अफग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार बनते ही आतंक का असली चेहरा सामने आने लगा. सरकार में पांच बड़े आतंकियों समेत 33 मंत्री शामिल हैं. जिनका चेहरा को देख कर दुनिया हक्की-बक्की रह गई. हम आपको बताएंगे कि तालिबान में आंतक वाली सरकार बनने के बाद वहां पहला दिन कैसा रहा. इधर, तालिबान की सरकार बनी और उधर, तालिबान के लड़ाकों ने कोड़े निकाल लिए. आतंकी सरकार बनने के बाद अफगानिस्तान में कहीं महिलाओं पर कोड़े बरसाए गए तो कहीं पत्रकारों की खाल उधेड़ दी गई.
अफग़ानिस्तान की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया में तेज़ी से वायरल हो रही हैं. जिनमें तालिबानी आतंकी एक हवाई जहाज़ के डैने से रस्सी बांध कर बिंदास झूला झूल रहे हैं. झूल क्या रहे हैं. बिल्कुल दिल खोल कर लहरा रहे हैं. खिलखिला रहे हैं. असल में ये वो विमान हैं, जिन्हें अमेरिका अफग़ानिस्तान से लौटते वक्त अपने पीछे छोड़ गया. कहने को तो अमेरिका ने इन विमानों को ख़राब कर दिया, ताकि आतंकी इन्हें उड़ा ना सके. लेकिन उन्हें क्या पता था कि आतंकी इसे बेशक ना उड़ा सकें, इनसे झूला झूलने का काम तो ले ही सकते हैं. यकीनन इन तस्वीरों को देख कर एकबारगी ये लगता है कि ये कितने भोले हैं. कितने नादान हैं. लेकिन जब यही आतंकी अपनी वहशत पर उतर आते हैं, तो शैतान भी कांप उठता है.
कुछ तस्वीरें और भी सामने आई हैं. जिनमें सड़क से गुज़रती महिला की पीठ पर तालिबानी कोड़े बरसा रहे हैं. दरअसल ये कोड़े अफ़ग़ानिस्तान की आवाम के अरमानों पर बरस रहे हैं. ऐसे ही अफग़ानी पत्रकारों के खाल उधेड़ी गई, वो खाल उनकी नहीं बल्कि अफग़ानिस्तान की आज़ादी की उधड़ी हुई खाल है. औरतों की आज़ादी के मसले पर तालिबानी नेता कहता है कि "आप किस तरह का खरबूज़ा खरीदते हैं, कटा हुआ या फिर साबुत? बिना हिजाब की औरतें असल में कटे हुए खरबूज़े की तरह होती हैं."
ये उसी ज़ेहनियत का सबूत है, जिसके सहारे अब तालिबानी आतंकी अफ़ग़ानिस्तान को हांकने की कोशिश कर रहे हैं. तालिबान ने अफग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा तो कर लिया. अपनी सरकार भी बना ली, लेकिन सरकार बनते ही उसका वो असली चेहरा एक नहीं, बल्कि कई बार बेनक़ाब हो गया, जिसे छुपा कर वो दुनिया के सामने अपनी बदली हुई छवि पेश करने की कोशिश कर रहा है. कहीं महिलाओं की आज़ादी पर डाका डालनेवाले तालिबानी फ़रमान के बहाने, कहीं धरना प्रदर्शन जैसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर पाबंदी के बहाने, तो कहीं तो कहीं पत्रकारों की खाल खींच लेनेवाली करतूत के बहाने. बेअंदाज़ तालिबान एक बार फिर से वहशत के रास्ते पर चल निकला है और सहमा-सहमा अफ़ग़ानिस्तान अपनी किस्मत पर रो रहा है.
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7 सितंबर की कुछ तस्वीरें सामने आई हैं. जी हां, उसी सात सितंबर की जिस रोज़ अफ़गानिस्तान में तालिबानी हुकूमत की दूसरी पारी शुरू हुई. इधर, तालिबान दुनिया के सामने अपने नए-नए हाकिम और हुक्कामों की फेहरिस्त पेश कर रहा था और उधर तालिबानी हुकूमत की आमद से घबराई औरतें काबुल की सड़कों पर अपनी आज़ादी के लिए आवाज़ बुलंद कर रही थीं. लेकिन इन्हीं आवाज़ों को कुचलने के लिए तब तालिबानी आतंकी वहां की सड़कों पर अंधाधुंध गोलियां चला कर निहत्थी भीड़ को डरा रहे थे. महिलाओं को दौड़ा-दौड़ा कर उनकी पीठ पर कोड़े बरसा रहे थे.
काबुल में भी ऐसा ही मंजर देखने को मिला, जहां दो पत्रकारों पर तालिबानी जुल्म देखने को मिला. पीट-पीट कर खाल उधेड़ देना किसे कहते हैं, ये इन पत्रकारों को देख कर समझा जा सकता है. अफग़ानिस्तान के स्थानीय पत्रकारों पर तालिबानी आतंकियों की खीझ सिर्फ़ इसलिए उतरी है, क्योंकि ये पत्रकार काबुल में महिलाओं के उस प्रदर्शन को कवर कर तालिबान को बेनक़ाब कर रहे थे, जिसमें महिलाओं अपनी आज़ादी की मांग कर रही थी. तालिबानी आतंकियों ने ना सिर्फ़ महिलाओं को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा, बल्कि पत्रकारों पर उनके कोड़े और डंडे कुछ ऐसे बरसे कि किसी पीठ लहूलुहान हो गई, तो कई अपने क़दमों पर चलने लायक भी नहीं बचे. और ये हालत तब थी जब तालिबानी हुकूमत को अफ़ग़ानिस्तान में आए कुल जमा महज़ दो ही दिन गुज़रे थे.
लॉस एंजेल्स टाइम्स के फॉरेन कारोस्पोंडेंट मार्कस यम ने अपने ट्वीटर हैंडल से अफग़ानी पब्लिकेशन एतिलातरोज़ के दो पत्रकारों नेमत नकदी और तकी दरियाबी की दो ऐसी तस्वीरें पोस्ट की हैं, जिन पर नज़रें टिका पाना भी मुश्किल है. तालिबानी जल्लादों ने दोनों की पीठ से लेकर जिस्म के पूरे पिछले हिस्से में इतने डंडे बरसाए हैं, ऐसा कोई भी हिस्सा नहीं है, जहां चोट और ज़ख़्म के निशान ना मौजूद हों. अपने ही पत्रकारों की इन तस्वीरों और वीडियोज़ को खुद अफ़ग़ानी पब्लिकेशन ने भी अपने ट्वीटर हैंडल से पोस्ट कर इस तालिबानी रवैये की मुखालफ़त की है. खबरों के मुताबिक 7 सिंतबर को काबुल में जारी इस विरोध प्रदर्शन की कवरेज के दौरान तालिबानी आतंकियों ने वहां मौजूद सारे पत्रकारों को अगवा कर लिया. इसके बाद उन्होंने विदेशी पत्रकारों को तो जाने दिया, लेकिन अफग़ानी पत्रकारों के साथ ऐसा बर्बर सलूक किया कि किसी भी देखनेवाली रूह कांप जाए.
ज़ुल्म और ज़्यादती की डरावनी तस्वीरों के बाद अब बाद तालिबान के उन दमघोंटू फरमानों की, जिसने अफ़ग़ानिस्तान के आनेवाले कल की झलक दिखानी शुरू कर दी है. अव्वल तो 7 सितंबर के प्रदर्शन से घबराए तालिबान ने पूरे देश में धरना प्रदर्शन पर ही रोक लगा दी है. तालिबान के गृह मंत्रालय ने कहा है कि अब किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन से पहले लोगों को ना सिर्फ़ सरकार के इजाज़त लेनी होगी, बल्कि कम से कम 24 घंटे पहले तालिबान सरकार को ये बताना होगा कि विरोध प्रदर्शन का मकसद क्या है, उसमें कितने लोग शामिल होंगे और किस तरह के नारों का इस्तेमाल होगा? विडंबना देखिए कि अफ़ग़ान की आवाम को ये इजाज़त भी किसी और से नहीं बल्कि दुनिया की नज़रों में उस घोषित आतंकवादी यानी सिराजुद्दीन हक्कानी से लेनी होगी, जिसे तालिबान ने अपना नया गृह मंत्री बनाया है. यानी उस शख़्स से जिसके सिर पर अमेरिका की सबसे बड़ी जांच एजेंसी एफबीआई ने 37 करोड़ रुपये का इनाम रखा है.
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अब बात महिलाओं पर लगाई गई नई तालिबानी पाबंदियों की. तालिबान ने साफ़ कर दिया है कि अब अफग़ानिस्तान में लड़कियों को क्रिकेट समेत किसी भी तरह के खेलकूद में भाग लेने की इजाज़त नहीं होगी. तालिबान के इस ऐलान के बाद ऑस्ट्रेलिया और अफगानिस्तान के बीच इस साल नवंबर महीने में होबार्ट में होने वाले इकलौते टेस्ट मैच के रद्द होने का ख़तरा पैदा हो गया है.
तालिबान कल्चरल कमीशन ने कहा है कि महिलाओं को ऐसे किसी भी खेल में भाग लेने की इजाज़त नहीं होगी, जिसमें इस्लाम के मुताबिक कपड़े ना पहने जाते हों. और इन खेलों में क्रिकटे भी शामिल है. क्रिकेट के दौरान महिलाओं का चेहरा और जिस्म के सारे हिस्से पूरी तरह ढंके नहीं होंगे, ऊपर से उनकी तस्वीरें और वीडियोज़ भी बनाए जाएंगे. ऐसे में तालिबान लड़कियों को क्रिकेट नहीं खेलने देगा. क्योंकि ये इस्लाम के मुताबिक नहीं है. खास बात ये है कि अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड पिछले साल नवंबर में 25 महिला क्रिकेटरों के साथ कांट्रैक किया था और काबुल में 40 महिला क्रिकेटरों के लिए 21 दिन का कैंप भी लगाया गया था, लेकिन अब ये सब गुजरे ज़माने की बातें हैं.
इससे पहले सरकार बनते ही तालिबान ने स्कूल कॉलेजों में भी अजीबोग़रीब पाबंदियों की शुरुआत कर दी थी. तालिबान ने एक ही क्लास में लड़के और लड़कियों को पढ़ाने पर रोक लगा दी है और कहा है कि अगर ये बेहद ज़रूरी हो तो लड़के लड़कियों के बीच पर्दे लगाएं. और लड़कियों की छुट्टी पांच मिनट पहले कर दी जाए, ताकि वो लड़कों से मिल ना सकें. उधर, तालिबान के उच्च शिक्षा मंत्री अब्दुल बाकी हक्कानी का वो अजीबोग़रीब बयान तो सुर्खियों में है ही, जिसमें उसने कहा है कि अब लोगों को उच्च शिक्षा लेने की ज़रूरत नहीं है. क्योंकि खुद वो और उस जैसे लोग बगैर किसी उच्च शिक्षा के ही देश के इतने बड़े पदों पर आ पहुंचे हैं. ज़ाहिर है, ये तो अभी शुरुआत है. तालिबानी फ़रमानों का कोई ओर-छोर नहीं है. आने वाले दिनों में अफ़ग़ान को और कैसे-कैसे फ़रमानों का सामना करना पड़ेगा, ये कोई नहीं जानता.