हैं. डॉ. लहारिया कहते हैं, "हम नहीं जानते कि 100 साल पहले क्या हुआ हो. हमें ये याद रखने की जरूरत है कि 100 साल पहले महामारी किस वायरस की वजह से फैली थी. पर अभी नए वैरिएंट के साथ सार्स-कोव-2 बहुत अलग है. दिसंबर 2019 में जो वायरस मिला था, अब उससे पूरा अलग वायरस है. इसलिए हमें कुछ भी अनुमान नहीं लगाना चाहिए. हमें महामारी की आने वाली लहरों से निपटने की तैयारियां करनी चाहिए."
स्पेनिश फ्लू में तीन लहरें आई थीं
स्पेनिश फ्लू की दूसरी लहर में 30 से 40 साल की उम्र के लोगों की मौत हुई थी. भारत में भी दूसरी लहर में युवा आबादी ही शिकार हुई है. इस लिहाज से एक्सपर्ट मान रहे हैं कि भारत में दूसरी लहर ने अपना इतिहास दोहराया है.
स्पेनिश फ्लू के दौरान मार्च 2018 से 1919 के गर्मियों की बीच तीन लहरें आई थीं. दूसरी लहर में अमेरिका में सबसे ज्यादा मौतें हुई थीं. तीसरी लहर में भी मौतों की संख्या तेजी से बढ़ी थी. 1919 की गर्मियों में तीसरी लहर थम गई थी.
प्रोफेसर गिरधर बाबू कहते हैं कि "100 साल बाद हमारे पास बेहतर तकनीक है. महामारी को काबू करने के लिए संसाधन हैं. वैक्सीन है. ये सब हमारे लिए स्पेनिश फ्लू की बजाय कोविड-19 से निपटना आसान बनाता है."