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PM मोदी बोले- कोरोना ने धीमी की रफ्तार, लेकिन आत्मनिर्भर भारत, सशक्त भारत का संकल्प बरकरार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कोरोना के संकट ने भले ही रफ़्तार कुछ कम की है लेकिन आज भी हमारा संकल्प है आत्मनिर्भर भारत, सशक्त भारत का है. 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो: PIB)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो: PIB)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • CSIR सोसायटी की वर्चुअल बैठक में पीएम का संबोधन
  • देश को अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है: पीएम मोदी

कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को काउंसिल ऑफ साइंस एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) के एक कार्यक्रम को संबोधित किया. पीएम मोदी ने यहां कहा कि कोरोना वैश्विक महामारी, पूरी दुनिया के सामने इस सदी की सबसे बड़ी चुनौती बनकर आई है. लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है, जब-जब मानवता पर कोई बड़ा संकट आया है, साइन्स ने और बेहतर भविष्य के रास्ते तैयार कर दिए हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कोरोना के संकट ने भले ही रफ़्तार कुछ कम की है लेकिन आज भी हमारा संकल्प है आत्मनिर्भर भारत, सशक्त भारत का है. 

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दुनिया के विकास में प्रमुख इंजन की भूमिका में भारत: PM
काउंसिल ऑफ साइंस एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज भारत sustainable development और क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में दुनिया को रास्ता दिखा रहा है. आज हम सॉफ्टवेयर से लेकर सैटेलाइट तक, दूसरे देशों के विकास को भी गति दे रहे हैं, दुनिया के विकास में प्रमुख इंजन की भूमिका निभा रहे हैं.

पीएम मोदी ने कहा कि आज भारत, एग्रिकल्चर से एस्ट्रॉनॉमी तक, डिजास्टर मैनेजमेंट से डिफेंस टेक्नोलॉजी तक, वैक्सीन से वर्चुअल रियलिटी तक, बायोटेक्नॉलॉजी से लेकर बैटरी टेक्नॉलॉजी तक, हर दिशा में आत्मनिर्भर और सशक्त बनना चाहता है. हमारी इस संस्था ने देश को कितनी ही प्रतिभाएं दी हैं, कितने ही वैज्ञानिक दिये हैं.

दूसरे देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे वैज्ञानिक
पीएम मोदी बोले कि किसी भी देश में साइन्स और टेक्नालॉजी उतनी ही ऊंचाइयों को छूती है, जितना बेहतर उसका इंडस्ट्री से, मार्केट से संबंध होता है. हमारे देश में CSIR साइन्स, सोसाइटी और इंडस्ट्री की इसी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एक institutional arrangement का काम करता है.

पीएम बोले कि बीती शताब्दी का अनुभव है कि जब पहले कोई खोज दुनिया के दूसरे देशों में होती थी तो भारत को उसके लिए कई-कई साल का इंतज़ार करना पड़ता था. लेकिन आज हमारे देश के वैज्ञानिक दूसरे देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं, उतनी ही तेज गति से काम कर रहे हैं. 

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