देश को आजाद हुए 2022 में 75 साल पूरे होने जा रहे हैं. ऐसे में देश के एक हिस्से से ऐसी तस्वीर सामने आना कि एक वृद्ध महिला को इलाज के लिए चारपाई पर लिटा कर पांच किलोमीटर तक कंधों का सहारा दे कर ले जाना पड़े तो ये अपने आप में कई सवाल खड़े करता है. ये तस्वीर झारखंड राज्य से सामने आई है जिसे खुद भी अस्तित्व में आए दो दशक से अधिक हो चुके हैं.
तस्वीर में उबड़ खाबड़ रास्ते से जिस महिला को खाट पर लिटा कर ले जाते दिख रहा है उसका नाम बंधनी देवी है. मामला गोमिया प्रखंड के अंतर्गत आने वाली सिंयारी पंचायत के संथाली बाहुल्य गांव असनापानी का है. जहां बीमार वृद्ध बंधनी देवी को पांच किलोमीटर दूर दनिया तक चारपाई पर ले जाया गया, ताकि उसे आगे रामगढ़ इलाज के लिए ले जाया जा सके. लेकिन कोरोना महामारी के खौफ से किसी ने भी उसे रामगढ़ पहुंचाने में सहयोग नहीं किया, तो महिला को वापस उसी रास्ते से असनापानी गांव लाया गया. अब गांव में ही जड़ी-बूटियों के सहारे से इलाज चल रहा है.
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ये कहानी अकेली बंधनी देवी की नहीं है. ग्रामीणों के मुताबिक गर्भवती महिलाओं को भी प्रसव के वक्त इसी प्रकार खाट पर ले जाना पड़ता है. उनका ये भी कहना है कि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में आज भी वे आदिम युग में जीने को मजबूर हैं.
असनापानी गांव में संताली परिवारों के 15 घर हैं, जो पहाड़ी पर स्थित हैं. गोमिया प्रखंड में ये अकेला ऐसा गांव है, जहां अभी तक बिजली नहीं पहुंच पाई है. न ही यहां कोई स्कूल है. पढ़ाई के लिए तीन किलोमीटर दूर बिरहोर डेरा गांव में एक स्कूल है, वहीं असनापानी के बच्चे पढ़ने जाते हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी?
प्रखंड विकास पदाधिकारी कपिल कुमार से आजतक ने इस मुद्दे पर बात की. कपिल कुमार के मुताबिक असनापानी गांव में पंचायत सचिव व रोजगार सेवक को भेजकर समस्याओं के आंकलन का निर्देश दिया गया है. ग्रामीणों को मनरेगा से काम दिया जायेगा. इसके साथ ही सड़क का निर्माण भी कराया जाएगा.
गोमिया में चिकित्सा से जुड़े प्रखंड प्रभारी डॉ हलन बारला ने कहा कि दनिया उपस्वास्थ्य केन्द्र में एएनएम बैठती है, साथ ही क्षेत्र में हर महीने स्वास्थ्य शिविर लगाया जाता है. मरीजों को अस्पताल लाने के लिए 108 एंबुलेंस का इस्तेमाल होता है. डॉ. बारला के मुताबिक डॉक्टरों की काफी कमी है, इसी वजह से सभी उपस्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सक प्रतिदिन सेवा नहीं दे पाते.
हकीकत ये है कि बोकारो जिला मुख्यालय से 70-80 किलोमीटर दूर बसे दर्जनों गांवों में आज भी बुनियादी सुविधाओं का नितांत अभाव है. बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहे ये सभी गांव नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आते हैं. देश को आजाद हुए तीन चौथाई सदी बीत जाने के बाद भी इन ग्रामीणों की ना तस्वीर बदली न ही तकदीर. यही वजह है कि वे मरीजों को इलाज के लिए खाट पर लिटाकर कई किलोमीटर ले जाने के लिए मजबूर हैं.