भारत में कहर बनकर टूटा कोरोना वायरस लगभग बेकाबू है. लेकिन अच्छी बात ये है कि देश को कोरोना से मुकाबला करने के लिए एक स्वदेशी दवा मिल गई है. ये दवाई डीआरडीओ ने विकसित की है. दवा का नाम है 2डीजी. सोमवार के दिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इसके पहले बैच को लॉन्च कर दिया है. जून में इस दवा के आम लोगों तक पहुंचने की उम्मीद है.
कोरोना की दूसरी लहर के बीच ये तस्वीर राहत देने वाली है. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी DRDO से निर्मित कोरोना की दवा 2-डीजी की पहली खेप लॉन्च कर दी गई है. इस कठिन समय में अब हमारे पास ऐसी दवा है जो ऑक्सीजन की ज़रूरत को कम कर देगी और मरीज़ों को कोरोना संक्रमण से जल्दी मुक्ति दिला देगी.
सूत्रों के मुताबिक अगले 24 घंटे में राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में इस दवा की 10 हजार डोज सप्लाई की जाएंगी. जून की शुरुआत में ये सब जगह उपलब्ध होगी. दवा के सैशे पर मात्रा, तापमान, सब लिखा है. 2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज नामक ये दवा पाउडर के रूप में है. इसे पानी में घोलकर मरीजों को दिया जाता है. इस दवा के एक पैकेट में - 5.85 ग्राम दवा होगी. इसे स्टोर करने का अधिकतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस है. और इसे नमी से भी बचाना होगा. लिहाज़ा इसकी सप्लाई में कोई दिक्कत नहीं आने वाली. वैक्सीन की किल्लत और कोरोना के मैनेजमेंट पर आलोचनाओं के बीच, DRDO की दवा का ये पैकेट, सरकार के लिए कुछ राहत लेकर आया है.
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इस मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा ''आज बहुत सुखद दिन है, हमारे पास एक ऐसी दवा है. जो बड़ा बदलाव ला सकती है.''
वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का दावा है कि 2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज कोरोना मरीजों पर बेहद कारगर रहा है. इसे लेने वाले मरीज़ कम से कम 2.5 दिन पहले ठीक हो रहे हैं. वैज्ञानिकों ने अप्रैल 2020 में इस दवा पर प्रयोग शुरू किया था. DCGI ने मई 2020 दवा के फेज 2 ट्रायल को मंजूरी दी थी. फेज-2 के तहत दवा का इस्तेमाल 11 अस्पतालों में भर्ती 110 मरीजों पर किया गया. ये ट्रायल पिछले साल मई से अक्टूबर के बीच किया गया था. नतीजा ये निकला कि बाकी मरीज़ों के मुकाबले दवा लेने वाले मरीज ज्यादा ठीक हुए.
इसी दवा पर दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच देशभर के 27 अस्पतालों में फेज-III के ट्रायल्स हुए. इस बार 220 मरीजों को दवा दी गई. नतीजा ये निकला कि 42% मरीजों की ऑक्सीजन की निर्भरता तीसरे दिन ही खत्म हो गई, लेकिन जिन्हें दवा नहीं दी गई, उनमें से 31% मरीजों की ही ऑक्सीजन पर निर्भरता खत्म हुई.
दवा के ट्रायल में ये बात भी सामने आई कि इससे कोरोना मरीज के ऑक्सीजन लेवल में सुधार होता है
इस दवा को डीआरडीओ के INMAS और हैदराबाद के CCMB ने मिलकर तैयार किया है. इस दवा के उत्पादन की जिम्मेदारी हैदराबाद स्थित डॉ. रेड्डी लैबोरेट्रीज को दी गई है. जरूरत अब इस बात की है कि दवा का प्रोडक्शन तेजी से बढ़े और इसे देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजा जा सके. जहां कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है उन राज्यों में इसकी सप्लाई तुरंत होनी चाहिए.
DRDO की ये दवा, कोरोना वायरस को धोखा देने के सिद्धांत पर काम करती है, इस दवा के काम करने के तरीके को तीन शब्दों में समेटें, तो कहा जाएगा "Cheat the Cheater" वायरस किसी शरीर में जाने के बाद अपनी डुप्लीकेट कॉपी बनाता है और इसके लिए उसे एनर्जी चाहिए होती है, DRDO की दवा ग्लूकोज के रूप में वायरस के अंदर पहुंच जाती है और उसे अपनी कॉपी बनाने से रोक देती है, इससे हमारे शरीर को मदद मिलती है और इम्यूनिटी वायरस पर काबू पा लेती है.
एक बार जब ये पता लग गया कि दवा कारगर हो सकती है तो DRDO, ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी DCGI के पास पहुंची- क्योंकि कोरोना मरीजों पर दवा के परीक्षण के लिए DCGI की हरी झंडी जरूरी है.
DRDO ने मई 2020 में फेज-2 का क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया था, अच्छे नतीजे आए और करीब दो महीने बाद DCGI को रिपोर्ट पेश की गई. DCGI ने फिर मरीजों पर डोज बढ़ाने का निर्देश दिया. नवंबर में फिर रिपोर्ट पेश की. इस बार नतीजे बहुत अच्छे थे. इसके बाद DCGI ने सभी मानकों की कसौटी पर फेज-3 के क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी, जिसमें करीब 220 कोरोना मरीजों को ये दवा दी गई और इसके नतीजे बहुत अच्छे आए.
अब सवाल उठता है कि ये दवा काम कैसे करती है? कैसे वायरस को कंट्रोल करती है? साधारण भाषा में समझे तो कोरोना का वायरस लगातार अपनी कॉपी बनाता है और इसके लिए उसे ताकत की जरूरत होती है और ये दवा जो ग्लूकोज की तरह है वायरस को कंफ्यूज कर देती है और वायरस अपनी कॉपी बनाने में फेल हो जाता है. DRDO का Institute of Nuclear Medicine and Allied Sciences इस दवा की तकनीक पर 1980 से काम कर रहा है. ये थ्योरी एंटी कैंसर थेरेपी में इस्तेमाल होती आई थी.
(आजतक ब्यूरो)