देश में कोरोना संक्रमण की रफ्तार घातक होती जा रही है. हर दिन हजारों की संख्या में लोग दम तोड़ रहे हैं. ऐसे में कई बच्चों की सिर से मां-बाप का साया उठ जा रहा है. ऐसे में सोशल मीडिया पर ऐसे अनथ बच्चों की मदद के लिए डोनेशन या अडॉप्ट करने को लेकर पोस्ट भी बढ़ रहे हैं. महामारी के दौर में लोगों ऐसे बच्चों को लेकर सहानुभूति जाहिर है, लेकिन ये कानून का उल्लंघन भी है.
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 और सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी की तरफ से ऐसे बच्चों के लिए एक अलग गाइडलाइंस है. कोई भी ऐसा बच्चा, जिसके मां-बाप नहीं है, उसके अडॉप्शन को लेकर एक पूरी प्रक्रिया है. इतनी आसानी से कोई भी एनजीओ या व्यक्ति ऐसे बच्चे को न तो गोद ले सकता है और न ही उसकी देखभाल कर सकता है. यहां तक कि उसके परिवार के ही सदस्यों के लिए भी एक प्रक्रिया है.
कानून के तहत, ऐसे बच्चे को पहले जिले की चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के पास भेजा जाता है. वही जांच करती है और उसके बाद तय करती है कि बच्चे को परिवार या दोस्तों के पास भेजा जाए या फिर चाइल्डकेयर होम भेजा जाए. नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के चेयरपर्सन प्रशांत कनुंगो ने इंडिया टुडे को बताया कि उन्होंने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और स्टेट चाइल्ड प्रोटेक्शन कमीशन को पत्र लिखा है और ये सुनिश्चित करने को कहा है कि ऐसे बच्चे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत संरक्षित रहें.
उन्होंने बताया कि "भारत में कानून इतन लचीला नहीं है कि किसी भी अनथ बच्चे को इतनी आसानी से गोद लिया जा सके. यहां कुछ नियम हैं. यहां डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, जुवेनाइल जस्टिस कमेटी और पुलिस चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट्स हैं." उन्होंने कहा कि बच्चे को गोद लेन एक लंबी प्रक्रिया है.
प्रशांत कनुंगो बताते हैं, "ऐसे सभी बच्चों को पहले चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के पास लाया जाता है. रिपोर्ट तैयार होती है. उसके बाद कमेटी ही तय करती है कि बच्चा कहां जाएगा? यहां तक कि परिवार, भाई-बहन के मामले में भी नियम हैं. ये महामारी कोई सुनमी या भूकंप की तरह नहीं है, जहां सबकुछ खत्म हो गया है. कई बच्चों के पास अपने माता-पिता की संपत्ति को हासिल करने का अधिकार है. सभी बच्चों को सारे अधिकार सुनिश्चित करान जरूरी है."
वहीं, बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े वकील प्रभसहाय कौर का कहना है कि उनके एनजीओ ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है, क्योंकि सरकार सोशल मीडिया पर बच्चों से जुड़ी गलत जानकारियों के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में नकाम रही है. उन्होंने कहा, "हो सकता है कि लोगों का मकसद सही हो, लेकिन इसके लिए आप बच्चों को किसी सामान की तरह पेश नहीं कर सकते हैं. अगर कोई बच्चा परेशान है, तो ये सरकार की गलती है."
हाल ही में एनजीओ ने 17 साल के बच्चे की मदद की थी, जिसके रिश्तेदार उसे घर में रखने से पहले उसकी संपत्ति के दस्तावेज मांग रहे थे. कौर का कहना है कि इस तरह के कई मामले आ सकते हैं. उनका कहना है कि अब तक हजारों बच्चे ऐसी परिस्थितियों से जूझ रहे होंगे.
30 अप्रैल को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को एक लेजर जारी किया गया था, जिसमें ऐसे सभी बच्चों के पुनर्वास की तत्काल कार्रवाई करने के आदेश दिए गए थे, जिनके माता-पिता की मौत कोरोना से हुई हो. साथ ही ये भी निर्देश दिए गए हैं कि जिन बच्चों के माता-पिता की मौत कोरोना से हो गई हो, उनसे जुड़ी सारी जानकारी चाइल्डलाइन को भेजी जाए, ताकि बच्चे से संपर्क करने और उसकी निगरानी के लिए कदम उठाए जा सकें. जिसके बाद 4 मई को दिल्ली सरकार ने मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मिलकर जिला स्तर पर एक टास्क फोर्स का गठन किया है और एक नोडल ऑफिसर की नियुक्ति की है, जो सोशल मीडिया पर ऐसे बच्चों से जुड़ी पोस्ट या मैसेज की निगरानी करेगा, ताकि कार्रवाई की जा सके.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का ये भी कहना है कि "आपराधिक प्रवृत्ति के लोग इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए कर सकते हैं. इससे बच्चों के बेचे जाने, अवैध तरीके से रखने या अवैध रूप से गोद लेने का जोखिम बढ़ गया है."
वहीं, कनुंगो ने अपील करते हुए कहा कि "मैं एनजीओ से पैनिक क्रिएट न करने की अपील करता हूं. लोगों को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट को समझने की जरूरत है, ताकि ऐसे बच्चों को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी या जुवेनाइल जस्टिस कमेटी के पास भेजा जाए." उन्होंने ये भी कहा कि कुछ लोग पैसे कमाने के लिए गलत काम कर रहे हैं.