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जब कुदरत के कोप ने देश को दहलाया...

उत्तराखंड से लाशों की गिनती की जो खबर आ रही है, वह दहलाने वाली है. मौत का आंकड़ा दस हजार पार करने की बात की जा रही है.  इसके साथ ही उत्तराखंड की इस तबाही ने देश में हुई अब तक की कुछ और बड़ी तबाहियों की बुरी यादें ताज़ा कर दी हैं.

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कुदरत ने दहलाया
कुदरत ने दहलाया

उत्तराखंड से लाशों की गिनती की जो खबर आ रही है, वह दहलाने वाली है. मौत का आंकड़ा दस हजार पार करने की बात की जा रही है.  इसके साथ ही उत्तराखंड की इस तबाही ने देश में हुई अब तक की कुछ और बड़ी तबाहियों की बुरी यादें ताज़ा कर दी हैं. पर क्या आप जानते हैं कि आज़ाद हिंदुस्तान में तबाही की पांच सबसे खौफनाक तस्वीरें कौन सी हैं? देखिए...

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-उत्तराखंड में 2013 में आसमानी सैलाब, 10 हज़ार से ज्यादा मौत
-गुजरात के भुज में 2001 में भूकंप, 20 हज़ार मौत
-महाराष्ट्र के लातूर में 1993 में भूकंप, 20 हज़ार मौत
-दक्षिण भारत में 2004 में सुनामी, 13 हज़ार मौत
-जम्मू-कश्मीर के लद्दाख़ में 2010 में आसमानी सैलाब, आधा शहर तबाह.

सदियों से क़ुदरत ने जब-जब अपना तेवर बदला, तो तबाही के ऐसे निशान छोड़े, जो एक पल में इंसान और इंसानी बस्तियों को मिटा गए. क़ुदरत के क़हर ने कई-कई बार अनगिनत ज़िन्दगियों को हमेशा के लिये ख़ामोश कर दिया. मासूम और बेगुनाह क़ुदरती क़हर के आगे बेबस और लाचार नज़र आए. क़ुदरत हर बार बेधड़क क़हर बरपाती रही और इंसान उजड़ते रहे, क्योंकि क़ुदरत की ताक़त पर इंसानों का बस नहीं चलता.

आज़ाद हिंदुस्तान में कुदरती कहर की पांच सबसे भयानक तस्वीरें...वो तस्वीर जो जब-जब आंखों के सामने से गुजरती है, आंखें नम हो जाती हैं. पेश है आज़ाद हिंदुस्तान में कुदरती कहर की पांच सबसे खौफनाक कहानियां...

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उत्तराखंड के नौ ज़िले, दस हज़ार मौत का अंदेशा
देश में भगवान शिव के सबसे बड़े स्थान में से एक केदारनाथ. उसी केदारनाथ मंदिर के पीछे से ग्लेशियर उफनकर जब सामने आया, तो मंज़र खौफनाक हो गया. एक बार जैसे ही लहरों ने केदारनाथ मंदिर को पार किया, फिर तो इनके तेवर देखने लायक थे. जो भी रास्ते मे आया, बह गया. आफत आसमान ने बरसाई. नदियां ज़मीन पर बेलगाम हो गईं. ऐसी बेलगाम कि घर-नाले, पहाड़, सड़क, रास्ते, पुल सभी तबाह हो गए.

घरौंदे ताश के पत्तों की तरह ढहने लगते हैं, इलाके के इलाके श्मशान में तब्दील हो जाते हैं. मंजिलों तक पहुंचाने वाले रास्ते जब खुद ही मिट जाते हैं, तब सिर्फ एक ही मंज़र बचता है, तबाही का मंजर, दर्द का मंज़र, बेचारगी-बेबरसी का मंज़र.

कैसा सैलाब था यह, जिसने सबकुछ पानी-पानी कर दिया. कैसा सैलाब था, जिसने बस्ती की बस्ती उजाड़ दी. गुस्साए बादल और बेलगाम लहरों ने उत्तराखंड में जो तांडव मचाया, उसमें अब तक दस हजार से ज्यादा मौतों की खबर आ रही है. सिर्फ एक रात के कहर ने उत्तराखंड के नौ जिलों में तबाही की वो इबारत लिख दी, जो अब हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा.

तबाही के क़रीब हफ़्ते भर बाद जब भगवान भोले भंडारी के धाम केदारनाथ में लोगों ने मंज़र देखा, तो दिल दहल गए. पूरी की पूरी केदार घाटी में सिर्फ़ शिव ही बचे थे, बाक़ी कुछ भी नहीं. मंदिर के दरवाज़े पर लाशें अटी पड़ी थीं. यही मंज़र गर्भगृह का भी था.

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गंगा, हो या अलकनंदा, मंदाकिनी या फिर शारदा, उत्तराखंड से बहने वाली हर नदी की हर लहर बिजली बनकर इंसानों पर गिरी थी.

यह कुदरत से खिलवाड़ का नतीजा था या फिर बादल फटने का अंजाम, विनाश के प्रभु शिव का क्रोध था या फिर अचानक आई आपदा, इसका हिसाब-क़िताब तो होना अभी बाक़ी है. लेकिन कुछ गिनतियां बता रही हैं कि उत्तराखंड के नौ जिलों में से हज़ार से ज़्यादा सड़कें, पांच सौ से ज़्यादा पुल और हज़ारों कच्चे-पक्के रास्तों के निशान तक मिट चुके हैं. रही बची जिंदगियों की बात, तो लाशों की गिनती तो फिर भी मुमकिन है, पर उनका क्या, जिनकी ज़िंदगी अब जिंदा रहकर भी मौत से बदतर हो गई है. उत्तराखंड के इतिहास की यह अब तक की सबसे बड़ी तबाही है.

गुजरात के भुज में भयानक भूकंप
26 जनवरी 2001 की सुबह, जब सारा देश गणतंत्र दिवस मना रहा था, ठीक तभी गुजरात के भुज में जबरदस्त भूकंप आया था. रिक्टर स्केल पर 7.7 की तीव्रता से सुबह 8 बजकर 46 मिनट पर आए इस भूकंप में 20 हजार से ज्यादा लोगों की जानें चली गईं. 1 लाख 67 हजार लोग घायल हुए औऱ करीब 6 लाख लोग बेघर हुए.

पूरे देश की तरह गुजरात में भी लोग 26 जनवरी की सुबह से गणतंत्र दिवस की खुशियां मना रहा था. बच्चे हाथों में तिरंगा लिए स्कूलों की तरफ दौड़ रहे थे, लेकिन एक झटके ने इस खुशी को मातम में बदल दिया.

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कच्छ व भुज में अचानक शांत व स्थिर धरती ने अपना रूप बदला और 7.7 की तीव्रता से आए एक ज़लज़ले ने झकझोर कर रख दिया. लोगों के पैर डगमगाने लगे. कोई समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर ये क्या हो रहा है? औऱ जब तक समझ में आया, शहर के शहर कब्रिस्तान में तब्दील हो गए.

इस तबाही में तकरीबन 20 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए. 1 लाख 67 हजार लोग घायल हुए औऱ करीब 6 लाख लोग बेघर हो गए. इस तबाही में गुजरात का भुज पूरी तरह तबाह हो गया. इस भयानक प्राकृतिक आपदा में कच्छ के 450 गांवों का तो नामोनिशान ही मिट गया.

12 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी तक लोग उस भयानक दिन को नहीं भुला पाए हैं. सुबह-सुबह शुरुआती ख़बरें मिलीं कि गुजरात के कुछ इलाकों में भूकंप के झटके महसूस किए गए. लेकिन जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता गया, तबाही का मंज़र भयानक होता गया. मरने वालों की तादाद ऐसे बढ़ रही थी, जैसे कोई 10 का पहाड़ा पढ़ रहा हो. पहले दस हुई, फिर सौ, फिर एक हज़ार, फिर दस हज़ार औऱ फिर बीस हज़ार...सिर्फ कुछ सेकेंड में हंसते खिलखिलाते कच्छ और भुज शहर में मातम पसर गया.

महाराष्ट्र के लातूर में खौफनाक भूकंप
30 सितंबर 1993 को महाराष्ट्र में जबरदस्त भूकंप आया था. सुबह करीब 4 बजे रिक्टर सेक्ल पर 6.4 की तीव्रता वाले इस भूकंप में करीब 20 हजार लोग मारे गए, जबकि 30 हजार घायल हुए. इस भूकंप में 52 गांव पूरी तरह से तबाह हो गए.

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सुबह 4 बजे जब ज़्यादातर लोग गहरी नींद में सोए हुए थे, तभी एक ज़ोरदार धमाके ने लोगों को झकझोर दिया. जब तक लोग संभल पाते, तब तक तबाही मच चुकी थी. 30 सितंबर 1993 में महाराष्‍ट्र के लातूर में आया भूकंप इतना ज़बरदस्त था कि इसके सामने एक भी घर टिक नहीं सका.

भूकंप से सबसे ज्‍यादा प्रभावित इलाके लातूर का औसा और उस्‍मानाबाद के उमेर्गा था. इन दोनों इलाकों में इस भूकंप की वजह से 52 गांव पूरी तरह से तहस-नहस हो गए. रिक्‍टर स्‍केल पर 6.4 तीव्रता के इस भूकंप में करीब 20 हजार लोगों की जान चली गई थी.

इसके अलावा इस भूकंप में 30 हजार लोग घायल हुए. 30 हजार मकान गिरे और 13 जिलों के करीब 2 लाख 11 हजार मकानों में टूट-फूट हुई. राहत व बचाव कार्य के दौरान सेना व बचाव दल ने मलवे से कई लोगों को जीवित निकाल लिया. भारत में आज़ादी के बाद आया यह सबसे भयानक भूंकप था.

हालांकि लातूर भूकंप से पहले रिक्टर स्केल पर इससे भी ज़्यादा तीव्रता का भूकंप 20 अक्टूबर 1991 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी में भी आया था. इस भूकंप में भी भारी तबाही हुई थी. इस ज़लज़ले में करीब 2 हज़ार लोगों की जान चली गई थी.

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दक्षिण भारत में जानलेवा सुनामी
भूकंप के झटके ने सारे रिकार्ड तोड़ डाले. 2004 में 9.3 तीव्रता के भूकम्प के चलते हिन्द महासागर का सीना सुनामी से दहल गया. 7 से 12 मीटर ऊंची लहरें जब भारतीय तट से टकराईं, तो समंदर से लगे सभी राज्यों में हाहाकार मच गया. भारत में इस सुनामी से तमिलनाडु और तट से लगे दूसरे राज्यों में लगभग 13 हज़ार लोग मारे गए.

हिंद महासागर में आए भयंकर भूकंप और उसके प्रभाव से शुरू हुई सुनामी में भारत में करीब 12 हज़ार लोगों की मौत हो गई. कुल तेरह देशों में पानी से निकले इस दैत्य ने करीब दो लाख लोगों को मौत की नींद सुला दिया.

भारत में समंदर से लगे दक्षिणी राज्यों में इस सुनामी ने सबसे ज़्यादा तबाही मचाई. इंडोनेशिया में हिंद महासागर में पैदा हुए ज़लज़ले ने पांडीचेरी, अंडमान निकोबार, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश के कई इलाकों को देखते ही देखते अपनी आगोश में ले लिया था.

समंदर की लहरें जब खामोश हुईं, तो छोड़ गईं विनाश की भयावह तस्वीरें. वो यादें, जिसे देखकर आज भी सिहरन पैदा हो जाती है. वो तस्वीरें कोई कैसे भूल सकता है, जब समंदर से निकले इस जलदैत्य ने दक्षिण भारत के शहरों को तबाह कर दिया था.

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इंडोनेशिया के आचे के पास के समुद्र में 8.9 की तीव्रता वाले भूकंप के बाद सुनामी की जिस तरह की लहरें उठी थीं, उसके बारे में कहा गया था कि ऐसी लहरें पिछले 40 सालों में नहीं देखी गई थीं. सुनामी के केंद्र इंडोनेशिया में इस हादसे में एक लाख 28 हज़ार लोग मारे गए.
पानी की ऊंची-ऊंची लहरें जब 800 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज़ रफ़्तार से तटीय क्षेत्रों में घुसीं, तो लोगों को संभलने का मौक़ा भी नहीं मिला. जब लहरें लौटने लगीं, तो अपने साथ गाड़ियों के साथ मकान के मकान भी बहा ले गईं.

सूनामी आने के कुछ घंटों में ही श्रीलंका, भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों ने सैकड़ों लोगों की मौत की ख़बर आई. हाल के दिनों में आई यह सबसे भयंकर प्राकृतिक आपदा थी. भारत के दक्षिणी तट से सैकड़ों मछुआरे लापता हो गए थे, जिनके शव बाद में समुद्र से बहकर वापस आए.

भारत में अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप सुनामी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे. दोनों केन्द्रशासित प्रदेशों में ही 7 हजार लोग मारे गए. तमिलनाडु भी सुनामी से काफी प्रभावित हुआ. राहत और बचाव के काम में सेना को लगाना पड़ा था.

हिंद महासागर में 26 दिसंबर 2004 को आए भूकंप से पैदा हुई सुनामी लहरों की विनाशलीला विश्व की सबसे बड़ी त्रासदियों में गिनी जाती है.

लद्दाख़ में आसमानी सैलाब
लद्दाख में बादल फटने की वजह से हुई भारी तबाही अब भी लोगों की जेहन में ताज़ा है. 5 और 6 अगस्त 2010 की रात लेह पर जैसे आसमान से कहर टूट पड़ा. बादल फटने की वजह से लेह में पानी ने जो तांडव मचाया, उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है.

लेह-लद्दाख में अचानक आई बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया. आसमान में बादल फटने के बाद लाखों लीटर पानी मौत की शक्ल में बहने लगा. तबाही का ऐसा भयानक मंज़र पहले कभी नहीं देखा गया.

जम्मू-कश्मीर के लेह में 6 अगस्त को बादल फटने के हादसे की तस्वीरें न तो यहां के लोग भूल पाए हैं और न ही पूरा देश. आज भी यह डराने वाली तस्वीरें लोगों के ज़ेहन में ताज़ा हैं.

इस हादसे में करीब 255 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई, जिनमें 6 विदेशी टूरिस्ट के अलावा देश के दूसरे हिस्से से आए लोग भी शामिल थे. मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी काफी तादाद में शामिल थे. हज़ारों लोग बेघर हुए. हादसे में कई परिवार उजड़ गए. कहीं पूरा का पूरा परिवार ही इसकी भेंट चढ़ गया, तो किसी परिवार में इक्के-दुक्के लोग ही बचे.

लेह के अधिकतर गांव इसकी चपेट में आए थे. सबसे ज्यादा तबाही चोगलमसर गांव में हुई, जहां लगभग पूरा गांव ही तबाह हो गया. बादल फटने और बाढ़ आने की घटना में करोड़ों की सम्पत्ति बर्बाद हुई और करीब 9 हज़ार से ज़्यादा लोग बुरी तरह प्रभावित हुए.

अपनी ख़ूबसूरती के लिए दुनिया भर के मशहूर औऱ पर्यटकों को सबसे ज़्यादा लुभाने वाला लेह 6 अगस्त 2010 की सुबह बादल फटने के बाद आई बाढ़ से बदशक्ल हो गया था. देर रात बादल फटा और सुबह लोगों के ठीक से आंख खोलने से पहले ही आई बाढ़ ने संभलने का मौका नहीं दिया. तबाही के सैलाब में सब कुछ बह गया.

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