देशव्यापी लॉकडाउन से भले ही कोरोना वायरस से निपटने में सफलता मिल रही हो, लेकिन सबकुछ ठप होने से हजारों लाखों के सामने जिंदगी की चुनौती भी खड़ी है. इंसान तो इंसान अब जानवर भी लॉकडाउन से मुश्किल में हैं. जयपुर के हाथी गांव में 103 हाथी और उनके महावत आजकल रोजी-रोटी के संघर्ष से जूझ रहे हैं. जयपुर में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे हाथी गांव के हाथी फिलहाल लॉकडाउन के चलते अपने-अपने कमरों में बंद हैं.
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हाथी मालिक विकास समिति के अध्यक्ष और पूर्व बीजेपी पार्षद अब्दुल अजीज ने आजतक से बातचीत में महावतों के सामने खड़ी मुश्किलों का जिक्र करते हुए कहा कि 600 रुपये प्रति हाथी के हिसाब से सरकार देती है, लेकिन खर्चा 3,000 से ज्यादा होता है, ऐसे में सरकार से ज्यादा मदद की जरूरत है.
लॉकडाउन में कमाई बंद
फिलहाल पर्यटन बंद है इसलिए किलों की रौनक भी छिन चुकी है. सैलानी हैं नहीं तो हाथियों पर सैर कौन करे. जब सब कुछ बंद है तो महावत भी क्या कमाए. जुल्फीकार उन्हीं महावत में से एक हैं जो हाथी गांव में इन बेजुबान जानवरों की देखभाल करते हैं. वो कहते हैं कि बिल्ली और चंचल के साथ समय बीत जाता है. बिल्ली और चंचल इनके दो हाथियों का नाम है. जुल्फिकार का कहना है कि सरकार से कोई मदद नहीं मिलती है. राशन-पानी समिति की ओर से मिल जाता है. फिलहाल कमाई भी बंद है.
हाथी के साथ बच्चे
समिति के अध्यक्ष अब्दुल अजीज का कहना है कि समिति की ओर से पूरी कोशिश की जा रही है कि हाथियों की खुराक कम ना पड़े. इन हाथियों को गन्ना पसंद है, इसलिए गन्ने से गोदाम भरे हैं और इन्हें भरपेट खाना दिया जाता है. समिति का कहना है कि जब पर्यटन होता है तो कमाई भी होती है, जिससे हाथियों को भी पोषक खुराक मिलती है और महावत का भी घर चलता है.
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फिलहाल हाथी गांव में सन्नाटा है. हाथी अपने-अपने कमरों में बंद हैं. महावत घर से बाहर निकल नहीं सकते. घर के छोटे-छोटे बच्चे हाथियों के साथ खेलकर समय बिता रहे हैं. लॉकडाउन ने कई चुनौतियां सामने खड़ी कर दी हैं. सबको सरकारी मदद की दरकार है, ताकि जिंदगी चलती रहे.
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