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कोरोना संकट: जानवरों की तरह सलूक झेलते मजदूर कहां जाएं?

कोरोना संकट: जानवरों की तरह सलूक झेलते मजदूर कहां जाएं?

देशभर में श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, बसें चलाई जा रही हैं इसके बावजूद सभी प्रवासी मजदूरों के घर पहुंचने का सपना पूरा नहीं हो पा रहा है. लाखों लोग अभी तक घर पहुंच चुके हैं लेकिन उतने ही लोग अभी भी घरों की राह तक रहे हैं. चमचमाते महानगरों में सड़क, पुल से लेकर ऊंची ऊंची इमारतों में ईंट सीमेंट के साथ अपने पसीने का जोड़ लगाने वाला मजदूर, आबाद बाजारों के किनारे छोटी सी फेरी लगाने वाला मजदूर, मेमसाहब के फर्श पर पोछा घिस घिसकर चिकना बनाने वाली मजदूर, अपनी मिट्टी छोड़कर लाखों करोड़ वाली शहरी अर्थव्यस्था में दो वक्त की रोटी के लिए महानगरों में खप जाने वाले जाने कितने मजदूर आज न तो इन शहरों के रह गए न अपने गांवों के. गांव की जिंदगी को शहर की भट्टी तक पहुंचाने वाला वो हाइवे जो कल तक इन्हें कच्चे माल की तरह की उठा उठाकर भट्टी में झोंकता था. आज इनकी परछाई से भी कतरा रहा है. हर मोड़ पर पहरेदार तैनात हैं, और अपने अपने हिस्से की सड़क को इन मजदूरों की छाया से भी दूर रखना चाहते हैं.

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