कोरोना वैक्सीन को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी के कुछ दिन बाद केंद्र सरकार ने विदेशी कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी ट्रायल को इजाजत देने की फास्ट्र ट्रैक व्यवस्था करने का फैसला लिया है. इससे पहले केंद्र ने राहुल पर विदेशी फार्मा कंपनियों की पैरवी करने का आरोप लगाया था.
मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि विदेश में विकसित और निर्मित किसी भी वैक्सीन के भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत तभी दी जाएगी, जबकि उसे अमेरिकी, ब्रिटिश, यूरोपीय और जापानी नियामकों में से किसी एक से इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत मिल चुकी हो.
विदेशी वैक्सीन को इजाजत देने के पीछे सरकार का तर्क था कि इससे टीकाकरण अभियान और तेज होगा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा था, 'विदेशी कोरोना वैक्सीन को इजाजत देने से पहले दुष्प्रभावों को परखने के लिए शुरुआत में वैक्सीन लेने वाले 100 लोगों पर एक हफ्ते तक लगातार नजर रखी जाएगी.'
सरकार के इस फैसले के बाद राहुल गांधी ने ट्विटर पर दावा किया कि यह उनकी चिट्ठी का असर है. देश में टीकाकरण अभियान की धीमी गति पर चिंता व्यक्त करते हुए, राहुल गांधी ने अन्य वैक्सीन के लिए फास्ट ट्रैक स्वीकृति मांगी थी. राहुल गांधी ने ट्वीट किया, 'पहले वे आपको अनदेखा करते हैं फिर वे आप पर हंसते हैं फिर वे आपसे लड़ते हैं, फिर आप जीतते हैं.'
हालांकि, सरकार ने मई 2020 की शुरुआत में कहा था कि उसने वैक्सीन निर्माण के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया था. केंद्र सरकार का कहना है कि हमारी इन्हीं रणनीतियों की वजह भारत का पहला देश बन गया था, जिसके पास दो मेड-इन-इंडिया कोरोना वैक्सीन घरेलू टीकाकरण अभियान के लिए थीं.
बीजेपी के एक सीनियर नेता ने कहा कि, 'राहुल गांधी उस बात का श्रेय ले रहे हैं, जो पहले से ही पाइपलाइन में था, विदेशी टीकों को अनुमति देने की कुछ समय से चर्चा चल रही थी, इसके अलावा कई विदेशी वैक्सीन निर्माताओं ने वैक्सीन बनाने या वितरित करने के लिए भारतीय कंपनियों के साथ करार किया है, यह स्वाभाविक है कि सरकार वैक्सीन को लेकर कदम उठाएगी.
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत में टीकों की मांग में तेजी देखी गई है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारतीय कंपनियां टीके मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. अब तक 11 करोड़ लोगों को टीका लगाया गया है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश के भीतर संवेदनशील आबादी 30 करोड़ है. यानी अभी भी एक बड़े तबके को टीका लगाया जाना बाकी है.