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एक साल से छुट्टी नहीं, दमघोंटू PPE किट में पैक जिंदगी...कोराना ने कैसे बदल दी हेल्थ वर्कर की लाइफ?

कोरोना माहामारी के दौर में खुद की चिंता न करते हुए पूरी मेहनत से सेवाकार्य में लगे इन हेल्थ वर्कर की जीवनशैली कैसी चल रही है? किस तरह ये काम कर रहे हैं. पढ़ें आजतक की स्पेशल रिपोर्ट. 

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • परिवार को संक्रमण से बचाने की भी है चुनौती
  • पीपीई किट से हो रहीं तमाम तरह की दिक्कतें

कोरोना महामारी से पूरा देश जूझ रहा है. ऐसे में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं हेल्थ वर्कर. एक साल से बिना किसी छुट्टी के काम कर रहे इन हेल्थ वर्कर के सामने जहां परिवार को इस वायरस की चपेट से बचाना बड़ी चुनौती है, तो वहीं बिना थके, बिना रुके मरीजों के देखभाल की जिम्मेदारी है. इन कोरोना योद्धाओं ने खुद को इन गंभीर परिस्थितियों में ढ़ाल लिया है. 

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कुछ ऐसा था चंडीगढ़ पीजीआई का दृश्य  

चंडीगढ़ पीजीआई के कोविड अस्पताल के डानिंग एरिया में अफरा-तफरी का माहौल है. डॉक्टर, नर्स और वार्ड बॉय पीपीई किट पहनकर अपने अपने कार्यस्थल की ओर बढ़ रहे हैं. तपिंद्र नाम का अटेंडेंट यूं तो पिछले 5 साल से अस्पताल में मरने वाले मरीजों के शवों की पैकिंग करता आ रहा है, लेकिन पिछले एक साल से उसका काम बढ़ गया है. कोरोना वायरस अब तक दर्जनों मरीजों की जान ले चुका है. जिस वक्त आजतक की टीम ने इस अस्पताल में प्रवेश किया, उस वक्त तपिंद्र एक शव की पैकिंग का सामान ले रहा था.

वहीं 48 साल की सुखचैन कौर पीजीआई चंडीगढ़ में सीनियर नर्सिंग अधिकारी हैं और चंडीगढ़ के सबसे बड़े कोरोना अस्पताल के नर्सिंग और ICU प्रबंधन का जिम्मा संभाल रही हैं. खुद मधुमेह से पीड़ित होने के बावजूद भी वह पिछले एक साल से हर रोज 200 नर्सों के रोस्टर का जिम्मा संभाल रही हैं. PGI की बाकी नर्सों की तरह उन्होंने भी जबसे कोरोना महामारी फैली है, तबसे एक भी छुट्टी नहीं ली है. हफ्ते में एक छुट्टी मिलने की भी गारंटी नहीं. वह 24 घंटे काम कर रही हैं. वहीं घर में दो बच्चे, पति और बुजुर्ग सास भी हैं, जिनको कोरोना संक्रमण से बचाना उनकी दूसरी बड़ी जिम्मेदारी है. सुखचैन कौर का कहना है कि  "अस्पताल से घर लौटने पर मन होता है कि कोई बात ना करे. मैं पिछले एक साल से अपने परिवार को लगभग नजरअंदाज कर रही हूं, लेकिन सबका सहयोग मिल रहा है. परिवार में सबको इंतजार है कि कब महामारी खत्म होगी, तो छुट्टी लेकर कहीं घूमने जाएंगे.

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वहीं 39 साल की मीनाक्षी व्यास भी पीजीआई में सीनियर नर्सिंग अधिकारी के तौर पर तैनात हैं. जब से कोरोना वायरस की दूसरी लहर कहर बरपा रही है, उनको ज्यादा समय अस्पताल में ही गुजारना पड़ता है. मजबूरन उनको दो महीने पहले 11 साल की बेटी और 9 साल के बेटे को ननिहाल भेजना पड़ा.

कोरोना वायरस संक्रमण ने उनकी जिम्मेदारी बढ़ा दी है. अस्पताल में अबकी बार गंभीर रूप से पीड़ित कोरोना मरीज आ रहे हैं. जिनको ज्यादा देखभाल की जरूरत है. वहीं घर में पति और बुजुर्ग सास-ससुर को संक्रमण से बचाए रखना भी किसी चुनौती से कम नहीं है. मीनाक्षी के मुताबिक कोरोना वायरस संक्रमण ने सबको जीवन का नया पाठ पढ़ाया है. हालांकि पहली लहर की तुलना में अब डर कम है, क्योंकि सबको बचाव के तरीके मालूम हैं.

मीनाक्षी व्यास ने बताया कि "कोविड-19 कई चुनौतियां लेकर आया है. हमारे लाइफस्टाइल और प्रोफेशनल लाइफ में बहुत सारे बदलाव आए हैं. पहली बार हम बहुत ज्यादा डर गए थे. इसके बावजूद मुझे अस्पताल आना पड़ता था. मेड ने काम छोड़ दिया था. घर का काम भी करना पड़ता था. ट्रांसपोर्ट भी बंद था. आना जाना ही अपने आप में एक चुनौती था."

मीनाक्षी के मुताबिक अबकी बार जो भी मरीज अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं वह बहुत ज्यादा बीमार हैं. लोग अस्पताल आने से डर रहे हैं, जिससे उनकी बीमारी बढ़ रही हैं, जिसके चलते अबकी बार सभी वार्डस को हाई डिपेंडेंसी वार्ड में बदलना पड़ा है. उन्होंने बताया कि कोरोना से तब डर लगता है जब वह कम उम्र के लोगों की जान लेता है.

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मीनाक्षी और सुखचैन कौर के मुताबिक उनको खुद तो कोरोना से डर नहीं लगता, लेकिन जब अस्पताल में कोविड-19 मरीज की मृत्यु होती है तो उस वक्त बहुत बुरा लगता है. खासकर तब जब बहुत कम उम्र के लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं. मीनाक्षी व्यास कहती हैं कि "जब कभी भी किसी का डेथ सर्टिफिकेट जारी होता है, तो मृतक की उम्र पर ही ध्यान जाता है. 25 साल, 35 साल और 40 साल के लोग मर रहे हैं."

6 घंटे की कैद 
सामान्य तौर पर एक नर्स को दिन में 6 घंटे काम करना होता है. 6 घंटे पीपीई किट पहनने के बाद अकसर उनकी त्वचा और नाक में रैशेस आ जाते हैं. सामान्य तापमान में आते ही उनको सर्दी जुकाम और बुखार तक हो जाता है. प्रोटोकॉल के मुताबिक पीपीई किट पहनने के बाद 6 घंटे तक न तो आप वॉशरूम जा सकते हैं, ना कुछ खा पी सकते हैं और न हीं खुजला सकते हैं. नर्सों और दूसरे सहयोगी कर्मचारियों को डायपर पहने की सलाह दी जाती है.

 

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