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कागज के एक पुर्जे ने सुलझाया ब्‍लाइंड मर्डर केस

दिल्ली पुलिस को फुटपाथ पर एक रोज एक गुमनाम शख्स की लाश मिलती है. लाश पर चाकुओं के निशान हैं जो ये इशारा कर रहे हैं कि ये मामला कत्ल का है. लेकिन मरनेवाले की पहचान किए बगैर पुलिस के लिए कातिल तक पहुंचना नामुमकिन है.

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उत्तर पश्चिमी दिल्ली के बड़े बाजारों और भीड़-भाड़वाले इलाकों में से एक ब्रिटानिया चौक पर लोगों की भीड़भाड़ और ट्रैफिक से थोड़ी दूरी पर एक शख्स फुटपाथ पर बेहोश पड़ा था. तभी वहां से गुजरते लोगों की उस पर नजर पड़ी. पहले एक मुसाफिर रुका और फिर धीरे-धीरे मौके पर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई और इसी बीच पुलिस को फोन पर जानकारी दी गई.

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अब सुभाष प्लेस थाने की पुलिस मौके पर पहुंची, उसने बेहोश पड़े शख्स का मुआयना किया, लेकिन ये क्या? इस शख्स के जिस्म पर तो चाकुओं के निशान हैं. जिस्म के बांये हिस्से और सीने पर लगे चाकुओं के ज़ख्म से बहुत सा ख़ून भी बह चुका था. पुलिस ये जानने की कोशिश करने लगी कि ये शख्स जिंदा भी है या नहीं, लेकिन फिर ज्‍यादा वक्त गंवाए बगैर पुलिस उसे अस्पताल ले गई.

डॉक्टरों उस शख्स को मुर्दा करार दिया. पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और साथ ही कत्ल का मुकदमा दर्ज कर मामले की तफ्तीश शुरू कर दी. शुरुआती छानबीन में ये साफ हुआ कि मरनेवाले की जेब से पर्स या मोबाइल जैसी चीजें नदारद थीं. तो क्या, इस शख्स का कत्ल किसी ने लूटपाट के इरादे से किया है? या फिर मरनेवाले को मार कर वारदात को लूटपाट की शक्ल देने के इरादे से ऐसी साजिश रची गई?

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ज़ाहिर है, कोई पुख्‍ता जानकारी के बगैर पुलिस का किसी भी नतीजे पर पहुंचना नामुमकिन था. अलबत्ता लाश और मौका-ए-वारदात की हालात से मामला लूटपाट का जरूर लगता था. पुलिस को लगता था कि हो ना हो बीती रात ये शख्स किसी लुटेरे के चंगुल में फंस गया होगा. बहरहाल, फिलहाल पुलिस की तमाम थ्योरी इशारों और कयासों पर ही टिकी थी. क्योंकि ना तो अभी मरनेवाले की पहचान हो सकी थी और ना ही पुलिस को कत्ल की इस वारदात में अभी कोई सुराग ही मिला था.

लेकिन इसी बीच लाश की जामा तलाशी से मिले एक अदद कागज के पुर्जे पर अचानक ही पुलिस का ध्यान जाता है और पुलिस एक बार फिर उसी पुर्जे की मदद से तफ्तीश आगे बढ़ाने का फैसला करती है. तो क्या, एक मामूली सा पुर्जा मरनेवाले की पहचान या कातिल का पता दे सकता है? ये गुमनाम लाश पुलिस के लिए किसी पहेली से कम नहीं थी. लेकिन पुलिस को लाश की जेब से जो पर्ची हाथ लगी उसमें कुछ होटलों और कुछ वेटर्स के नाम लिखे थे.

वैसे तो पुलिस पर काहिली या लापरवाही के इल्जाम कोई नई बात नहीं है. लेकिन कत्ल के मामलों में ऐसा कम ही होता है, जब पुलिस तफ्तीश से बिल्कुल ही आंखें फेर ले. यहां नेताजी सुभाष प्लेस थाने की पुलिस भी ऐसे ही एक मामले को सुलझाने में लगी थी. ये मामला एक ऐसे ब्लाइंड मर्डर का था, जिसमें पुलिस के पास दूर-दूर तक कोई सुराग नहीं था. यहां तक कि पुलिस को जिस जगह पर उस गुमनाम शख्स की लाश मिली थी, उस जगह जाकर भी लोगों से दरयाफ्त कर थक गई, लेकिन उसे पहचानने वाला कोई नहीं मिला.

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अब हार कर पुलिस ने उसी पर्ची के दोबारा मुआयना करने का फैसला किया, जो लाश की जेब से मिली थी. गौर से देखने पर पुलिस को ये बात समझ में आई कि उस पर्ची पर कुछ होटल और वेटरों के नाम लिखे हैं. तो क्या, ये लाश होटल के कारोबार से जुड़े किसी शख्स की थी या फिर मरनेवाला खुद एक वेटर था? पुख्ता ना सही, लेकिन मक्तूल के पास से मिला वो मामूली सा पुर्जा पुलिस को एक सुराग तो दे ही चुका था. कम से कम अब पुलिस होटल लाइन से जुड़े लोगों से इस सिलसिले में पूछताछ तो कर ही सकती थी.

पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाई और पर्ची में लिखे होटलों में से कुछेक होटलों के नंबरों पर फोन किया. लेकिन तभी पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली, जब इसी कोशिश में एक शख्स ने मरनेवाले को पहचानने का दावा किया. राजस्थान के एक होटल में फोन उठानेवाले शख्स ने वारदात और मरनेवाले का हुलिया सुनने के बाद ये बताया कि हो ना हो मरनेवाला शकूरपुर का रहनेवाला उम्मेद हो सकता है, जो वेटर्स के सप्लाई का काम करता है. अब पुलिस को तफ्तीश में एक मामूली कामयाबी मिल चुकी थी. लेकिन अभी होटलवाले के दावे की तस्दीक बाकी थी.

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अब तक पुलिस को ये पता चल चुका था कि उम्मेद शकूरपुर के एल ब्लॉक में रहता था. लिहाजा पुलिस ने लाश की तस्वीर लेकर एल-ब्लॉक में उसके घरवालों को ढूंढ़ने का फैसला किया. इस बार भी पुलिस की कोशिश काम कर गई और एल-ब्लॉक में उम्मेद का परिवार मिल गया. यहां लाश की तस्वीर देखते ही उम्मेद की बीवी और उसका भाई फफक पड़े. पुलिस उसके घरवालों को उम्मेद के कत्ल की वजह तो नहीं बता सकी, अलबत्ता पुलिस को ये जरूर पता चल गया कि उम्मेद हर दो हफ्ते में एक बार राजस्थान से घर आता था. लेकिन इस बार वो घर नहीं लौटा था.

लेकिन एक सवाल अब भी जस का तस था, वो ये कि उम्मेद का कत्ल किसी रंजिश की वजह से हुआ या फिर लूटपाट की वजह से? इसी सवाल का जवाब जानने के इरादे से पुलिस ने उसके घरवालों से आम तौर पर उसकी जेब में रहनेवाली चीजों के बारे में जानने की कोशिश की. लेकिन इसमें उसे कोई ख़ास कामयाबी नहीं मिली. हां, इतना जरूर पता चला कि उम्मेद के पास एक मोबाइल फोन भी था, जो वारदात के बाद से ही लगातार स्वीच्ड ऑफ था. पुलिस उम्मेद के मोबाइल फोन को पहले ही सर्विलांस पर लगा चुकी थी.

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अब पुलिस को मरनेवाले का तो पता चल चुका था. लेकिन ना तो उसे कत्ल के मकसद का पता था और ना ही कातिलों का. लेकिन तभी खुद कातिलो ने एक ऐसी हरकत की. जिससे पुलिस को उनका पता चल गया. उम्मेद के कातिलों की तलाश में लगी पुलिस को अब उम्मीद नजर आने लगी. दरअसल, पुलिस ने कत्ल के बाद से गायब उम्मेद के जिस मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगाया था, वो अचानक एक दिन स्वीच ऑन हुआ और फिर कुछ ही देर में ऑफ भी हो गया. लेकिन मोबाइल पर नजरें गड़ाए बैठी पुलिस को इतना तो पता ही चल गया कि फोन शकूरपुर इलाके में ही स्वीच ऑन किया गया था.

अब एक बात और साफ हो गई, वो ये कि उम्मेद की जान लेनेवाला यानी उसका कातिल अब भी शकूरपुर इलाके में ही मौजूद था. मोबाइल फोन के ऑन होने की जगह को जीरो-इन करती हुई पुलिस शकूरपुर इलाके में ही एक गुमटीनुमा छोटे से दुकान में जा पहुंची. इस दुकान में उम्मेद का कातिल तो नहीं था, लेकिन यहां दुकान पर मौजूद शख्स से उम्मेद के मोबाइल के बारे में पूछताछ करने पर उसे एक नई बात जरूर पता चली.

दुकानदार ने पुलिस को बताया कि उसी रोज सुबह दो नौजवान उम्मेद का मोबाइल फोन लेकर उसे बेचने पहुंचे थे. दोनों मोबाइल सस्ती कीमत पर देने को भी तैयार थे, लेकिन उम्मेद के मोबाइल का लॉक पड़ा की-पैड नहीं खुलने की वजह से उसने मोबाइल खरीदने से मना कर दिया. हालांकि दुकानदार उसके पास मोबाइल बेचने पहुंचे दोनों लड़कों को जानता था और अब इन दोनों की पहचान की शक्ल में पुलिस को कातिलों का पता मिल चुका था.

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अब पुलिस फौरन शकूरपुर जे-जे कॉलोनी में रहनेवाले उन लड़कों के घर जा पहुंची. इत्तेफाक से दोनों घर में ही मिल गए. इनमें एक तो नाबालिग था, जबकि दूसरे की पहचान छंटे हुए झपटमार साजिद के तौर पर हुई. पुलिस ने जब दोनों से उम्मेद के बारे में पूछताछ की तो पहले तो उन्होंने पुलिस को छकाने की कोशिश की, लेकिन फिर जल्द ही टूट गए. अब उनकी निशानदेही पर पुलिस ने साजिद के पास से उम्मेद का लूटा हुआ पर्स और आला-ए-कत्ल यानी एक बटनदार चाकू भी बरामद कर लिया.

अब पूछताछ में दोनों ने जो कहानी बताई, वो रौंगटे खड़नेवाली थी. दोनों ने बताया कि वारदात की रात वो पैसों की तलाश में इधर-उधर घूम रहे थे. नशे के आदी साजिद को पैसों को सख्त दरकार थी और तभी बदकिस्मती से उम्मेद उधर से गुज़रा. आजादपुर की तरफ से उम्मेद को आता देखकर दोनों एफओबी के पास बटनदार चाकू लेकर चुपचाप खड़े हो गए और जैसे ही उम्मेद उनके पास पहुंचा, दोनों ने उस पर चाकुओं से ताबड़तोड़ वार करना शुरू कर दिया. इससे पहले कि उम्मेद कुछ समझ पाता, दोनों ने उसकी जेब से पर्स और मोबाइल फोन समेत दूसरे सामान निकाले और उम्मेद को मरा समझकर मौके से भाग निकले.

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दोनों के इस कुबूलनामे के साथ ही ब्लाइंड मर्डर की एक ऐसी कहानी से पर्दा उठ चुका था, जो क्राइम इनवेस्टिगेशन के पेचीदा मामलों में से एक था और जिसमें एक कागज का पुर्ज़ा, कातिलों के लिए अहम सुराग साबित हुआ.

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