कोरोना वैक्सीनेशन (Corona Vaccination) के मिशन को रफ्तार देने के लिए मंगलवार को एक अहम कदम बढ़ाया गया है. रूस की वैक्सीन स्पुतनिक-वी (Sputnik-V) का प्रोडक्शन अब सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) द्वारा भी किया जाएगा, सितंबर में सीरम द्वारा स्पुतनिक-वी का प्रोडक्शन शुरू कर दिया जाएगा.
मंगलवार को रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड (RDIF) और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के बीच इसको लेकर समझौता हुआ. बता दें कि स्पुतनिक वी को सितंबर में WHO का अप्रूवल भी मिल सकता है.
इसी साल सितंबर में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में स्पुतनिक का प्रोडक्शन शुरू होगा. दोनों पक्षों के बीच हर साल 300 मिलियन (30 करोड़) वैक्सीन की डोज़ बनाने का करार हुआ है. खास बात ये है कि दोनों पक्षों के बीच टेक्निकल ट्रांसफर को लेकर बात तय हुई है. सीरम को अभी तक सेल, वैक्टर सैंपल मिल गए हैं.
BREAKING: RDIF and Serum Institute of India @SerumInstIndia, the world’s largest vaccine producer, to start production of Sputnik vaccine in September. Serum received cell and vector samples from Gamaleya Center, will make over 300 mln doses in India/yr.https://t.co/yHhetKRhoc
— Sputnik V (@sputnikvaccine) July 13, 2021
आपको बता दें कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया इस वक्त भारत में वैक्सीन का सबसे बड़ा निर्माता है. सीरम इंस्टीट्यूट पुणे की अपनी फैक्ट्री में इस वक्त कोविशील्ड, कोवैक्स का निर्माण कर रहा है. इसके अलावा यूके में Codagenix का ट्रायल भी किया जा रहा है.
सीरम इंस्टीट्यूट के अलावा RDIF भारत में अन्य कई कंपनियों (Gland Pharma, Hetero Biopharma, Panacea Biotec, Stelis Biopharma, Virchow Biotech and Morepen) के साथ स्पुतनिक वैक्सीन के निर्माण को लेकर समझौता कर चुका है.
अदार पूनावाला ने दिया ये बयान...
इस समझौते को लेकर सीरम इंस्टीट्यूट के अदार पूनावाला की ओर से बयान दिया गया कि स्पुतनिक वैक्सीन के निर्माण के लिए RDIF के साथ हुई डील से वो काफी खुश हैं. आने वाले दिनों में हम कई लाखों वैक्सीन की डोज़ बनाने के लिए तैयार हैं. कोरोना वायरस को मात देने के लिए जरूरी है कि दुनिया के सभी देश और संस्था वैक्सीनेशन को लेकर एक साथ आएं.
आपको बता दें कि स्पुतनिक-वी भारत में इस्तेमाल की जाने वाली पहली विदेशी वैक्सीन है. अभी तक इसकी लाखों डोज़ भारत में दी जा चुकी हैं. रूस की स्पुतनिक वी का इस्तेमाल कुल 67 देशों में किया जा रहा है.