कोविड संकट (Corona outbreak) कई लोगों के लिए बुरे सपने से कम नहीं था. अब बहुत से लोग इससे बाहर आ चुके हैं लेकिन कई लोगों के पीछे यह साया बनकर पड़ गया है. ऐसे लोग लॉन्ग कोविड (Long COVID) का शिकार हैं, जिसके केस भारत के साथ-साथ दुनियाभर से सामने आ रहे हैं.
लॉन्ग कोविड को जांचने का कोई मेडिकल टेस्ट नहीं है. साथ ही इसकी कोई मेडिकल परिभाषा या विशेष लक्षण भी नहीं हैं. साधारण शब्दों में जो मरीज कोविड-19 निगेटिव हो गए हैं, लेकिन उन्हें महीनों बाद भी समस्याएं हो रही हैं वे लॉन्ग-टर्म कोविड के शिकार हैं.
दुनिया में सबसे मशहूर मेडिकल जर्नल द लैंसेट का दावा है कि कई मामलों में लक्षण दो साल तक भी परेशान कर सकते हैं. कुछ में ये दिक्कतें 9 महीने बाद तक टिकी रहीं. अगर कोई लॉन्ग कोविड का शिकार होता है तो उसको दिल की बीमारी का खतरा भी बढ़ जाता है.
लॉन्ग कोविड का कैसे पता लगाएं?
9 महीने से ज्यादा टिक सकते हैं ये 2 लक्षण
Open Forum Infectious Diseases में छपे रिव्यू के मुताबिक, थकान और सांस फूलना ऐसे दो लक्षण हैं जो कोरोना से ठीक होने के बावजूद कई महीनों तक पीछा नहीं छोड़ते. रिव्यू में शामिल 46 फीसदी ऐसे लोग थे जो कोरोना को हरा चुके थे लेकिन उसके हफ्तों-महीनों बाद तक उनको थकान रहती थी.
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वहीं Journal of Infection में प्रकाशित स्टडी में बताया गया है कि थकान के साथ-साथ सांस फूलना भी ऐसा लक्षण है जो लंबे वक्त तक मरीज के साथ रहता है. स्टडी में शामिल 20 फीसदी लोग ऐसे थे जिनको कोरोना से रिकवर हुए 9 महीने बीत चुके थे, लेकिन फिर भी उनका सांस फूलता था. यह चिंता इसलिए भी बढ़ाता है क्योंकि पहले कई ऐसी रिपोर्ट आ चुकी हैं कि सांस फूलने की वजह से आगे चलकर दिल को नुकसान पहुंचता है.
इसके अलावा कुछ लोगों की याद रखने की क्षमता पर भी असर होता है. कुछ लोगों को नींद संबंधी दिक्कतें होने लगती हैं. इसके साथ-साथ लगातार खांसी आना, सीने में दर्द होना, बोलने में परेशानी, मांसपेशियों में दर्द, गंध या स्वाद की कमी, डिप्रेशन और बुखार भी हो सकता है. कुछ लोगों को दस्त और पेट दर्द का भी अनुभव होता है.
लॉन्ग कोविड की चपेट में आने पर क्या करें?
अगर कोई लॉन्ग कोविड की चपेट में आ जाता है तो उसे मेडिकल मदद लेनी की तुरंत जरूरत है. हालांकि, उसको इस दौरान खुद को आइसोलेट या क्वारंटाइन में रखने की जरूरत नहीं है क्योंकि उसके इन लक्षणों से दूसरे किसी को कोविड फैलने का खतरा नहीं है.
स्टडी में उस वर्ग की पहचान करने की कोशिश भी हुई है जिनको रिस्क ज्यादा है. इसके मुताबिक, 50 साल से ऊपर के ऐसे मरीज जिनको ICU में भर्ती होने की जरूरत पड़ी उनके अंदर रिकवरी के बाद भी लक्षण देखे जा सकते हैं. माना जाता है कि ज्यादा उम्र के मरीज, ICU पर रहे मरीज और जिनको ज्यादा लक्षण वाला कोविड हुआ था उनको लॉन्ग टर्म कोविड होने के चांस ज्यादा हैं.
वैसे भारत की तरफ से फिलहाल Lancet की रिपोर्ट पर चिंता जताई गई है. लेकिन एक्सपर्ट मानते हैं कि इसपर और डेटा आना चाहिए और अधिक रिसर्च की भी जरूरत है. सर गंगाराम हॉस्पिटल के डॉक्टर डीएस राणा, डॉक्टर शरद जोशी (मैक्स हॉस्पिटल) दोनों ने और स्टडी की वकालत की है.