कोरोना अब गांव की तरफ अपने पांव तेजी से पसार रहा है और कम जानकारी और मेडिकल सुविधाओं के अभाव में लोग गांव में दम तोड़ रहे हैं. कोई करोना को मानने को तैयार ही नहीं है. 5 मौतों के बाद भी इस श्रीवास्तव परिवार के लोग नहीं मान रहे कि इस परिवार में किसी को कोरोना हुआ भी था. कुछ लोगों ने एंटीजन टेस्ट कराया जो निगेटिव आया तो परिवार का कहना है कि ये प्राकृतिक मौत है. हालांकि, उनमें सारे लक्षण कोरोना के ही थे.
घर के ड्योढ़ी पर अमन और अदिति बैठे हैं. गुमसुम बैठे इन दोनों भाई बहनों के आंखों के आंसू सूख चुके हैं क्योंकि इनके परिवार में अब कोई बचा ही नहीं. अदिति और अमन के भाई सौरभ की सबसे पहले मौत हुई और उसके बाद मां और पिता ने भी दम तोड़ दिया. 11 साल की अदिति उर्फ कली और 16 साल का अमन देखते-देखते अनाथ हो गए. माता-पिता का साया सिर से उठ गया और बड़ा भाई भी चला गया. इन दोनों का दर्द यहीं नहीं खत्म होता. भाई और मां-बाप के पहले चाचा और दादी ने भी दम तोड़ दिया था और ये सब हुआ 3 हफ्तों के भीतर.
मामला यूपी के गोंडा के चकरौत गांव का है, जहां अप्रैल का महीना अंजनी श्रीवास्तव परिवार पर कहर बनकर टूट पड़ा. सिर्फ 5 दिन में ही परिवार के पांच सदस्यों की मौत हो गई. अंजनी के मुताबिक, उनके बड़े भाई हनुमान प्रसाद का निधन 2 अप्रैल को हो गया. वो 56 साल के थे और हार्ट पेशेंट थे. अचानक उनकी सास फूली और उनका निधन हो गया. बेटे की मौत को हनुमान की 75 साल की मां माधुरी देवी बर्दाश्त नहीं कर पाई और 14 अप्रैल को चल बसीं. दादी के निधन पर इलाहाबाद में पढ़ाई कर रहा जॉन्डिस से पीड़ित 21 वर्षीय सौरभ जब घर आया तो इसकी भी तबीयत बिगड़ गयी और गोंडा के एक नर्सिंग होम में 15-16 अप्रैल को सौरभ की भी मौत हो गयी.
अंजनी बताती हैं कि बेटे की मौत होने से बाद में सौरभ के मां-बाप की भी तबीयत बिगड़ गई. उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद गोंडा के एक नर्सिंग होम में एडमिट करवाया गया. दोनों ऑक्सीजन पर थे. जहां बुखार से पीड़ित सौरभ की मां 41 वर्षीय उषा श्रीवास्तव का 22 अप्रैल और 24 अप्रैल को 45 वर्षीय अश्वनी श्रीवास्तव का निधन हो गया.
मृतक परिवार के चाचा ये मानने को तैयार नहीं कि उनके परिवार में किसी को कोरोना हुआ था. यहां तक कि वो कोरोना के एंटीजन टेस्ट का हवाला देते हैं.
इस पूरे मामले का पता तब चला जब गोंडा के सांसद ने अपने फेसबुक पोस्ट पर इस परिवार की व्यथा लिखी और बताया इस परिवार के पांच सदस्यों की मौत 20 दिनों में हो चुकी है. इस पर प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए, प्रशासन की तरफ से फोन भी आए लेकिन परिवार ने कहा कि कोरोना से नहीं बल्कि बीमारी से मौत हुई है.
आलम ये है कि गांव में कोरोना एक स्टिग्मा की तरह होता जा रहा है और अगर कोरोना के लक्षण हैं भी तो भी लोग मानने को तैयार तब तक नहीं हो रहे जब तक उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आती. यही वजह है कि मौतें हो रही हैं और लोग इसे प्राकृतिक मौत कह रहे हैं.