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Corona: आधी दुनिया वैक्सीन‌ की किल्लत से जूझ रही, और जहां वैक्सीन है वहां लोग लगवाने को तैयार नहीं

कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया में Vaccine Inequity पर चर्चा तेज हो गई है. यानी अमीर और गरीब देशों में कोरोना की वैक्सीन की उपलब्धता में अंतर को लेकर. एक्सपर्ट चिंता जता रहे हैं कि ये स्थिति महामारी को लंबा खींचने का कारण बन सकती है. लेकिन अमीर देशों में हालात अलग हैं. वहां वैक्सीन उपलब्ध है लेकिन लोग लगवा नहीं रहे और कई जगह तो एंटी वैक्सीन रैलियां हो रही हैं.

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दुनिया में कोरोना वैक्सीनेशन का काम जारी (फाइल फोटो)
दुनिया में कोरोना वैक्सीनेशन का काम जारी (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कई अमीर देशों में एंटी वैक्सीन रैलियां हो रही हैं
  • गरीब देशों में कुछ फीसदी लोगों को ही लगे वैक्सीन
  • एक्सपर्ट महामारी के लंबा खींचने को लेकर जता रहे चिंता

दुनिया को Corona महामारी से जूझते हुए करीब 21 महीने हो गए हैं. कई देशों में दूसरी लहर का कहर थोड़ा थमा है तो महामारी से मुक्ति की आशा भी बंध रही है लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट एक नए खतरे की ओर भी इशारा कर रहे हैं. ये खतरा है Vaccine Inequity यानी वैक्सीन की उपलब्धता में असमानता का. वैक्सीनेशन को जहां महामारी के खात्मे का इकलौता हथियार माना जा रहा है वहीं अमीर और गरीब देशों के बीच वैक्सीन उपलब्धता की असमानता नए खतरे को बढ़ा न दे इसकी आशंका भी जताई जा रही है.

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दुनिया में सिर्फ 40 ऐसे देश हैं जो अभी तक अपनी 50 फीसदी से ज्यादा आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज लगा सके हैं. WHO यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक गैब्रिएल ट्रेडोस इस हालात से काफी चिंतित नजर आते हैं, वे कहते हैं कि- 

कोरोना का खतरा बढ़ ही रहा है लेकिन डेथ रेट दो तरह के हैं. हाई वैक्सीनेशन वाले अमीर देशों में डेथ रेट गिर रही है तो गरीब देश जिनकी वैक्सीन तक पहुंच कम है वहां कोरोना के केस और मौतें दोनों तेजी से बढ़ रही हैं. एक ओर हजारों लाखों लोग अभी तक वैक्सीन की पहली खुराक भी नहीं ले पाए हैं वहीं दूसरी ओर कई धनी राष्ट्रों में वैक्सीन की अतिरिक्त खुराक देने की होड़ लग गई है, इस तरह की अन्यायपूर्ण स्थिति को सहा नहीं जाना चाहिए.

WHO महानिदेशक गैब्रिएल ट्रेडोस

खासकर डब्ल्यूएचओ बूस्टर यानी तीसरी डोज को लेकर भी चिंता जता रहा है. इस हालात से निपटने के लिए ट्रेडोस Vaccine Equity का नारा बुलंद करते हैं.

किस खतरे की ओर इशारा कर रहे एक्सपर्ट?

अमेरिका और यूरोप के देशों में जहां डेल्टा वैरिएंट के खतरे ने महामारी की वापसी करा दी है वहीं बाकी देशों में खासकर भारत समेत एशियाई देशों में तीसरी लहर का अंदेशा लोगों को डरा रहा है. इस बीच, वैक्सीन असमानता पर हेल्थ एक्सपर्ट चिंता जता रहे हैं कि ये स्थिति महामारी को लंबा खींचने का कारण बन सकती है. इससे खतरा केवल गरीब देशों में ही नहीं है बल्कि अमीर देशों में भी कोरोना के खतरे की इससे वापसी हो सकती है. और दुनिया खुलते ही फिर से अमीर देशों में वायरस की वापसी देखने को मिल सकती है.

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कितना है अमीर-गरीब देशों में वैक्सीनेशन का अंतर?

UNDP के आंकड़ों को देखें तो 30 अगस्त 2021 तक अमीर देश अपनी आबादी के हर दो में एक शख्स को वैक्सीन लगा चुके थे. जबकि गरीब देशों में हर 47 लोगों में से सिर्फ एक को अब तक वैक्सीन लग पाई है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार कम से कम एक डोज की अगर बात करें तो अमीर देशों में वैक्सीनेशन का औसत प्रतिशत 57.34 फीसदी है तो गरीब देशों में सिर्फ 2.14 फीसदी.

वैक्सीनेशन में इस अंतर के कई कारण हैं. जैसे अमीर देशों द्वारा वैक्सीन कंपनियों के पास पहले से ऑर्डर बुकिंग, वैक्सीन का अमीर देशों में रिसर्च और उत्पादन होना, वैक्सीन की महंगी कीमत, गरीब देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव. यूनिसेफ के मुताबिक कोरोना वैक्सीन की एक डोज की लागत 2 से 40 डॉलर के बीच आ रही है. इसके अलावा लगवाने का खर्च सरकारों पर अलग. जबकि अधिकांश गरीब देशों में एक आदमी पर सालाना स्वास्थ्य खर्च भी 41 डॉलर से नीचे है. ऐसे में अचानक वहां की सरकारों के लिए इतने बड़े बजट का इंतजाम मुश्किल है. अपनी 70 फीसदी आबादी को वैक्सीनेट करने के लिए गरीब देशों को अपने स्वास्थ्य खर्च को अचानक 57 फीसदी तक बढ़ाना होगा. जबकि अमीर देशों को सिर्फ 0.8 फीसदी स्वास्थ्य खर्च बढ़ाना पड़ा.

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तेज वैक्सीनेशन वाले देशों में क्या है रफ्तार?

पूरी दुनिया के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो अबतक दुनियाभर में 5.41 अरब डोज लग चुकी हैं. यानी हर 100 लोगों पर 71 डोज. लेकिन अमीर और गरीब देशों में बड़ा अंतर है. सबसे ज्यादा यूएई अपनी आबादी के 78 फीसदी लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लगा चुका है. कतर 76 फीसदी. इजरायल 61 फीसदी, चीन 64 फीसदी, ब्रिटेन 64 फीसदी, फ्रांस-इटली 61 फीसदी, स्विट्जरलैंड 52 फीसदी, अमेरिका 53 फीसदी तो जापान में 47 फीसदी लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी है.

भारत जैसे देशों की अलग चुनौतियां

बड़ी आबादी वाले देशों की अलग चुनौतियां हैं. जैसे भारत में भले ही 69 करोड़ वैक्सीन डोज लग चुकी है लेकिन आबादी के लिहाज से देखा जाए तो चुनौती अब भी बड़ी है. भारत में अब तक सिर्फ 38 फीसदी आबादी को एक डोज तो 11 फीसदी आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज लग सकी है. पड़ोसी देश पाकिस्तान का आंकड़ा देखें तो वहां 21 फीसदी आबादी को एक डोज जबकि 8.5 फीसदी लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लगी है. वहीं साउथ अफ्रीका में सिर्फ 11 फीसदी लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लग सकी है जबकि यहां कोरोना वायरस के नए-नए वैरिएंट कहर मचा रहे हैं.

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लो-वैक्सीनेशन वाले देशों का हाल

कोरोना वैक्सीन तक कम पहुंच वाले देशों की बात करें तो कॉन्गो, हैती, चाड, साउथ सूडान जैसे देशों में अबतक आबादी के सिर्फ 0.1 फीसदी लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लग सकी है. यानी आबादी के हर एक हजार में से सिर्फ एक आदमी को. जबकि केन्या में 1.5 फीसदी, मिस्र में 3.2 फीसदी, म्यांमार 3.3 फीसदी, बांग्लादेश 4.9 फीसदी, वियतनाम 2.8 फीसदी जबकि जिम्बाब्वे में सिर्फ 11 फीसदी आबादी को ही अभी वैक्सीन की दोनों डोज लग सकी है. गृहयुद्ध से जूझ रहे और हिंसाग्रस्त देशों जैसे सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, सिएरा लियोन, सोमालिया जैसे देशों में तो वैक्सीनेशन और भी मुश्किल साबित हो रहा है. 

हाई वैक्सीनेशन वाले देशों में अलग चुनौतियां

अमेरिका, ब्रिटेन, इजरायल जैसे देशों ने 80 से 90 फीसदी लोगों को वैक्सीनेट करके हर्ड इम्युनिटी डेवलप करने का लक्ष्य रखा था. इन देशों ने आबादी की तुलना में वैक्सीन की ओवरबुकिंग भी कर रखी थी लेकिन हालात वहां भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं नजर आ रहे. ब्रिटेन में 63 फीसदी, इजरायल में 62 फीसदी और अमेरिका में 52 फीसदी आबादी को ही अब तक वैक्सीन लग पाई है. ये देश तेजी से बाजार, स्कूल-कॉलेज, मॉल, दफ्तर आदी खोल रहे हैं. ऐसे में युवा आबादी सोशल कॉन्टैक्ट में तेजी से आएगी और वायरस के फिर से प्रसार का खतरा पैदा हो सकता है.

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अमीर देशों में अजब हालात

ऐसा नहीं है कि अमीर देशों में वैक्सीन उपलब्ध होने के कारण सब लोग वैक्सीन ले चुके हैं. वहां अलग तरह की लड़ाई है. वैक्सीन उपलब्ध है लेकिन तमाम सरकारी आदेशों और जागरूकता मैसेज के बाद भी लोग वैक्सीन लगवाने को तैयार नहीं हैं. कई देशों में तो एंटी-वैक्सीन रैलियां तक हो रही हैं. अमेरिका के टेक्सास के ह्यूस्टन शहर में लोगों ने एंटी वैक्सीन रैली निकाली. वैक्सीन लगवाने को मैंडेटरी करने के खिलाफ न्यूयॉर्क में जमकर प्रोटेस्ट हुए. एथेंस में मैंडेटरी वैक्सीनेशन के खिलाफ लोगों ने हिंसक प्रोटेस्ट किया और कई लोगों को पुलिस को गिरफ्तार करना पड़ा. अमेरिका में कई लोगों का मानना है कि वे पर्याप्त रूप से स्वस्थ हैं, युवा हैं और इसलिए उन्हें वैक्सीन लगवाने की उतनी जरूरत नहीं है. युवा आबादी वैक्सीन लगवाने को तैयार तो है लेकिन ये उनकी प्राथमिकता में नहीं हैं तो वहीं ग्रामीण इलाकों में वैक्सीनेशन बुकिंग की डिजिटल झंझट से बचने के लिए भी कई लोग कतरा रहे हैं.

अमेरिका के मिसिसिपी में डॉक्टर कह रहे हैं कि कई कट्टरपंथी समूह अपने सियासी विरोध के कारण वैक्सीनेशन कैंपेन से लोगों को दूर रहने के लिए उकसा रहे हैं. वहां की कंजरवेटिव क्रिश्चन कम्युनिटीज में डॉक्टरों के लाख समझाने के बाद भी लोग वैक्सीन लेने से इनकार कर रहे हैं और कह रहे हैं महामारी का ये पूरा मामला ही एक पॉलिटिकल साजिश है.

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कंजरवेटिव सोसाइटीज में हिचक क्यों?

लंदन के मेयर वैक्सीनेशन की स्लो रफ्तार के पीछे कई कारण मानते हैं. उनका मानना है कि तुर्की, कुर्दिश समेत कई समुदाय वैक्सीनेशन में पीछे हैं. प्रेग्नेंसी-फर्टिलिटी समेत कई मुद्दों पर लोगों में उलझन भी वैक्सीन हेजिटेंसी बढ़ा रही है. जबकि एक्सपर्ट बार-बार कह रहे हैं वैक्सीन लगवाना एकदम सेफ है. वहीं आयरलैंड में कई इलाकों में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं पर भरोसा नहीं है इसलिए वैक्सीनेशन से बच रहे हैं. इजरायल में जहां आधी से अधिक आबादी को सबसे तेजी से वैक्सीन लगाई गई वहीं अब प्रोसेस स्लो है. कई इलाकों में ऑर्थोडोक्स यानी परंपराओं से बंधी सोसाइटीज में वैक्सीनेशन को लेकर बेरुखी सी दिखती है. इन समाजों में लोग मानते हैं कि दवा कंपनियां अपने फायदे के लिए महामारी को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रही हैं. 

लोगों में वैक्सीन हेजिटेंसी को लेकर हेल्थ एक्सपर्ट कह रहे हैं कि महामारी पर कंट्रोल के लिए कम से कम 90 फीसदी आबादी को वैक्सीन लगाना जरूरी है. अगर हम 70 फीसदी तक ही रुक जाते हैं तो वायरस के नए रूप में म्यूटेट होने या सार्वजनिक जगहों के खुलने के बाद सोशल कॉन्टैक्ट बढ़ने से फिर से इसकी वापसी का खतरा बना रहेगा. वैक्सीन नहीं लेने वाले लोग न सिर्फ खुद को खतरे में डाल रहे बल्कि वैक्सीन लगवा चुके लोगों को भी फिर से संक्रमित होने के खतरे में डाल रहे हैं.

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भारत में भी तीसरी लहर के अंदेशे को देखते हुए वैक्सीनेशन तेज करने पर फोकस किया जा रहा है. विदेशों से आने वालों की जांच तेज की गई है तो कई राज्यों ने बिना वैक्सीनेशन के आने वाले लोगों को क्वारनटीन करने का फैसला किया है. लोग जल्दी वैक्सीन लगवाएं इसके लिए यूरोप-अमेरिका में कई शहरों में नए नियम बनाए गए हैं. मसलन- सांस्कृतिक समारोहों, क्लब-बार, थिएटर, सिनेमाहॉल, स्टेडियम आदि में दोनों डोज लगवा चुके लोगों की ही एंट्री का नियम कई शहरों में लागू हुआ है. आने वाले सर्दी के महीनों में तीसरी लहर के बढ़ने का अंदेशा जताया जा रहा है ऐसे में वैक्सीनेशन की स्लो रफ्तार फिर म्यूटेशन और संक्रमण का नया खतरा उत्पन्न कर सकती है.

दूसरा सवाल ये भी है कि जब अमीर देशों में ये चुनौतियां बनी हुई हैं जो गरीब देश जहां न वैक्सीन है, न स्वास्थ्य सुविधाएं... वहां कैसे महामारी के खतरे से निपटा जा सकेगा? डब्ल्यूएचओ ने भी चेताया है कि जब तक दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को वैक्सीन उपलब्ध नहीं होती तब कोई भी सुरक्षित नहीं है. इस मामले में जितनी देरी की जाएगी उतनी ही अधिक वायरस के वैरिएंट्स की आशंकाएं भी बढ़ेंगी. 

 

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