एक सवाल काफी बार सामने आ रहा है कि मरीजों में लंबे समय तक कोरोना वायरस का रहना जिसे 'लॉन्ग कोविड' कहा जा रहा है, क्या ये एक नया खतरा है? इस सवाल के जवाब के लिए अलग-अलग डॉक्टरों की राय इंडिया टुडे टीवी डॉक्टर्स राउंडटेबल पर ली गई.
लॉन्ग कोविड कितना कॉमन है? इसके क्या लक्षण हैं? क्या 30-45 साल की उम्र के लोग इसके लिए अधिक संवेदनशील हैं?
डॉ. बोर्नाली दत्ता, डायरेक्टर, श्वसन विभाग, मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम
हम इस समय लॉन्ग कोविड या पोस्ट-कोविड सिंड्रोम से बड़े स्तर पर जूझ रहे हैं, लॉन्ग कोविड को मोटे तौर पर ऐसे परिभाषित किया जाता है ऐसा कोई लक्षण हो जो चार हफ़्तों से अधिक तक चल जा रहा है. इसमें कोरोना के लक्षण लगातार बढ़ने की दिशा में हो सकते हैं, या ऐसा हो सकता है कि लक्षण दोबारा वापस लौटकर आएं. या ऐसे लक्षण आएं जो आपमें पहले नहीं थे. मरीजों के फेफेड़े में दिक्कत आ रही है, पेशाब की दिक्कत वाले मरीज भी आ रहे हैं, ब्लैक फंगस के मामले भी आ रहे हैं, पैरों या फेफड़ों में भी क्लोट्स बन रहे हैं.
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ये सामान्य थकान, सांस फूलने, घबराहट, ब्रेन फोग से अलग चीज है, इनमें से कोई भी चीज 2% से 20% होने पर लॉन्ग कोविड हो सकती है. वो लोग भी जिनमें बहुत माइल्ड सिंप्टम थे और घर पर ही सही हो गए, उनमें भी सांस फूलने, थकान और अन्य चीजों के लक्षण रह रहे हैं जो उन्हें सामान्य जीवन शुरू करने से रोक रहे हैं. इसके साथ ही देखा गया है कि कई बार मन उदास होता है, और यह ऐसी चीज है जहां दवाइयों का रोल बहुत अधिक नहीं है. इसलिए एक्सरसाइज और डाइट जैसी चीजों पर ध्यान दिया जाए. जिनकी उम्र तीस से चालीस के बीच है, उनमें से बहुत से फिट और जवान हैं उनके भी फेफड़ों की स्थिति गंभीर है. इससे शायद वैक्सीनेशन ही बचा सकती है.
लोग नकारात्मक विचारों जैसे कोविड के बाद मौत के डर आदि से कैसे लड़ सकते हैं? इसका क्या समाधान है? क्या इस तरह के विचार रखने वालों के डिप्रेशन में जाने की अधिक संभावना है?
वरखा चुलानी, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट, लीलावती हॉस्पिटल, मुंबई
कई बार लोग बीमार होने से ज्यादा डरे हुए होते है. एंग्जाईटी के कारण सांस फूलने की समस्या आ सकती है. आपको ऐसे नकारात्मक विचारों जैसे मौत आदि से खुद को थोड़ा दूर करने की कोशिश करनी चाहिए. हमें अपने दिमाग पर कंट्रोल करने की नहीं, बल्कि उसे डायरेक्ट करने पर ध्यान देना चाहिए. जितना हमारे पास जिंदगी को लेकर लक्ष्य होते हैं, जितनी महत्वाकांक्षाएं या उद्देश्य होते हैं, ऐसी चुनौतियाँ का सामना करना उतना ही सरल होता है. एंग्जाईटी के साथ ही डिप्रेशन और आशाहीनता, बेबसी आती है. उन्हें ऐसा लगता है कि वे इससे पार नहीं पा पाएंगे. इसके लिए धीरे-धीरे दुबारा से उर्जा और भावनात्मक सहनशक्ति को प्राप्त करने की कोशिश करना मदद कर सकता है.
लॉन्ग कोविड मरीजों में हार्ट अटैक का डर देखा जा रहा है. क्या ब्रेन फोग (सोचने की क्षमता प्रभावित होना) भी कोविड के बाद का सामान्य लक्षण है? कोविड किन-किन अंगों को प्रभावित कर सकता है, और इसका क्या-क्या इलाज हो सकता है?
प्रोफेसर डॉ. प्रतीत समदानी
संवहनीय (Vascular) संबंधी समस्याएं बेहद सामान्य हैं. कोविड एक वायरल इन्फेक्शन है जिससे फेफड़ों को भारी नुकसान होता है. लेकिन ये बाकी अन्य सभी अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकता है. दरअसल लॉन्ग कोविड, फेफड़ों के अलावा हमारी आंत, मस्तिष्क, लीवर, किडनी को भी नुकसान पहुंचा सकता है. और ये कोई असामान्य बात नहीं है. जिस तरह की ये बीमारी है उसकी वजह से लोगों में हार्ट अटैक की प्रॉब्लम आ सकती है. ये वायरस शरीर में रक्त के थक्के जमने का कारण भी बन सकता है. इस कारण हार्ट अटैक का सामना करना पड़ सकता है.
बहुत से वृद्ध वयस्कों को हार्ट डिजीज का पता नहीं होता, जिनका इलाज चल रहा है उन्हें अपनी दवा रोक देनी चाहिए. उन्हें इसका हाई रिस्क है. इसके अलावा क्रमिक रूप से पोस्ट रिकवरी एक्सरसाइज की जानी चाहिए.
रही बात ब्रेन फोग की तो ये बेहद सामान्य है. इसका समाधान यही है कि कोविड के बाद नियमित तौर पर अच्छी डाईट लें, समय समय पर पानी पिएं, ये ध्यान रखें कि आप हाइड्रेटेड हैं, प्रोटीन का सेवन सही है कि नहीं.