क्या एक सपना सच हो सकता है, क्या सपने में किसी को बोली गई बात सच हो सकती है, क्या कोई आत्मा एक मंहत को सपने में खज़ाने का पता बता सकती है. यकीन नहीं होता, लेकिन सच भी तो यही है और यकीन मानिए आपमें से ज्यादातर लोगों ने उन्नाव के डौंडिया खेड़ा गांव का नाम आज से पहले तक कभी नहीं सुना होगा लेकिन आज इस गांव का नाम और पता देश के ज्यादातर लोगों की ज़ुबान पर है. इसकी एक वजह है और वो है बाबा शोभन सरकार को आया एक सपना.
बाबा के मुताबिक उनके सपने में राजा रावराम बख्श सिंह आए और उन्होंने ही बाबा को मंदिर के नीचे दफ्न खज़ाने के बारे में बताया और जैसे ही ये बात लोगों और उसके बाद एएसआई तक पहुंची तो उत्तर प्रदेश का एक गुमनाम गांव देश का सबसे मशहूर गांव बन चुका था.
अब सबको इंतज़ार है तो बस इस बात का कि कब ये खज़ाना बाहर निकाला जाएगा और बाबा के सपने की बात हक़ीक़त में बदल जाएगी और अगर बाबा शोभन सरकार के सपने की बात सच निकली तो इस मंदिर के नीचे एक ऐसा खजाना दफ्न है जिसकी कीमत का अंदाजा खुद खजाना तक पहुंचने वाले लोग भी ठीक-ठीक नहीं लगा पा रहे हैं. वो तय हीं कर पा रहे कि यहां अरबों का खजाना है या खरबों का.
सालों से लोग इस खजाने तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन आज तक कोई भी इंसान इस मिशन में कामयाब नहीं हो पाया. इस ख़जाने को खोजने के लिए काफी कोशिशें की गईं. लोग इसे कुबेर का खज़ाना भी कहते हैं, मगर आज तक ये किसी के हाथ नहीं लगा.
ये एक ऐसे खजाने की दास्तान है, जिसके बारे में लोग बरसों से सुनते आ रहे हैं लेकिन आजतक कोई भी शख्स इस दफ्न खज़ाने तक नहीं पहुंच पाया.
दरअसल ये ऐसा खजाना है जिसके बारे में ना आपने इससे पहले कभी सुना होगा और ना ही देखा होगा लेकिन बाबा शोभन सरकार के सपने पर एएसआई यहां पर खज़ाने का सच तलाश रही है.
महाखजाने की खोज शुरू हो गई है लेकिन ये सवाल अभी तक अटका है कि आखिर किसका है खजाना. कोई कहता है कि ये खजाना राजा राव राम बख्श सिंह का है, तो कोई इसे पेशवा बाजीराव का खजाना बता रहा है लेकिन इस खजाने की हकीकत हम बताएंगे आपको और उसके लिए जानना होगा इस जगह का इतिहास. साढ़े 6 सौ साल पुरानी रियासत डौंडिया खेड़ा के जमींदार विशेश्वर सिंह के बेटे प्रोफेसर लाल अमरेन्द्र सिंह के मुताबिक ये खजाना राम बख्श के पूर्वज महाराज त्रिलोकचंद का है. प्रोफेसर लाल अमरेंद्र सिंह की माने तो ये खजाना 16वीं शताब्दी में यहां राज करने वाले महाराज त्रिलोकचंद ने जुटाया था और ये खजाना मंदिर के पीछे स्थित टीले में छिपा हो सकता है, जहां राजा रामबख्श के पिता बाबू बंसत सिंह का बैठका हुआ करता था.
महाखजाने को किले की दीवारों में भी छिपाया गया हो सकता है ये दावा है प्रोफेसर लाल अमरेंद्र सिंह का, जिनके मुताबिक इस खजाने का एक नक्शा भी है जिसे राजा राम बक्श नें अपनी मां के पास छोड़ दिया था. दरअसल, इस दावे के पीछे कई वजहें हैं.
महाराजा त्रिलोक चंद यहां के सबसे प्रतापी राजा हुए, जिन्हें इलाके में वैश्यों का सबसे प्रतापी राजा कहा जाता था. त्रिलोक चंद दिल्ली के बादशाह लोदी से जुड़े हुये थे. इनके अलावा मैनपुरी के राजा सुमेर शाह चौहान भी बहलोल लोदी से जुडे हुये थे. त्रिलोकचंद का राज उन्नाव के अलावा बहराइच, कन्नौज, बाराबंकी और लखीमपुर खीरी तक फैला हुआ था. इसीलिए माना जा रहा है कि इतना बड़ा खजाना महाराजा त्रिलोकचंद का हो सकता है.
डौंडियाखेड़ा गांव के किले के पास जो मंदिर है, वो राजा रावराम बख्श सिंह ने बनवाया था. जबकि मंदिर के शिखर की स्थापना और मूर्ति स्थापना 1932 में जमींदार विशेश्वर सिंह ने कराई थी और इसीलिए प्रोफेसर लाल अमरेंद्र सिंह की बात में दम लगता है.