पिछले डेढ़ साल से लगातार कोविड ड्यूटी करने वाले हेल्थ प्रोफेशनल के लिए एक स्टडी में दावा किया गया है कि हर चौथा हेल्थ प्रोफेशनल किसी न किसी प्रकार के तनाव या फिर burnout syndrome से ग्रसित है. ये स्टडी करने वाले जी.बी.पंत अस्पताल में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर मोहित गुप्ता का कहना है “1600 हेल्थ वर्कर्स से बात करके उनके मेंटल हेल्थ के बारे में पता चला कि हर तीसरे से चौथा हेल्थ प्रोफेशनल बर्नआउट स्टेज में आ चुका है“ कोविड की बीमारी से लगातार लड़ना उनके दिमाग पर गहरा असर डाल रहा है.
प्रोफेसर मोहित गुप्ता ने आगे कहा ''फ्रंट लाइन वर्कर्स, वॉरियर्स, मेडिकल इलाज के साथ अपने मन का इलाज भी करते चलें. डॉक्टर ही न रहे तो इलाज कौन करेगा. मोबाइल की तरह मन को चार्ज करें. हेल्थ वर्कर सोने से पहले 5 से 7 मिनट खुद को शांति दें. मरीज के साथ बहुत इमोशनल न हों.''
सीनियर मनोवैज्ञानिक डॉ. विन्ध्य प्रकाश कहते हैं “आम लोगो की तरह फ्रंटलाइन वर्कर्स को भी तनाव होता है, खासकर जब वो किसी मरीज की जान नहीं बचा पाते, ये तनाव घबराहट, बेचैनी बढ़ाता है और किसी भी काम को करने में दिकक्त आती है. नींद नहीं आती. भूख नहीं लगती है. डॉक्टर डेढ़ साल से लगातार तनाव से गुजरते हुए बर्नआउट स्टेज में पहुंच गए हैं और कुछ महसूस नहीं कर पा रहे हैं“
पारस अस्पताल की सीनियर साइकेट्रिस्ट डॉ. ज्योति कपूर ने कहा ''मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखना बहुत जरूरी है. डॉक्टर, नर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स कुछ चीजों का ध्यान रखें, हमारे बस में लोगों को सेवा देना जरूर है लेकिन इलाज का नतीजा कई फैक्टर्स पर डिपेंड करता है. इसलिए निराशा महसूस करना, गिल्ट करना गलत है. इसलिए कर्म पर ध्यान रखना है ना कि फल की चिंता.
ज्योति के मुताबिक डॉक्टरों से दुर्व्यवहार का भी उन पर बुरा प्रभाव पड़ता है. कोविड को लेकर ये पॉजिटिव सोच भी बढ़ानी है कि कई रिकवर हो रहे हैं. पिछले दिनों दिल्ली में कोविड ड्यूटी पर तैनात डॉ. विवेक ने खुदकुशी कर ली थी. वजह का पता पुलिस लगा रही है लेकिन इस घटना ने हेल्थ प्रोफेशनल्स के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है.