कोरोना संक्रमण की घटती रफ्तार के बीच अब इससे जुड़े हुए रिसर्च भी सामने आने लगे हैं कि आखिर क्यों दूसरी लहर इतनी ज्यादा जानलेवा और घातक थी? वाराणसी और आसपास से लिए नमूनों की जांच के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय और सीएसआईआर-सेलुलर और आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी), हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च में पाया कि वाराणसी क्षेत्र में कम से कम कोरोना वायरस सात वैरिएंट्स उपस्थित थे, जिसमें कोरोना वायरस के सबसे घातक वैरिएंट ऑफ कंसर्न जिसे डेल्टा वैरीएंट भी कहते हैं, उसकी वजह से वाराणसी में कोरोना की रफ्तार इतनी तेज थी.
इस बारे में और ज्यादा जानकारी बीएचयू में एमआरयू लैब की प्रमुख प्रोफेसर रोयना सिंह ने बताया कि अचानक जैसे ही कोरोना की दूसरी लहर आई तो हम लोगों ने संक्रमण दर और ट्रांसबिलिटी रेट बढ़ता देखा. इस पर शक हुआ कि क्या वायरस म्यूटेट कर लिया होगा? जिसके बाद रिसर्च करने पर यह नतीजा निकला कि जो सैंपल जांच के लिए सीसीएमबी हैदराबाद भेजे गए थे, उसमें 36% वेरिएंट ऑफ कंसर्न जिसे डेल्टा स्ट्रेन भी कहते हैं पाया गया.
इसमें बी11.617 स्ट्रेन निकला. प्रोफेसर रोयना सिंह ने आगे बताया कि बीएचयू के उनके लैब में 957000 नमूनों की जांच लगभग 1 साल में हो चुकी है. जिसमें 10000 से ऊपर पॉजिटिव केस निकल कर सामने आए हैं. हमारी लगभग 40 से 50 लोगों की टीम है जिसने कलेक्शन से लेकर अन्य काम लैब से संबंधित होते हैं.
जहां तक थर्डवेव और फोर्थ वेब की बात है तो हम लोगों ने ऐसा पाया है कि वायरस म्यूटेट करके फिर आते हैं. इसलिए हम लोग भी पूरी तरह से तैयार हैं. हमारी लैब और लोग सभी तैयार हैं. उन्होंने कहा कि बचाव के लिए सिर्फ यही है कि कोविड गाइडलाइंस का नियमित रूप से पालन किया जाए.
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