भारत में कोरोना वैक्शीनेशन प्रोग्राम को लेकर की तरह की अफवाहें चल रही हैं और तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. भारत सरकार ने इन अफवाहों को आधा झूठ, तोड़े-मोड़े बयान और सत्य से परे बताया है.
इन अफवाहों पर विराम लगाने के लिए नीति आयोग और नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड-19 के चेयरमैन डॉ विनोद पॉल ने वैक्सीनेशन से जुड़े कई तथ्य सामने रखे.
मिथ नंबर 1: विदेशों से वैक्सीन खरीदने के लिए केंद्र पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है.
तथ्य: केंद्र सरकार 2020 की जून जुलाई से ही अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं से बात कर रही है. कई दौर की वार्ताएं हुई हैं. इनमें फाइजर, जॉनसन एंड जॉनसन और मॉडर्ना शामिल हैं. सरकार ने इन्हें सभी सहायताएं दीं. लेकिन हमें ये समझना चाहिए कि वैक्सीन खरीदना अन्य सामानों के खरीदने जैसा नहीं है. वैक्सीन सीमित मात्रा में उपलब्ध है और वैक्सीन निर्माता कंपनियों की शर्तें हैं और इनकी अपने देशों को लेकर प्राथमिकता होती है. लेकिन इसके लिए बातचीत चल रही है.
मिथ नंबर 2: केंद्र ने दुनिया में उपलब्ध वैक्सीन को भारत में अनुमति नहीं दी है.
तथ्य: भारत सरकार ने सक्रिय रुख अपनाकर अप्रैल में ही भारत में उन वैक्सीन को आसानी से एंट्री की इजाजत दी है जिन्हें अमेरिका की USFDA, EMA, ब्रिटेन की MHRA, जापान की PMDA और WHO से इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत मिल चुकी है. इन्हें भारत में ब्रीजिंग ट्रायल की जरूरत नहीं पड़ेगी. भारत में अभी वैक्सीन एप्रूवल के कोई आवेदन पेंडिंग नहीं हैं.
मिथ नंबर 3: केंद्र वैक्सीन के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रहा है.
तथ्य: 2020 की शुरुआत से ही देश में वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र सहयोग दे रहा है. सरकार ने सुनिश्चित किया है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन का उत्पादन तीन और कंपनियां करेंगी. इसके अलावा भारत बायोटेक अपना भी उत्पादन बढ़ाएगी. अक्टूबर तक भारत बायोटेक का उत्पादन 1 करोड़ से बढ़कर 10 करोड़ हो जाएगा. सीरम भी 6.5 करोड़ डोज प्रति महीने से बढ़ाकर अपनी उत्पादन क्षमता 11 करोड़ डोज हर महीने करने जा रहा है.
मिथ नंबर 4 : केंद्र ने अपनी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल दी है
तथ्य: केंद्र सरकार सभी बड़े दायित्वों का बोझ उठा रही है. इसमें वैक्सीन निर्माताओं को भुगतान करने से लेकर उन्हें नए प्रोडक्शन के लिए तुरंत अनुमति देना शामिल है. केंद्र द्वारा खरीदी गई वैक्सीन पूर्ण रूप से राज्यों को दे दी जाती है. राज्यों के अनुरोध पर ही केंद्र ने उन्हें वैक्सीन खरीदने की कोशिश करने की इजाजत दी थी. कई राज्यों ने वैक्सीन के लिए ग्लोबल टेंडर निकाले लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. इसका सीधा मतलब है कि दुनिया में वैक्सीन की सप्लाई कम है और वैक्सीन खरीदना आसान नहीं है, यही बात केंद्र राज्यों को शुरुआत से ही कह रहा थी.
मिथ नंबर 5 : केंद्र राज्यों को पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन नहीं दे रहा है
तथ्य: केंद्र तय दिशानिर्देशों के अनुसार राज्यों को पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन दे रहा है. यहां तक कि राज्यों को वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में अग्रिम जानकारी दी जा रही है. नॉन-जीओआई चैनल में राज्यों को 25 प्रतिशत वैक्सीन मिल रही है और निजी अस्पतालों को 25 प्रतिशत दिया जा रहा है. लेकिन कई राज्य इन 25 फीसदी वैक्सीन को ही नहीं लगवा पा रहे हैं. हमारे कुछ नेता तथ्यों की पूरी जानकारी के बिना टीवी पर आते हैं और दहशत पैदा करते हैं. ये राजनीति का वक्त नहीं है.
मिथ नंबर 6 : बच्चों के टीकाकरण के लिए केंद्र कोई कदम नहीं उठा रहा है
तथ्य: अभी दुनिया का कोई देश बच्चों को वैक्सीन नहीं दे पा रहा है. यहां तक कि WHO ने भी बच्चों के लिए किसी वैक्सीन की सिफारिश नहीं की है. अभी बच्चों की वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर अध्ययन चल रहे हैं, उसके नतीजे उत्साहवर्धक हैं. भारत में भी बच्चों के वैक्सीन को लेकर ट्रायल चल रहा है. लेकिन बच्चों की वैक्सीनेशन अपने देश में व्हाट्सएप ग्रुप में पैदा किए जा रहे खौफ और बेसिर पैर की बातों पर निर्धारित नहीं होनी चाहिए. और न ही ऐसा इसलिए होगा क्योंकि कुछ नेता इस पर राजनीति करना चाहते हैं. इसका फैसला हमारे वैज्ञानिक और परीक्षण के डाटा के विश्लेषण के आधार पर होगा.